यूपी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया- CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों से नुकसान की वसूली के लिए बन चुका है कानून
याचिकाकर्ता का कहना है कि बिना किसी कानूनी आधार के प्रशासन ने लोगों को नोटिस भेजे थे. जवाब में यूपी सरकार ने आज बताया कि इस बारे में कानून बनाया जा चुका है.
नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश में CAA विरोधी प्रदर्शनकरियों से तोड़फोड़ के नुकसान की वसूली को अवैध बताने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई 23 जुलाई के लिए टाल दी है. याचिकाकर्ता का कहना है कि बिना किसी कानूनी आधार के प्रशासन ने लोगों को नोटिस भेजे थे. जवाब में यूपी सरकार ने आज बताया कि इस बारे में कानून बनाया जा चुका है. इस पर कोर्ट ने संकेत दिए कि अगली सुनवाई में मामला बंद कर दिया जाएगा.
सुप्रीम कोर्ट में पिछले साल जनवरी में परवेज़ आरिफ टीटू नाम के याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि यूपी में अल्पसंख्यकों को परेशान करने के मकसद से नुकसान की भरपाई के नोटिस भेजे जा रहे हैं. याचिकाकर्ता का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसले के मुताबिक, इस तरह के मामलों में नुकसान के आकलन और भरपाई का आदेश हाई कोर्ट या किसी न्यायिक संस्था की तरफ से आना चाहिए था. लेकिन यूपी में जिला प्रशासन ने लोगों को नोटिस भेजे हैं. यह नोटिस इसलिए भी अवैध हैं क्योंकि राज्य में इसे लेकर कोई कानून नहीं है.
पिछले साल हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक संपत्ति की तोड़फोड़ करने वालों से वसूली को सही कहा था. लेकिन राज्य सरकार से लोगों को भेजे गए वसूली नोटिस के पीछे के कानूनी आधार पर पक्ष रखने को कहा था. आज करीब डेढ़ साल बाद यह मामला लगा. जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एम आर शाह की बेंच को याचिकाकर्ता की तरफ से जानकारी दी गई कि उनकी मुख्य वकील नीलोफर खान व्यक्तिगत कारणों से पेश होने की स्थिति में नहीं हैं. इसलिए सुनवाई टाल दी जाए.
इस पर जजों ने जानना चाहा कि यूपी सरकार के लिए कौन पेश हुआ है. राज्य की एडिशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने बेंच को बताया कि इस मामले पर ज़रूरी कानून बनाया जा चुका है. कानून को नोटिफाई कर दिया गया है. उसके आधार पर क्लेम ट्रिब्यूनल भी बनाए जा चुके हैं. बेंच ने उनसे कहा कि वह मौखिक तौर पर रखी गई इस जानकारी को लिखित हलफनामे के रूप में जमा करवाएं. सुनवाई 23 जुलाई को की जाएगी.
याचिकाकर्ता की तरफ से सुनवाई की तारीख 1 महीना बाद रखने का आग्रह किया गया. इस पर जजों ने कहा कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है. उन्होंने केस की पूरी फ़ाइल पढ़ी है. अगर वकील नीलोफर उपलब्ध नहीं हो पाएंगी, तब भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा. राज्य का हलफनामा आने के बाद अगली सुनवाई में मामला बंद कर दिया जाएगा.