Upcoming Elections 2023: इस साल होने वाले 9 राज्यों के विधानसभा चुनावों को 'सत्ता का सेमीफाइनल' कहा जा रहा है. दरअसल, इन विधानसभा चुनावों के खत्म होने के कुछ ही महीनों बाद 2024 के लोकसभा चुनाव होने हैं. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि इन विधानसभा चुनावों के नतीजों का असर लोकसभा चुनाव 2024 पर भी पड़ेगा. यही वजह है कि 9 राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर तमाम सियासी दलों ने अभी से तैयारियां शुरू कर दी हैं.


इस साल त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड, कर्नाटक, मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं. सभी राज्यों में सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है और राजनीतिक समीकरणों को कसौटी पर कसा जाने लगा है. इन 9 राज्यों के विधानसभा चुनावों में विपक्षी एकता से लेकर बीजेपी की चुनावी मशीनरी तक सबका परीक्षण होने वाला है. आइए जानते हैं कि सियासी दलों में से कौन कितने पानी में है?


त्रिपुरा में बीजेपी की मुसीबत बढ़ा सकते हैं क्षेत्रीय दल


2023 में सबसे पहले चुनाव पूर्वोत्तर राज्यों में होने हैं. इनमें से एक त्रिपुरा में बीजेपी के सामने सत्तारूढ़ दल होने के नाते दोबारा वापसी करने की चुनौती है. साल 2018 में बीजेपी ऐतिहासिक प्रदर्शन करते हुए 35 सीटें जीती थीं. बीते साल बीजेपी को मुख्यमंत्री भी बदलना पड़ा था. इस बार बीजेपी के सामने कांग्रेस-वामदलों के गठबंधन से इतर तृणमूल कांग्रेस और एक अलग चौथा मोर्चा 'टिपरा मोथा' ने मुश्किलें बढ़ा दी हैं. त्रिपुरा राज परिवार के वंशज प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मन की नवगठित आदिवासी पार्टी 'टिपरा मोथा' ने फिलहाल बीजेपी और कांग्रेस दोनों से दूरी बना रखी है. इसका प्रभाव राज्य की 20 आरक्षित सीटों पर पड़ सकता है.


मेघालय में बीजेपी-कांग्रेस के लिए एनपीपी बनेगी चुनौती


साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस बहुमत हासिल नहीं कर सकी थी, लेकिन सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. केवल दो विधानसभा सीटें जीतने वाली बीजेपी ने नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) के साथ गठबंधन कर सरकार बना ली थी. इस बार के विधानसभा चुनाव में एनपीपी ने एनडीए से अलग होकर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुकी है. इस राज्य में बीजेपी का कुछ खास जनाधार नहीं है. वहीं, मेघालय में कांग्रेस विधायकों के तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने से टीएमसी मुख्य विपक्षी दल बन चुकी है. आसान शब्दों में कहें, तो राज्य मे कांग्रेस के लिए सत्ता में आना दूर की कौड़ी होगा. वहीं, बीजेपी के लिए अपनी सियासी जमीन बचाना ही प्राथमिकता होगी. 


नागालैंड में कांग्रेस के लिए एनडीपीपी-बीजेपी गठबंधन से पार पाना मुश्किल


इस साल की पहली तिमाही में नागालैंड में विधानसभा चुनाव होने हैं. नागालैंड में मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो (Neiphiu Rio) की अगुवाई में बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार चल रही है. एनडीपीपी के अध्यक्ष नेफ्यू रियो 9 बार नागालैंड के मुख्यमंत्री रहे हैं. नाागलैंड में इस बार के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी के साथ 20 सीटों पर समझौता किया है. साल 2018 में बीजेपी ने 20 सीटों में से 12 पर जीत हासिल की थी. आसान शब्दों में कहें, तो कांग्रेस के लिए इस गठबंधन से पार पाना मुश्किल है.


कर्नाटक में बीजेपी-कांग्रेस मे होगी कांटे की टक्कर


बीते साल कर्नाटक में हिजाब समेत कई मुद्दे लगातार सुर्खियों में छाए रहे. बीजेपी इस बार के विधानसभा चुनाव में कर्नाटक के सीएम बसवराज बोम्मई के चेहरे पर ही चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है. वहीं, कांग्रेस ने भी कमर कस ली है. हालांकि, डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया के बीच की सियासी खींचतान कांग्रेस के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है. वहीं, क्षेत्रीय दल जेडीएस कन्नड़ गौरव की बात करते हुए किंगमेकर की भूमिका में आकर एचडी कुमारस्वामी को फिर से सीएम पद पर देखने की ख्वाहिश पाल रहा है. वहीं, बीजेपी के करीबी रहे रेड्डी बंधुओं में से एक जनार्दन रेड्डी ने अलग पार्टी बनाकर बीजेपी के माथे पर बल ला दिए हैं. कांग्रेस और जेडीएस के बीच गठबंधन को लेकर अब तक फैसला नहीं हुआ है, तो कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे देखना दिलचस्प होगा.


तेलंगाना में केसीआर से मुकाबला नहीं आसान, जड़ें जमाने की कोशिश में बीजेपी


तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखरराव (केसीआर) लगातार दो बार से चुनाव जीत रहे हैं. टीआरएस से बीआरएस बन चुकी केसीआर की पार्टी की तेलंगाना में गहरी पैंठ है. वहीं, बीजेपी ने राज्य में अपनी जड़ें तेजी से जमाते हुए कई टीआरएस नेताओं को पार्टी में शामिल किया है. ये रणनीति कुछ वैसी ही है, जैसी पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी ने अपनाई थी. वहीं, तेलंगाना में कांग्रेस के लिए बीआरएस को चुनौती दिन नामुमकिन ही नजर आता है. 


राजस्थान में चुनाव से पहले गुटबाजी में उलझी बीजेपी-कांग्रेस


साल के अंत में राजस्थान विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे पहले ही सत्तारूढ़ दल कांग्रेस में गुटबाजी खुलकर सड़कों पर आ चुकी है. सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ परोक्ष रूप से सचिन पायलट ने मोर्चा खोला हुआ है. गहलोत और पायलट के बीच की अदावत का हल निकालना कांग्रेस के लिए जरूरी है. वहीं, बीजेपी आलाकमान के साथ पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के रिश्तों में खींचतान की खबरें भी खूब सुर्खियों में रही हैं. वसुंधरा राजे खुद को सीएम प्रोजेक्ट कराने के लिए बीजेपी पर दबाव बनाने में भी पीछे नहीं रही हैं. कुल मिलाकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए हालात आसान नहीं है, लेकिन पायलट और गहलोत के बीच तकरार से कांग्रेस की राह ज्यादा मुश्किल नजर आती है.


छत्तीसगढ़ में बीजेपी के लिए अपनी सियासी जमीन वापस खोजना चुनौती


साल 2018 में छत्तीसगढ़ के तीन बार सीएम रहे रमन सिंह के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव लड़ने वाली बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया था. कांग्रेस ने 90 में से 68 सीटें जीतकर बीजेपी के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर को जमकर भुनाया था. छत्तीसगढ़ में कांग्रेस आलाकमान सीएम भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव की बीच सियासी अदावत कैसे खत्म करेगी, इस पर सबकी नजर बनी हुई है. वहीं, बीजेपी इस बार पीएम नरेंद्र मोदी के ही चेहरे पर चुनाव लड़ने जा रही है. राज्य में बीजेपी के लिए अपनी सियासी जमीन वापस पाना सबसे बड़ी चुनौती होने वाली है.


मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी की सीधी टक्कर


साल 2018 में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 114 पर जीत हासिल कर बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया था. निर्दलीय विधायकों का समर्थन लेकर कमलनाथ को कांग्रेस ने सीएम बना दिया था. हालांकि, दो साल बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया कके करीबी 22 विधायकों की बगावत से कांग्रेस सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान फिर से सत्ता पर काबिज हो गए. एमपी में बीजेपी के खिलाफ सत्ताविरोधी लहर पिछले चुनाव में ही नजर आ चुकी थी. वहीं, कांग्रेस के लिए दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के बीच की सियासी खींचतान मुश्किलें बढ़ा सकती है.


मिजोरम में एमएनएफ मजबूत, बीजेपी दे सकती है कांग्रेस को दांव


मिजोरम में जोरमथांगा के नेतृत्व वाली मिजो नेशनल फ्रंट यानी एमएनएफ (MNF) की सरकार है. साल 2018 के विधानसभा चुनाव में एनडीए की सहयोगी पार्टी एमएनएफ ने 40 में से 26 सीटों पर जीत हासिल की थी. उस चुनाव में कांग्रेस 5 सीटों पर सिमट गई थी. बीजेपी के साथ गठबंधन में एमएनएफ काफी मजबूत रही है, लेकिन बीते साल अक्टूबर में बीजेपी प्रमुख वनलालमुआका ने अकेले ही 40 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था. हालांकि, अभी चुनाव में काफी समय है, तो संभावना जताई जा रही है कि एमएनएफ और बीजेपी फिर से एक साथ आ सकते हैं. वहीं, कांग्रेस के लिए यहां अपनी जमीन बचाना चुनौती होगी.


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