नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर सुदर्शन टीवी अपने यूपीएससी जिहाद कार्यक्रम से आपत्तिजनक सामग्री को हटा दे, तो उसके प्रसारण को अनुमति दी जा सकती है. कोर्ट ने कार्यक्रम में पूरे मुस्लिम समुदाय के गलत चित्रण पर चिंता जताई. कोर्ट ने कहा, “हम टीवी कार्यक्रमों के लिए सेंसर बोर्ड की भूमिका नहीं निभाना चाहते. लेकिन हमारे कुछ संवैधानिक कर्तव्य हैं. हमें लोगों की गरिमा की रक्षा करनी है.“


4 एपिसोड के बाद रोक दिया गया था कार्यक्रम का प्रसारण


सिविल सर्विस में पहले की तुलना में ज्यादा मुसलमानों के आने को एक साजिश का हिस्सा बताने वाले इस कार्यक्रम का प्रसारण 4 एपिसोड के बाद रोक दिया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने ऐसा कुछ याचिकाओं की सुनवाई करते हुए किया था. इन याचिकाओं में यह बताया गया था कि कार्यक्रम में पूरे मुस्लिम समुदाय को साजिशकर्ता के तौर पर दिखाया जा रहा है. उनके बारे में विद्वेषपूर्ण टिप्पणियां की जा रही है.


चैनल के वकील ने क्या दलील रखीं?


जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, इंदु मल्होत्रा और के एम जोसफ की बेंच के सामने सुदर्शन टीवी ने इस बात से इनकार किया कि वह पूरे मुस्लिम समुदाय को निशाना बना रहा है. चैनल के वकील श्याम दीवान ने कहा, “हम किसी भी प्रतिभाशाली व्यक्ति के यूपीएससी में चयन के खिलाफ नहीं हैं. लेकिन जकात फाउंडेशन नाम की संस्था मुस्लिम छात्रों को यूपीएससी की परीक्षा पास करने के लिए मदद पहुंचा रही है. इस संस्था को मदीना ट्रस्ट, मुस्लिम एड, इस्लामिक फाउंडेशन जैसे विदेशी संगठनों से आर्थिक मदद मिली है. यह सभी संगठन भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल रहे हैं. इनके पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई और आतंकवादी संगठनों से संबंध है. हमने खोजी पत्रकारिता के जरिए यह तथ्य निकाले और उन्हें लोगों के सामने पेश किया.“


श्याम दीवान ने करीब 2 घंटे तक अपनी दलीलों से बेंच को यह आश्वस्त करने की कोशिश की कि चैनल ने खोजी पत्रकारिता की है. इस तरह से किसी कार्यक्रम के प्रसारण को रोक देना उचित नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि सभी एपिसोड का प्रसारण होने दिया जाए. उसके बाद अगर यह पाया जाता है कि चैनल ने कोई गलती की है, तो उसके लिए जो कानूनी कार्रवाई होगी चैनल उसका सामना करने को तैयार है.


हमें सेंसर बोर्ड की तरह काम नहीं करना है- सुप्रीम कोर्ट


सुनवाई के अंत में जजों ने कहा, “हम जानते हैं कि हमें सेंसर बोर्ड की तरह काम नहीं करना है. अगर हमने ऐसा किया तो कल को देश की तमाम अदालतें ऐसा करने लगेंगी. हम पत्रकारों की स्वतंत्रता को जरूरी मानते हैं. लेकिन आपके कार्यक्रम के अब तक के 4 एपिसोड में जिस तरह की भाषा और प्रस्तुति रखी गई है, उसमें कई बातें आपत्तिजनक हैं.“ जजों ने खासतौर पर इस बात पर आपत्ति जताई की कार्यक्रम में बार-बार जालीदार नमाजी टोपी और हरी टीशर्ट पहने दाढ़ी वाले व्यक्ति का कार्टून इस्तेमाल किया जा रहा है. उसके पीछे आग की लपटें दिखाई जा रही है. उसी तरह AIMIM नेता अकबरुद्दीन ओवैसी, कांग्रेस नेता इमरान प्रतापगढ़ी के लिए आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया. उनकी तस्वीरों को भी आग की लपटों में दिखाया गया.


जजों ने श्याम दीवान से पूछा कि क्या चैनल कार्यक्रम को प्रस्तुत करने के तौर तरीके में बदलाव करेगा. जजों का कहना था कि खोजी पत्रकारिता के खिलाफ कोई नहीं है. अगर किसी विदेशी संगठन की कथित साजिश की जानकारी चैनल के पास है, तो उसे लोगों के सामने रखने में कोई समस्या नहीं है. लेकिन एक पूरे समुदाय को साजिश में शामिल दिखाया जाए, इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती है. बेंच के सदस्य जस्टिस के एम जोसेफ ने कहा, “जैन और ईसाई संगठन भी अपने समुदाय के छात्रों की मदद करते हैं. हर कोई मुख्यधारा में शामिल होना चाहता है. आप इसमें बाधा क्यों डालना चाहते हैं?”


प्रतिभाशाली व्यक्ति के यूपीएससी में चयन के खिलाफ नहीं- चैनल के वकील


चैनल के वकील ने एक बार फिर यह साफ किया कि वह किसी भी प्रतिभाशाली व्यक्ति के यूपीएससी में चयन के खिलाफ नहीं है. उनकी पूरी खबर सिर्फ भारत विरोधी विदेशी संगठनों की साजिश के बारे में है. वकील ने यह कहा कि कार्यक्रम में बदलाव को लेकर जजों की तरफ से कही गई बातों पर चैनल विचार करेगा. सोमवार को इस मसले पर नया हलफनामा दाखिल किया जाएगा. कोर्ट ने इसकी अनुमति देते हुए सुनवाई सोमवार के लिए टाल दी.


मामले की सुनवाई शुरू करते हुए कोर्ट ने टीवी चैनलों की बेलगाम रिपोर्टिंग को लेकर भी चिंता जताई थी. पूछा था कि क्या इस बारे में नए सिरे से गाइडलाइंस बनाने की जरूरत है? सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के वकील तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया, “टीवी चैनलों के लिए तय प्रोग्राम कोर्ट के तहत गलत और भड़काऊ बातों के प्रसारण की अनुमति नहीं है. प्रोग्राम कोड का उल्लंघन करने वाले चैनल पर किस तरह की कार्रवाई हो, इसे लेकर नए सिरे से नियम बनाए जा रहे हैं. प्रस्ताव के मुताबिक जो कई तरह की कार्रवाई भविष्य में चैनलों पर की जा सकती है, उनमें 30 दिन तक प्रसारण रोक देना भी शामिल है. फिलहाल नए नियमों के प्रस्ताव पर लोगों के विचार लिए जा रहे हैं.“