महंगे पेट्रोल-डीजल को लेकर संसद में हंगामा, सरकार की दलील- बढ़ी हुई कीमतों का फायदा केंद्र से ज्यादा राज्यों के हिस्से
सरकार की मानें तो केंद्र सरकार जितना भी एक्साइज ड्यूटी के जरिए पैसा वसूलती है, उसमें से 42 फ़ीसदी हिस्सा राज्यों के पास जाता है यानी राज्यों के पास केंद्र सरकार द्वारा वसूले जा रहे पैसे में से एक बड़ा हिस्सा जाता ही है, लेकिन उसके साथ ही राज्य अपना भी टैक्स वसूलते हैं
नई दिल्ली: पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों को लेकर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा मचा हुआ है. राज्यसभा में आज कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर सरकार से सवाल पूछा कि जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत 2013-14 के मुकाबले आज भी कम है तो आखिर पेट्रोल और डीजल अपने ऐतिहासिक स्तर पर क्यों बिक रहा है?
बजट सत्र के दूसरे चरण के पहले दिन सदन की कार्यवाही विपक्ष के हंगामे के चलते नहीं चल सकी. कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दल पेट्रोल और डीजल के मुद्दे पर चर्चा की मांग करते रहे. जबकि राज्यसभा के चेयरमैन वेंकैया नायडू ने साफ तौर पर कहा कि आने वाले दिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमतों को लेकर सदन में चर्चा हो सकती है, लेकिन आज यह मुमकिन नहीं. लेकिन विपक्ष आज ही चर्चा की मांग पर अड़ा रहा और पूरा दिन इसी हंगामे के चलते सदन की कार्यवाही स्थगित होती रही.
कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के नेता यही मांग कर रहे थे कि पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमतों का मुद्दा सीधे तौर पर जनता से जुड़ा हुआ है और इसमें अगर एक दिन की भी देरी होती है, तो इस दौरान जनता की क्या हालत होगी.
कांग्रेस की तरफ से नेता विपक्ष मलिकार्जुन खड़गे ने कार्य स्थगन प्रस्ताव का नोटिस देते हुए मांग की कि ये एक ऐसा मुद्दा है, जिससे देश की जनता पर सीधा असर पड़ रहा है. महंगाई लगातार बढ़ती जा रही है और हालत यह है कि पेट्रोल 100 रुपये के पास और डीजल 80 रुपये के पार बिक रहा है. इससे जनता के ऊपर काफी बोझ पड़ रहा है.
सिर्फ कांग्रेस ही नहीं बल्कि विपक्षी दलों के सांसदों ने भी पेट्रोल और डीजल की लगातार बढ़ती कीमतों को लेकर सरकार को घेरा. विपक्षी दलों के सांसदों का यही कहना था कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत आज भी करीबन 60 से 65 डॉलर प्रति बैरल है लेकिन फिर भी देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में आग इस वजह से लगी हुई है क्योंकि केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी 2013-14 की तुलना में कई गुना बढ़ा दी है और उसकी वजह से पेट्रोल की जितनी कीमत उससे दोगुनी से ज्यादा कीमत एक्साइज ड्यूटी और टैक्स लगाकर वसूली जा रही है.
हालांकि सरकार की तरफ से पहले भी लगातार यही कहा जाता रहा है कि पेट्रोल और डीजल की कीमतें अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के आधार पर तय की जाती हैं और उसमें सीधे तौर पर सरकार का कोई रोल नहीं होता. रही बात एक्साइज ड्यूटी और टैक्स की तो सरकार की दलील यही है कि इसके लिए सिर्फ केंद्र सरकार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी लेती है तो अलग-अलग राज्य सरकारें भी टैक्स वसूलती हैं.
सरकार की मानें तो केंद्र सरकार जितना भी एक्साइज ड्यूटी के जरिए पैसा वसूलती है, उसमें से 42 फ़ीसदी हिस्सा राज्यों के पास जाता है यानी राज्यों के पास केंद्र सरकार द्वारा वसूले जा रहे पैसे में से एक बड़ा हिस्सा जाता ही है, लेकिन उसके साथ ही राज्य अपना भी टैक्स वसूलते हैं और इस वजह से पेट्रोल और डीजल पर लगने वाले एक्साइज ड्यूटी और टैक्स में से अगर किसी को सबसे ज्यादा पैसा मिलता है तो वह राज्य सरकारें हैं ना कि केंद्र सरकार. इस वजह से केंद्र सरकार के ऊपर पेट्रोल-डीजल की बढ़ी कीमतों का ठीकरा फोड़ना ठीक नहीं है.
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