उरी हमले के शहीदों के परिजन बोले- ‘शहादत पर गर्व, लेकिन सरकार भूल गई अपने वादे’
उरी हमले के बाद सेना ने सबक लेते हुए आतंकियों के ख़िलाफ बड़ा अभियान चलाया. उस वक्त इन परिवार वालों के जख्मों को थोड़ी राहत जरूर मिली होगी, लेकिन सरकारी तंत्र के रवैये ने इनके घावों को फिर से गहरा कर दिया है.
नई दिल्ली: पिछले साल 19 सितंबर को जम्मू-कश्मीर में श्रीनगर से 100 किलोमीटर दूर उरी में सेना के ब्रिगेड के हेडक्वार्टर पर हुए आतंकवादी हमले में 17 जवान शहीद हो गए थे, जबकि इस हमले में 19 जवान घायल हो गए थे. अब एक साल बाद एबीपी न्यूज़ ने शहीदों के परिवार वालों से बात की है. शहीदों के परिवार वालों का कहना है कि हमें अपनों की शहादत पर गर्व है, लेकिन सरकार ने जो वादे किए थे, एक साल बाद उन वादों को सरकार भूल गई है.
बिहार में भोजपुर के शहीद अशोक कुमार
जम्मू-कश्मीर के उरी में ठीक एक साल पहले जब आतंकियों ने कायराना हमला किया तो बिहार के भोजपुर का बेटा अशोक कुमार सिंह भी आर्मी हेडक्वार्टर में ही तैनात था. हमले के बाद अशोक कुमार ने आतंकियों के खिलाफ मोर्चा संभाला और मुठभेड़ में शहीद हो गए. परिवार को उनकी कमी आज भी खलती है, लेकिन उन्हें उनकी शहादत पर नाज है.
शहीद अशोक सिंह का एक बेटा फौज में है और दूसरा भी फौज में जाने की तैयारी कर रहा है. पूरे परिवार में देशसेवा के इस जज्बे के बीच सरकार की अनदेखी का भी दर्द झलक जाता है. अशोक के गांव वालों की मांग है कि पाकिस्तान की ओर से हो रही आतंकी साज़िशों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए.
महाराष्ट्र के यवतमाल जिले के शहीद विकास कुलमेथे
उरी हमले में शहीद हुए यवतमाल के विकास कुलमेथे के परिवार से जब एबीपी न्यूज ने बात की तो उनका दर्द छलक पड़ा. सरकार और प्रशासन की बिना मदद के ये परिवार शहीद की याद में खुद के पैसों से स्मारक बना रहा है.
एक साल बाद इस परिवार की सुध लेने वाला कोई नहीं है. परिवार से सरकारी नौकरी, मकान, खेती जैसे सैकड़ों वादे तब किए गए थे, लेकिन कोई पूरा नहीं हुआ. आप हैरान होंगे कि सरकार ने तब गांव में शहीद विकास के नाम एक स्मारक बनाने का वादा किया था. लेकिन इंतजार जब एक साल तक चला तो परिवार खुद के खर्चे से स्मारक बना रहा है.
यूपी के जौनपुर के शहीद राजेश सिंह
यूपी के जौनपुर के रहने वाले 6 बिहार रेजिमेंट में तैनात शहीद राजेश सिंह जब शहीद हुए तो उनके परिवार वालों से बड़े बडे वाद किए गए. लेकिन अब सिर्फ वादे ही रह गए हैं. हैरानी तो इस बात की है कि अशोक सिंह की शहादत के नाम पर सियासत करने वाले वाले नेताओं ने भी उनके परिवार की सुध नहीं ली.
राजेश सिंह की शहादत के बाद सरकार ने पत्नी को आर्थिक मदद दी, लेकिन माता-पिता को मिलने वाली सहायता फाइलों में ही अटकी रह गई. अब परिवार की बस एक ही ख्वाहिश है कि शहीद बेटे की मूर्ति गांव में लगवा दी जाए, ताकि नौजवान उससे प्रेरणा ले सके.
बिहार में कैमूर के शहीद राकेश सिंह
उरी हमले के एक साल बाद भी बिहार में कैमूर के शहीद राकेश सिंह की पत्नी आज भी जिला प्रशासन और सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रही हैं. शहीद के परिवार की कोई सुध नहीं ले रहा. कभी बड़े-बड़े वादे करने वाले अधिकारी और मंत्री अब उनका फोन भी नहीं उठाते.
महाराष्ट्र के अमरावती के शहीद विकास
महाराष्ट्र के अमरावती जिले के शहीद विकास की याद में दोस्तों ने हर साल 18 सितंबर को गांव में ब्लड डोनेशन कैंप लगाकर जरूरतमंद लोगों की मदद करने का फैसला किया. ABP न्यूज ने जब उनके एक दोस्त से इस तरह के आयोजन के बार में पूछा तो उन्होंने कहा कि हम अपने दोस्त विकास उईके की तरह अगर सीमा पर जाकर देश की सेवा नहीं कर सकते तो क्या हुआ गांव में रहकर हम देश की सेवा तो कर ही सकते हैं.
महाराष्ट्र के नासिक के शहीद संदीप ठोक
उरी हमले में शहीद हुए महाराष्ट्र के नासिक के रहने वाले संदीप ठोक के परिवार वालों को आज भी सरकार की तरफ से किए गए वादों के पूरे होने का इंतजार है. हालांकि केंद्र और राज्य सरकार के तरफ से शहीद के परिवार को पैसे तो मिले, लेकिन पैसों के अलावा सरकार ने जितने भी वादे किए थे एक भी पूरे नहीं हुए. सरकार द्वारा किए गए वादों की उम्मीद में ही शहीद संदीप के पिता ने अपने जमा की हुए पूरे 15 लाख रुपए शहीद स्मारक बनाने में लगा दिए.
झाऱखंड के खूंटी के शहीद जावरा मुंडा
झाऱखंड के खूंटी के रहने वाले जावरा मुंडा की शहादत पर कई मंत्री और अधिकारी उनके घर पहुंचकर पिछले साल कई घोषणाएं की थी और हर साल शहीद को श्रद्धांजलि देने का एलान भी किया था लेकिन ये सारी बातें सिर्फ घोषणाएं बनकर रह गईं. यहां तक कि जिला उपायुक्त को जब याद दिलाई गई तो वो शहीद के बरसी पर श्रद्धांजलि देने पहुंचे.
जिले के अधिकारीयों ने शहीद के कब्रगाह पर चबूतरा बनाने से लेकर आदर्श ग्राम योजना के तहत गांव के विकास की घोषणाएं की थी लेकिन एक साल बीत जाने के बाद भी गांव में न अधिकारी पहुंचे और न विकास.
राजस्थान में राजसमंद के शहीद हवलदार नेम सिंह रावत
राजस्थान में राजसमंद जिले के रहने वाले हवलदार नेम सिंह रावत भी उरी हमले में शहीद हुए थे. एक साल बाद भी परिवार गम में डूबा है. गम सरकार के खोखले वादों का भी है. गम से किसी तरह उबरा परिवार अब गांव में अपने खर्चे पर नेम सिंह की शहादत की याद में मूर्ति लगा रहा है और पूछ रहा है कि शहादत पर गांव को मॉड्रन बनाने को जो वादे किए गए थे वो कब पूरे होंगे.
बिहार में गया के शहीद सुनील कुमार
बिहार में गया के सुनील कुमार भी उरी हमले में शहीद हुए थे. शहादत के वक्त इस गांव के विकास के लिए कई सरकारी वादे किए गए थे. लेकिन कुछ नहीं हुआ. लेकिन फिर भी परिवार को आज भी शहादत पर गर्व है. शहीद की मां कह रही है कि जिस जगह मेरा बेटा कुर्बान हुआ वहीं ले जाकर मुझे मार डालो. ये गुस्सा सरकार और प्रशासन के झूठे वादों पर है.
महाराष्ट्र के सातारा जिले के लांस नायक चंद्रकांत शंकर
उरी हमले में महाराष्ट्र के सातारा जिले के लांस नायक चंद्रकांत शंकर भी शहीद हुए थे. एक साल बाद भी परिवार सदमे में हैं. शहाद पर गर्व है लेकिन सरकारी मदद का अब भी इंतजार है.
शहीद शंकर गलांडे के दो छोटे बच्चे हैं, जिनका पालन पोषण परिवार उसी तरह कर रहा है जैसा सपना शंकर ने देखा था. हालांकि परिवार को सरकार और सेना से कुछ मदद मिली लेकिन अब भी ऐसे कई वादे हैं जो पूरे नहीं हुए.
शहीद लांस नायक राजेश कुमार
यूपी के बलिया जिले के लांस नायक राजेश कुमार यादव भी उरी हमले में शहीद होने वाले जवानों में थे. आतंकी हमले से सहमे देश ने उस वक्त शहीदों के परिवार का साथ देने का भरोसा दिया. कई वादे भी किए गए, लेकिन बोझ में डूबे परिवार वालों को कुछ भी नहीं मिला. हर बार परिवार की ओर से एक ही सवाल उठता है कि आखिर आतंक के पनाहगार पाकिस्तान को भारत धूल कब चटाएगा.
बिहार के भोजपुर के शहीद राजकिशोर सिंह
बिहार के भोजपुर के राजकिशोर सिंह ने भी उरी हमले में शहादत दी थी. वक्त गुजरने के बाद भी इस परिवार के जख़्म भरे नहीं हैं. देश की सेवा में इन्होंने अपना बेटा खोया, लेकिन किसी ने इनकी सुध लेने की जहमत नहीं उठाई. शहीद की पत्नी को सरकार से कुछ मदद जरूर मिली, लेकिन वो इतनी नहीं थी, जिससे परिवार की गाड़ी को आगे बढ़ाया जा सके..
यूपी के संतकबीरनगर के शहीद गणेश शंकर
उरी हमले में शहादत के बाद सरकार की अनदेखी की एक और कहानी यूपी के संतकबीरनगर की है, जहां के जाबांज गणेश शंकर ने आतंकियों से लड़ते हुए अपनी जान गंवा दी. गणेश शंकर भी उरी हमले में हुए हमले के वक्त सेना के हेडक्वार्टर में मौजूद थे.
शहीद गणेश शंकर की दो नन्ही बच्चियां हैं. परिवार को भरोसा था कि सरकार से मदद मिलेगी तो इन बच्चियों का जीवन संवर सकेगा, लेकिन साल भर गुजरने के बाद अब उनकी उम्मीदें जवाब दे रही हैं. सरकार ने सहारे की जो उम्मीद बंधाई थी वो खत्म होती नजर आ रही है.
यूपी के ग़ाजीपुर के शहीद हरेंद्र यादव
यूपी के ग़ाजीपुर के छोटे से गांव देऊपुर में रहने वाले हरेंद्र के परिवार की माली हालत बेहद खराब है. हरेंद्र परिवार में इकलौते कमाने वाले थे, उनके जाने के बाद परिवार तंगी में आ गया है. उरी हमले के बाद सरकार के नुमाइंदों ने शहीद के घर वालों से तमाम वायदे किए थे जो अब तक पूरे नहीं हो सके हैं. घर वालों को सरकार के रवैये का मलाल है. लंबे समय से कोई इनकी सुद भी नहीं लेने को आया.
उरी हमले के बाद सेना ने सबक लेते हुए आतंकियों के ख़िलाफ बड़ा अभियान चलाया. उस वक्त इन परिवार वालों के जख्मों को थोड़ी राहत जरूर मिली होगी, लेकिन सरकारी तंत्र के रवैये ने इनके घावों को फिर से गहरा कर दिया है.