नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने यूपीएससी (UPSC) जिहाद कार्यक्रम के लिए सुदर्शन टीवी को कारण बताओ नोटिस जारी किया है. सुप्रीम कोर्ट में मामले पर चल रही सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने कार्यक्रम में प्रोग्राम कोड के उल्लंघन की बात पाई है. चैनल को इस बारे में नोटिस भेज कर 28 सितंबर तक जवाब देने को कहा गया है. इसके आधार पर आगे कार्रवाई की जाएगी.
सिविल सर्विस में पहले की तुलना में ज्यादा मुसलमानों के आने को एक साजिश का हिस्सा बताने वाले इस कार्यक्रम का प्रसारण 4 एपिसोड के बाद रोक दिया गया था. कोर्ट ने कार्यक्रम की प्रस्तुति के तरीके पर सवाल उठाते हुए सॉलिसीटर जनरल से पूछा था कि क्या सरकार में किसी ज़िम्मेदार व्यक्ति ने इन 4 एपिसोड को देखा? उन्हें नियमों के खिलाफ पाया?
आज मामले की सुनवाई शुरू होते ही सॉलिसीटर जनरल ने चैनल को जारी नोटिस की जानकारी दी. फिलहाल सुनवाई स्थगित कर देने का सुझाव दिया. याचिकाकर्ता फ़िरोज़ इकबाल खान के वकील अनूप जॉर्ज चौधरी ने कहा कि उन्हें सुनवाई टाले जाने पर कोई आपत्ति नहीं है.
कोर्ट ने सॉलिसीटर जनरल से जानना चाहा कि क्या मंत्रालय याचिकाकर्ताओं को भी अपनी बात रखने का मौका देगा. सॉलिसीटर जनरल ने इससे मना करते हुए कहा कि यह एक वैधानिक कार्रवाई है. इसमें 2 ही पक्ष हैं- चैनल और सरकार. इस तरह की कार्रवाई में किसी और को नहीं सुना जा सकता. इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अगर सरकार का फैसला हमारे पक्ष में नहीं होता, तो हम उसे चुनौती देंगे.
इसके बाद जजों ने आदेश लिखवाना शुरू किया. बेंच के अध्यक्ष जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा, “सॉलिसीटर ने हमें बताया है कि केबल टीवी नेटवर्क रेग्युलेशन एक्ट की धारा 20 के तहत सुदर्शन टीवी को नोटिस भेजा गया है. चूंकि इस पर 28 सितंबर तक जवाब आना है. सॉलिसीटर ने सुनवाई टालने का आग्रह किया है. हमने बाकी वकीलों से बात की. उन्हें इस पर कोई आपत्ति नहीं है. इसलिए 5 अक्टूबर को अगली सुनवाई होगी.”
कोर्ट ने यह भी साफ किया कि फिलहाल कार्यक्रम के प्रसारण पर लगी अंतरिम रोक जारी रहेगी. कोर्ट ने कहा है कि सरकार अगली तारीख पर उसे रिपोर्ट दे. इस रिपोर्ट में यह बताया जाए कि चैनल के जवाब को देखने के बाद उसका क्या निष्कर्ष है. क्या वह चैनल के ऊपर कोई कार्रवाई करेगी. कोर्ट ने यह भी कहा है कि मामले में उसकी मंजूरी के बिना सरकार कोई आदेश जारी न करे.
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