नई दिल्ली: अमेरिका और ईरान के बीज जारी तनाव के बीच वाशिंगटन ने तेहरान के खिलाफ नई आर्थिक पाबंदियों का एलान कर दिया है. इसमें ईरान के खनन, टेक्साइल, मैन्यूफैक्चरिंग और कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में पाबंदियों के साथ ही कई व्यक्तियों पर भी प्रतिबंधों का एलान शुक्रवार को किया गया. हालांकि, इन ताजा प्रतिबंधों से भारत और ईरान के बीच पहले ही बहुत गिर चुके द्विपक्षीय कारोबार पर किसी बड़े असर की उम्मीद नहीं है. मगर, चाबहार, शाहिद बहिश्ती बंदरगाह और जाहेदार रेलवे जैसी बड़ी ढांचागत निर्माण परियोजनाओं के लिए कुछ मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं.


भारत और ईरान का द्विपक्षीय कारोबार वित्त वर्ष 2019-20 के 8 महीनों के दौरान लगभग 3.5 अरब डॉलर दर्ज किया गया है जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में करीब 75 प्रतिशत कम है. इस भारी गिरावट की बड़ी वजह ईरानी तेल आयात पर लगा ब्रेक है. भारत ने ईरान से अपने तेल आयात पर निर्भरता लगभग न के बराबर कर ली है.


भारतीय निर्यातक संघ FIEO के महानिदेशक डॉ अजय सहाय के मुताबिक ताजा प्रतिबंधों के कारण सीधे तौर पर तो कोई बड़ा असर भारत के लिए नहीं है. जिन क्षेत्रों पर अमेरिका ने पाबंदियां लगाई हैं उनमें भारतीय कंपनियों का कोई बड़ा कारोबार ईरान के साथ नहीं है. हालांकि, ईरान पर बढ़ते प्रतिबंधों के कारण एक बड़ी चिंता रुपया-रियाल विनिमय व्यवस्था के लिए खड़ी हो गई है. सहाय कहते हैं कि तेल का कारोबार लगभग बंद होने से भारत के पास यूको बैंक और आईडीबीआई बैंक के खातों में अब निर्यात करने के लिए केवल तीन महीने भर की पूंजी बची है. यदि इस बीच कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होती तो भारत से ईरान को होने वाला चाय और बासमति का निर्यात प्रभावित होगा. इन दोनों ही उत्पादों के लिए ईरान एक महत्वपूर्ण बाजार है. ध्यान रहे कि ईरान को होने वाली भारतीय निर्यात में कृषि उत्पाद ही अधिक हैं.


भारत और ईरान बीते कुछ समय से एक प्रिफरेंशियल ट्रेड एग्रिमेंट को लेकर भी बातचीत कर रहे हैं. यह एक ऐसी कारोबारी व्यवस्था है जिसमें दो देश चुनिंदा उत्पादों पर सीमा शुल्क घटाते हैं. हालांकि इस प्रिफरेंशियल ट्रेड एग्रिमेंट के होने से भी भारत को ईरान के साथ कारोबारी में अमेरिकी पाबंदियों के लांघने का कोई रास्ता नहीं मिलता. मगर, ईरान जैसे करीबी मुल्क में बड़े बाजार की संभावना के साथ भारत जुड़ा रहना चाहता है. भारत में ईरान को कृषि उत्पाद, रसायन, निर्माण मशीनरी और दवा उद्योग के लिए बड़ा बाजार माना जाता है.


ईरान और अमेरिका के बीच जारी तनाव में भारत की एक बड़ी चिंता चाबहार परियोजना को लेकर है जहां भारत का लाखों डॉलर का निवेश फंसा है. अमेरिका अभी तक चाबहार परियोजना पर भारत को रियायत देता आया है. बीते दिनों अमेरिका के साथ 2+2 डायलॉग के बाद विदेश मंत्री एस जयशंकर की भारत लौटने से पहले ईरान की यात्रा ने इस पर भरोसा भी दिया था. मगर, ताजा घटनाक्रम ने इन सवालों को जरूर जगाया है कि कहीं तनाव के कारण चाबहार जैसी परियोजना का काम न प्रभावित हो जाए. सख्त होती अमेरिकी पाबंदियों के बीच भारत के लिए चाबहार तक आवाजाही, साजो-सामान पहुंचाने और जरूरी कामकाज को चलाने की मुश्किलें आ सकती हैं. गौरतलब है कि व्यापक चाबहार परियोजना के लिए भारत-ईरान के साथ-साथ अफगानिस्तान भी शामिल है. इस योजना का उद्देश्य अफगानिस्तान और मध्य एशिया तक कारोबार का नया रास्ता खोलना है.


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