UR Rao Man Who Made Satellite: पिछले सप्ताह 23 अगस्त को भारत के तीसरे मून मिशन चंद्रयान-3 का लैंडर चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरा तो 140 करोड़ भारतीयों का दिल गर्व से भर गया. पूरी दुनिया ने भारत को बधाईयां दीं. आज जब चंद्रयान-3 का रोवर चांद की सतह पर चहलकदमी करते हुए अपने मिशन को अंजाम दे रहा है तो जरा उस शख्स को याद कर लेते हैं, जिसने भारत को अंतरिक्ष में उड़ने का हौसला दिया, जिस पर सवार होकर आज एक युवा देश चांद पर पहुंच चुका है.


ये कहानी एक ऐसे शख्स की है, जिसने कुछ युवा वैज्ञानिकों के साथ मिलकर भारत की अंतरिक्ष गाथा लिख डाली. 1970 के दशक में जब देश अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए जूझ रहा था तो इस वैज्ञानिक ने बेंगलुरु शहर से दूर शेड्स के नीचे देश के लिए सैटेलाइट तैयार कर दिया. हम बात कर रहे हैं यूआर राव की.


1962 में पड़ी भारत के स्पेस प्रोग्राम की नींव


साल 1962 में स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इंडियन नेशनल कमेटी ऑफ स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) की स्थापना की और विक्रम साराभाई को इसका चेयरमैन बनाया. यही आगे चलकर भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन बना, जो इसरो के नाम से ज्यादा मशहूर है. 


INCOSPAR के गठन के बाद से विक्रम साराभाई भारत के अंतरिक्ष मिशन को रफ्तार देने में जुट गए, लेकिन समस्या ये थी कि स्पेस टेक्नोलॉजी की जरा भी जानकारी कोई देश देने को तैयार नहीं था. ऐसे में साराभाई को रिसर्च और अन्य काम के लिए तेज दिमाग लोगों को जरूरत थी. 


सैटेलाइन मैन ऑफ इंडिया की एंट्री


1966 में साराभाई ने अपने एक पूर्व पीएचडी छात्र को फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरीज (पीआरएल), अहमदाबाद में अपने पास बुलाया. इस 34 वर्षीय युवा वैज्ञानिक का नाम था उडुपी रामचंद्र राव यानी यूआर राव, जिसे भारत का सैटेलाइट मैन कहा गया. यूआर राव अमेरिका के मेसाच्यूसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से पोस्ट डॉक्टरेट की डिग्री ले चुके थे और कॉस्मिक रेंज पर काम कर रहे थे.


जब राव ने भारत के सैटेलाइट प्रोग्राम की कमान संभाली तो वह टीम में इकलौते ऐसे शख्स थे, जिसने सैटेलाइट को देखा था. उस समय सैटेलाइट इंजीनियरिंग टीम को त्रिवेन्द्रम के पास थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) और अहमदाबाद में पीआरएल के बीच विभाजित किया गया था. 1971 में विक्रम साराभाई की असामयिक मृत्यु हो गई और सतीश धवन इसरो के प्रमुख बने. 


सतीश धवन इंडियन इंस्टीट्यू़ट ऑफ साइंस के निदेशक थे और बेंगलुरु से बाहर नहीं जाना चाहते थे. धवन ने इसरो को अहमदाबाद से बेंगलुरु ले आने के लिए बातचीत की, जिसे राव ने मौके के रूप में लिया. कर्नाटक उनका अपना प्रदेश था. उडुपी और बेल्लारी में उनका बचपन बीता था. 


शेड्स के नीचे सैटेलाइट प्रोग्राम की शुरुआत


बेंगलुरू में जमीन की तलाश शुरू हुई. कर्नाटक सरकार ने राव को बेंगलुरु शहर के बिल्कुल बाहर कुछ शेड दिए. इन्हीं शेड्स में थर्मोकोल, विनाइल और डक्ट टेप का इस्तेमाल करके साफ कमरों में बदला गया, जिनके नीचे भारत के सैटेलाइट प्रोग्राम की शुरुआत हुई.


इन्हीं शेड्स के नीचे युवा वैज्ञानिकों की टीम ने यूआर राव के नेतृत्व में काम करना शुरू किया, जिनकी औसत उम्र 26 साल थी. 1972 से 75 तक लगातार यहां काम चलता रहा और भारत का पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट बनकर तैयार हुआ, जो कि एक शानदार कदम था. किसी भी देश ने 3 साल में सैटेलाइट नहीं बनाया था. 


इसके बाद यूआर राव की निगरानी में 18 और सैटेलाइट के डिजाइन तैयार हुए. बाद में वह इसरो के चेयरमैन बनें और एक दशक तक इस पद पर रहे. वे इसरो के एएसएलवी से पीएसएलवी तक के सफर के साक्षी रहे. 2017 में 85 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. बेंगलुरु स्थित इसरो का सैटेलाइट सेंटर आज उन्हीं के नाम पर जाना जाता है.


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