नई दिल्ली: ऐसे वक्त में जब मजदूरों की मुश्किलें बढ़ी हैं और नौकरी का संकट और अधिक गहराया है, उस वक्त उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने एक ऐसा अध्यादेश पारित किया है, जो राहत के बजाए इस वर्ग के लिए बड़ी आफत लेकर आएगा.


यूपी सरकार द्वारा श्रम कानूनों में किए गए बदलावों को तुरंत रद्द किया जाना चाहिए. आप मजदूरों की मदद करने के लिए तैयार नहीं हो. आप उनके परिवार को कोई सुरक्षा कवच नहीं दे रहे. अब आप उनके अधिकारों को कुचलने के लिए कानून बना रहे हो. मजदूर देश निर्माता हैं, आपके बंधक नहीं हैं. कांग्रेस की महासचिव और यूपी प्रभारी प्रियंका गांधी ने ये ट्वीट उत्तर प्रदेश सरकार के उस अध्यादेश के विरोध में किया है जिसमें श्रम कानून के कई प्रावधानों को निलंबित करने की बात कही गई है.





अध्यादेश में करार के साथ नौकरी करने वाले लोगों को हटाने, नौकरी के दौरान हादसे का शिकार होने और समय पर वेतन देने जैसे तीन नियमों को छोड़कर अन्य सभी श्रम कानूनों को तीन साल के लिए स्थगित कर दिया गया है. ये नियम यूपी में मौजूद सभी राज्य और केंद्रीय इकाइयों पर लागू होंगे. इसके दायरे में 15000 कारखाने और लगभग 8 हज़ार मैन्युफैक्चरिंग यूनिट आएंगी.


श्रम कानून को स्थगित करने के यूपी सरकार के फैसले के खिलाफ अब विपक्ष गोलबंद है. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने तो सीधे सीएम योगी का इस्तीफा मांगा है. उन्होंने कहा कि यह बेहद आपत्तिजनक और अमानवीय है. श्रमिकों को संरक्षण न दे पाने वाली गरीब विरोधी बीजेपी सरकार को तुरंत त्यागपत्र दे देना चाहिए.


यही नहीं वामपंथी दलों समेत सात पार्टियों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को चिट्ठी लिखकर भी श्रम कानून में बदलाव पर आपत्ति जताई है. चिट्ठी में इन्होंने आरोप लगाया है कि गुजरात, मध्य प्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पंजाब ने फैक्ट्री अधिनियम में संशोधन के बिना काम की अवधि को आठ घंटे प्रतिदिन से बढ़ाकर 12 घंटे कर दिया है. इन राजनीतिक दलों ने आशंका जताई है कि दूसरे राज्य भी ऐसा कदम उठा सकते हैं.


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