अज़ीम शायर बशीर बद्र को 47 साल बाद मिली PHD की डिग्री
दरअसल बशीर बद्र साहब ने डॉक्टरेट की उपाधि साल 1973 में ही प्राप्त कर ली थी लेकिन वह व्यक्तिगत तौर पर इसे लेने नहीं जा सके थे. अब अलीगढ़ मुस्लिम युनीवर्सिटी ने उन्हें उनकी डिग्री उनके घर भिजवा दी है.
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा न हों
इस बेहतरीन शेर और ऐसे सैंकड़ों और बेहतरीन शेरों को रचने वाले बशीर बद्र साहब को उनकी पीएचडी की डिग्री मिल गई है. अब आप सोच रहे होंगे कि उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें कैसे और क्यों पीएचडी की डिग्री दी गई है. दरअसल बशीर बद्र साहब ने डॉक्टरेट की उपाधि साल 1973 में ही प्राप्त कर ली थी लेकिन वह व्यक्तिगत तौर पर इसे लेने नहीं जा सके थे. अब अलीगढ़ मुस्लिम युनीवर्सिटी ने उनकी डिग्री उनके घर भिजवा दी है.
बहुत सरल भाषा में अपनी बात, अपने भाव और एहसास को आम आदमी तक पहुंचा देना बहुत बड़ी कला है और बशीर में ये प्रतिभा कूट-कूटकर भरी है. ग़ज़ल को लोकप्रिय बनाने में बशीर का नाम अगली पंक्तियों में शुमार है. बशीर साहब की भाषा में वो रवानगी मिलती है जो बड़े-बड़े शायरों में नहीं मिलती.
बशीर बद्र साहब की शायरी उस बच्चे की तरह लगती है जिसके मासूम चेहरे को देखकर घर के सबसे तजरुबेकार बुजुर्ग का मन भी कुछ पाने की जिद्द में मचल उठता है. आज हम देखते हैं कि इंग्लिश पोएट्री ऑपरेशन टेबल पर पड़ी हुई है...यही हाल लगभग फारसी ज़बान का भी है. उर्दू आज भी मज़हबी जबान नहीं है यह बताने की जद्दोजहद में लगी हुई है. इन सब के बीच बशीर बद्र साहब किस भाषा के शायर हैं यह कहना जरा कठिन है. वो न मीर लगते हैं न गालिब..जब भी पढ़िए तो बस बशीर ही लगते हैं. उनकी अपनी ज़मीन है. जो न ग़ालिब जैसी है न मीर जैसी. वो बशीर जैसी है.
उनके अनगिनत शेर दशकों से लोगों के जुबान पर हैं. ऐसा ही एक शेर है...
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाएये वहीं शेर है जो कभी इंदिरा गांधी ने अपनी राजदार सहेली ऋता शुक्ला को अपने दिल का अहसास जाहिर करते हुए लिखा था. ये वही शेर है जो मशहूर फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी ने अंग्रेजी रिसाला ''स्टार एंड स्टाइल'' में अपने हाथों से उर्दू में लिखा था. ये वही शेर है जिसे एक वक्त हिन्दुस्तान के सद्र रहे ज्ञानी जैल सिंह ने अपनी आखिरी तकरीर में अपनी बात खत्म करते हुए पढ़ा था. ये वही शेर है जिसे राज्य सभा से जब नारायण दत्त तिवारी रिटायर हो रहे थे तो उन्होंने पढ़ा था.
इसके बाद शिमला समझौता के अवसर पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फकार अली भुट्टो ने अपना भाषण बशीर बद्र के इस शेर को पढ़कर शुरू किया था.. दुश्मनी जमकर करो लेकिन यह गुंजाइश रहे जब कभी हम दोस्त बन जाए तो शर्मिंदा न होविश्व सुंदरी बनने पर सुष्मिता सेन ने बशीर साहब के ये शेर पढ़ा था
कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फासले से मिला करो
बशीर बद्र साहब की खासियत यही है कि उन्होंने इतनी आसान भाषा चुनी कि वे सबके शायर हो गए. शेर की तरह उनका ये दोहा देखिए
सबकी पूजा एक सी अलग-अलग है रीत मस्जिद जाए मौलवी कोयल गाए गीतबशीर बद्र साहब की शायरी नन्हीं दूब पर अटकी हुई ओस की बूंद और सर्दी में पेड़ की फुनगी से उतरती हुई धूप की तरह है.