नई दिल्ली: इस वक्त सारी दुनिया बस एक सवाल के जवाब का इंतज़ार कर रही है कि अमेरिका का अगला राष्ट्रपति कौन होगा. वोटिंग की गिनती अपने आखिरी दौर में है और कुछ घंटों में इस सवाल का जवाब मिल जाएगा. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि अमेरिका में हिंदू नाम वाला शख्स कभी राष्ट्रपति बन सकता है?
या यूं कहें कि क्या अमेरिका में कोई हिंदू राष्ट्रपति बन सकता है. आप कहेंगे क्या मजाक है. लेकिन अमेरिका में कोई है, जो इस सपने को जी रहा है. अपने संगठन के जरिए ये सुनिश्चित कर रहा है कि अगले कुछ सालों में एक हिंदू अमेरिका का राष्ट्रपति बने. क्या ऐसा हो सकता है? अगर हां तो कैसे? इसी बात का जवाब ABP न्यूज संवाददाता प्रणय उपाध्याय ने अमेरिका में खोजने की कोशिश की है.
क्या अमेरिका में रहने वाले हिंदू डॉक्टर, इंजीनियर और साइंटिस्ट की तरह अमेरिका का राष्ट्रपति भी बन सकते हैं ? इस सवाल की वजह वो 3 लोग हैं जो अमेरिकन हिंदू कोएलिशन नाम की संस्था से जुड़े हैं. भले ही ये संस्था बीते 4 साल से ही सक्रिय हो, लेकिन इसके सपने आसमान जितने ऊंचे हैं. एक हिंदू को अमेरिकी राष्ट्रपति बनते देखने के हैं.
अगले 4 सालों में हिंदू राष्ट्रपति बनाने की संभावना जताने वाले शेखर तिवारी, जो अमेरिकन हिंदू कोएलिशन नाम की संस्था के अध्यक्ष हैं. उनका कहा है, "हमारा ख्याल है कि हो सकता है कि 2024 में नम्रता रंधावा (निकी हेली) अमेरिकी राष्ट्रपति बन सकती हैं." उन्होंने कहा कि आपके जीवन में ही एक हिंदू अमेरिकी राष्ट्रपति भारत आएगा. उस समय लोग ये देखते रहेंगे कि ये कौन है.
कौन है हिंदू राष्ट्रपति का चेहरा, निकी नम्रता रंधावा या कमला देवी ?
ऐसे ढेरों चेहरे हैं जो, अमेरिकी चुनाव में हिंदुस्तान के दबदबे की कहानी बयां कर रहे हैं. इसका सबूत डॉनल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप की पेन्सिवेंनिया की रैली में भी देखने को मिला. ट्रंप और बाइडेन इस राज्य को जीतने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं, क्योंकि माना जा रहा है कि जो भी इस राज्य को जीतेगा वो व्हाइट हाउस की रेस जीतेगा. ऐसी ही एक रैली के बाद एबीपी न्यूज़ के कैमरे पर इवांका ने कहा हम भारत को बहुत प्यार करते हैं.
जब एबीपी के न्यूज़ के संवाददाता प्रणय उपाध्याय ने इवांका से कहा, "इवांका, इवांका, इवांका, मैं इंडिया से आया हूं." तो इवांका ने जवाब में कहा, "हाय." इस पर संवाददाता प्रणय ने कहा, "मैं इंडिया से सिर्फ आपका कैंपेन कवर करने आया हूं." तो इवांका ने जवाब दिया, "थैंक्यू सर, हम इंडिया से प्यार करते हैं (वी लव इंडिया)."
संवाददाता प्रणय उपाध्याय को दिए जवाब से सवाल उठता है कि भारत से प्यार करना क्या अमेरिकी राजनीति की मजबूरी बन गया है. इस सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि रिपब्लिकन पार्टी के चुनावी दफ्तर में हिंदुओं को लुभाने के लिए नेताओं ने राम नाम की चुनरी ओढ़ ली है.
अमेरिकन हिंदू कोएलिशन के अध्यक्ष शेखर तिवारी कहते हैं, "जब अमेरिकी कांग्रेस में 25-30 हिंदू, साड़ी पहने महिलाएं, बिंदी लगाए वहां खड़ी होंगी. देखिएगा इस देश का चित्र बदल जाएगा."
तो यहूदी लॉबी से आगे निकल जाएगी हिंदू लॉबी
व्हाइट हाउस में शांति पाठ का आयोजन हो, ट्रंप का भारतीयों के बीच दिवाली मनाना हो, या फिर जो बाइडेन का गणेश चतुर्थी की शुभकामनाएं देना. इन कदमों से ये तो पता चलता है कि दोनों ही पार्टियों को भारतीयों का वोट चाहिए. अमेरिकन हिंदू कोएलिशन नाम की संस्था को इसी में मौका दिख रहा है, जिसका दावा है कि आने वाले सालों में हिंदू लॉबी यहूदी लॉबी से आगे निकल जाएगी और दुनियाभर के हिंदुओं को बचाने में अमेरिकी शक्ति का भरपूर इस्तेमाल होगा.
शेखर तिवारी ने कहा, "बांग्लादेश के हिंदू-पाकिस्तान के हिंदुओं की रक्षा कौन करेगा, हिंदुस्तान तो करेगा नहीं, हिंदुस्तान उन्हें शरण दे सकता है अपने यहां बुला सकता है, लेकिन उनके देश में उनकी स्थिति ठीक नहीं कर सकता. एक यही देश कर सकता है यूनाइडेट स्टेट्स ऑफ अमेरिका."
जब एबीपी न्यूज़ ने शेखर तिवारी से पूछा कि आखिर यूनाइटेड स्टेट्स हिंदुओं पर अत्याचार के खिलाफ तलवार क्यों बनेगा? आखिर उन्हें ऐसा सोचने की प्रेरणा कहां से मिली, तो उन्होंने जवाब दिया, "दूसरे विश्वयुद्ध के बाद यहूदियों की 22 देशों में बड़ी बेइज्जती होती थी. वो तबाह होकर न्यूयॉर्क के क्वींस इलाके में जमा हुए, तो उन्होंने कहा कि इस तबाही से कैसे बचा जाए. उन्होंने कहा कि राजनीतिक संगठन बनाओ, राजनीतिक शक्ति बढ़ाओ, तो उन्होंने जन्म दिया अमेरिकन जूइश पॉलिसी को. आज वो 115 वर्ष पुरानी है, हरेक देश में उनके मुख्यालय हैं और वो अमेरिकन सरकार को रेप्रिजेंट करती हैं. जहां भी यहूदियों को तकलीफ होती है वो अमेरिकन पावर का इस्तेमाल करते हैं."
कितने भारतीय वोटर हैं अमेरिका में
अमेरिका में कुल वोटरों की संख्या 23 करोड़ है. इसमें भारतीय वोटरों का हिस्सा सिर्फ 19 लाख है, जो कुल वोट का महज 0.82 फीसदी है. तो क्या सिर्फ 1 फीसदी वोट के साथ इतना बड़ा सपना देखा जा सकता है? वो भी अमेरिका जैसे देश में जहां राष्ट्रपति पद को लेकर बाहर से आने वालों के लिए सख्त नियम हैं. ऐसे में इस तरह का दावा कैसे किया जा सकता है. इस अहम सवाल पर अमेरिकन हिंदू कोएलिशन के अध्यक्ष का अपना जवाब है.
वो कहते हैं, "हिंदुओं की भी 3 धाराएं हैं. हम पॉलिटिकल हिंदू हैं, हम धार्मिक या सांस्कृतिक हिंदू नहीं हैं. चाणक्य धार्मिक हिंदू नहीं थे. चाणक्य ने भारत को एक किया, राष्ट्र का निर्माण किया. बाजीराव पेशवा ने भी यही किया. इनमें से कोई भी धार्मिक नहीं था. इसी तरह हम हैं."
अमेरिकन हिंदू कोएलिशन का दावा है कि अमेरिका में भारतीय और गैर भारतीय हिंदुओं की आबादी 50 लाख है. इसमें भारत के साथ-साथ कैरेबियन हिंदू और ऐसे लोग भी शामिल हैं, जिनकी सनातन धर्म में आस्था है. उन्होंने कहा, "अभी भी ये देश सबसे पावरफुल देश है. जैसे देखिए बांग्लादेश. वहां 20 मिलियन हिंदू हैं, लेकिन भारत उनकी कोई मदद नहीं कर पा रहा. उनकी सहायता लेता है हसीना सरकार को जिताने के लिए, लेकिन वो बेचारे मरते रहते हैं. लेकिन हिंदुस्तान कुछ नहीं करता तो, उनकी रक्षा कैसे की जाए. बांग्लादेश के हिंदू-पाकिस्तान के हिंदुओं की रक्षा कौन करेगा, हिंदुस्तान तो करेगा नहीं, हिंदुस्तान उन्हें शरण दे सकता है, अपने यहां बुला सकता है, लेकिन उनके देश में उनकी स्थिति ठीक नहीं कर सकता. एक यही देश कर सकता है यूनाइडेट स्टेट्स ऑफ अमेरिका.
अमेरिकियों से ज्यादा कमाते हैं वहां रहने वाले भारतीय
शेखर तिवारी का दावा है कि ऐसा किया जा सकता है क्योंकि अमेरिका में रहने वाले हिंदू पढ़े लिखे होने के साथ साथ सम्पन्न भी हैं. अमेरिका के लोगों की सालाना औसत आदमनी 4.62 लाख रुपये है, जबकि भारतीयों की औसत आय 8.92 लाख रुपये है. सीधे शब्दों में कहें तो अमेरिका में रहने वाला भारतीय अमेरिकी नागरिकों से दोगुना कमाता है. यही वो आंकड़ा है, जिसने शेखर तिवारी जैसे लोगों को सपने देखने का हौसला देता है. जिनका दावा है कि मालामाल भारतीयों को खुश करने के लिए ही डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडेन ने कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति पद के लिए चुना.
शेखर तिवारी ने कहा, "कमला हैरिस कैसे वाइस प्रेसिडेंट बनीं. उनके सामने 6 अश्वेत अमेरिकी थे, फिर भी वो जीतीं क्यों, क्या इसके पीछे कमला नाम है, नहीं इसके पीछे पैसा है. हमने जो बाइडेन को 7 मिलियन डॉलर प्रचार के लिए दिए हैं. बाइडेन के पास पैसे नहीं थे, इसीलिए उन्होंने कमला हैरिस को चुना, क्योंकि ऐसा करके उन्हें सिलिकन वैली से पैसे मिले."
कैलिफॉर्निया 17 कांग्रेश्नल डिस्ट्रिक्ट में तो मुकाबला दो भारतीय मूल के अमेरिकियों में है. रिपब्लिकन पार्टी ने जहां रो खन्ना पर दोबारा भरोसा जताया है तो वहीं डेमोक्रेटिक पार्टी ने रितेश टंडन को चुनाव में उतारा है. प्रमिला जयपाल, रिक मेहता, निशा शर्मा ये वो नाम हैं, जो आने वाले सालों में अमेरिकी राजनीति में ऊंचे पदों पर बैठ सकते हैं.
अमेरिकी हिंदू यहूदियों को सम्पन्नता में पछाड़ चुके हैं
- 22 लाख रुपये तक की सालाना आय वालों में यहूदी 16 फीसदी तो भारतीय 17 फीसदी हैं.
- 37 लाख से 75 लाख की सालाना आमदनी वालों में यहूदी 24 फीसदी तो भारतीय 34 फीसदी हैं.
अगर बात शिक्षा की करें तो 34 फीसदी यहूदी पोस्ट ग्रेजुएट हैं वहीं 38 फीसदी भारतीय. उच्च शिक्षा के मामले में भी यहूदियों पर भारतीय भारी हैं. यही बात अमेरिकी नेताओं को हिंदुओं के प्रति आकर्षित कर रही है और वो इस तरह उनके रंग में रंग कर वोट मांग रहे हैं.
यानी अमेरिकी चुनाव में चाहे कोई भी पार्टी हो वो हिंदू वोटरों को अपने पाले में लाने के लिए कोशिश कर रही है. जिससे अमेरिकी राजनीति में हिंदू वोटरों का ग्राफ तेजी से ऊपर जा रहा है जिसका मतलब कुछ लोग 2024 में हिंदू राष्ट्रपति के तौर पर निकाल रहे हैं.
शेखर तिवार ने कहा, "आपके जीवन में एक हिंदू अमेरिकी राष्ट्रपति बनेगा. हमारा ख्याल है कि हो सकता है कि 2024 में नम्रता रंधावा (निकी हेली) अमेरिकी राष्ट्रपति बन सकती हैं. इस बार का भी इलेक्शन देखें तो तुलसी गोबार्ड भी हिंदू कैंडिडेट थीं. उन्होंने डेमोक्रेटिक पार्टी के राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी का दावा ठोका था तो हिंदू आ रहे हैं. हो सकता है भविष्य में तुलसी गोबार्ड जैसे हिंदू किसी बड़े पद पर बैठ जाएं."
2024 में अमेरिकी राष्ट्रपति हिंदू होगा या नहीं ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन 77 साल के जो बाइडेन अगर जीते तो कमला हैरिस की राष्ट्रपति बनने की संभावनाएं बहुत मजबूत हो जाएंगी. तब कौन जाने हिंदू नाम वाली कमला हैरिस का मुकाबला नम्रता रंधावा और तुलसी गेबार्ड से हो.
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