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US Presidential Election: कमला हैरिस या डोनाल्ड ट्रंप... पुराने रिकॉर्ड से जानते हैं कौन ज्यादा फायदेमंद? नेहरू कनेक्शन भी दिलचस्प

कमला हैरिस भारत के लिए बस इतना सा कहती हैं कि अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों को राजनीति में उतना प्रतिनिधित्व नहीं मिला, जितना मिलना चाहिए.

अब ये तो तय है  कि जो बाइडेन अमेरिका के राष्ट्रपति नहीं होंगे. अब रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप को चुनौती मिलेगी अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस से, जिन्हें जो बाइडेन ने भी सपोर्ट कर दिया है. कमला हैरिस का भारत से पुराना नाता है, ये भी अब सब जानते हैं, लेकिन क्या भारतीय मूल की होने के नाते कमला हैरिस अमेरिका में राष्ट्रपति बनने के बाद भी भारत के लिए कुछ खास करेंगी. या फिर कमला हैरिस से ज्यादा फायदेमंद डोनल्ड ट्रंप हैं. आखिर भारत के लिए ट्रंप और कमला हैरिस में से कौन है बेहतर और आखिर कमला हैरिस का देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू से क्या है कनेक्शन, आज बात करेंगे विस्तार से. 

तो सबसे पहले आपको बताते हैं कमला हैरिस का नेहरू कनेक्शन और फिर बात करेंगे कि ट्रंप और हैरिस में से भारत के लिए बेहतर कौन है. तो जवाहर लाल नेहरू 15 अगस्त 1947 से 27 मई 1964 तक देश के प्रधानमंत्री थे. देश में जॉइंट सेक्रेटरी की नियुक्ति और उनके तबादले का अधिकार प्रधानमंत्री के ही पास होता था. पंडित नेहरू ने 1960 में एक जॉइंट सेक्रेटरी की नियुक्ति की. उनका नाम था पीवी गोपालन. पूरा नाम पैनगंडू वेंकटरमन गोपालन. इन्हीं पीवी गोपालन की सबसे बड़ी बेटी का नाम था श्यामला. पीवी गोपालन दिल्ली में थे तो उन्होंने अपनी बेटी को लेडी इर्विन कॉलेज से होम साइंस में बीएससी में एडमिशन दिलवाया. श्यामला ने बीएससी पूरी भी की. इसी दौरान यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्कले के लिए न्यूट्रिशन और एंडोक्राइनोलॉजी में मास्टर्स के लिए श्यामला ने अप्लाई किया. वो सेलेक्ट भी हो गईं. उन्हें स्कॉलरशिप भी मिल गई. इसके बाद पीवी गोपालन ने अपनी जमा-पूंजी इकट्ठा करके श्यामला को अमेरिका भेज दिया.

इसी पढ़ाई के दौरान श्यामला की मुलाकात जमैका मूल के डोनाल्ड जे हैरिस से हुई. बाद में दोनों ने शादी कर ली. इन्हीं दोनों की बेटी हैं कमला हैरिस, जो अब अमेरिका की नई उपराष्ट्रपति हैं. हालांकि, श्यामला ने 1970 के आस-पास डोनाल्ड जे हैरिस से तलाक ले लिया था. दोनों बेटियों कमला हैरिस और माया हैरिस के साथ श्यामला कई बार चेन्नई अपने पिता के यहां आ चुकी थीं. कैंसर की वजह से 11 फरवरी, 2009 को श्यामला की मौत हो गई थी. कमला हैरिस साल 2009 में ही उनकी राख लेकर चेन्नई आई थीं और उसे समंदर में बहाया था.जब कमला हैरिस अमेरिका की उपराष्ट्रपति बनीं तो इसी चेन्नई कनेक्शन की वजह से भारत के लोगों के मन में एक उम्मीद जगी थी.

क्या वो उम्मीदें पूरी हो पाईं. इसका जवाब हां या नहीं में हो ही नहीं सकता क्योंकि कमला हैरिस भले ही भारतीय मूल की हैं और इस बात को वो बार-बार कहती भी हैं, लेकिन उनकी प्राथमिकता में सिर्फ और सिर्फ अमेरिका है, कोई और देश नहीं. डोनल्ड ट्रंप के साथ भी यही है. उनकी भी प्राथमिकता कोई और देश नहीं बल्कि अमेरिका ही है. ट्रंप के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के व्यक्तिगत रिश्ते बड़े शानदार रहे हैं. तभी तो प्रधानमंत्री मोदी भी अमेरिका जाकर कहते हैं अबकी बार ट्रंप सरकार और ट्रंप भी भारत आते हैं तो कहते हैं अबकी बार मोदी सरकार.

कमला हैरिस भारत के लिए बस इतना सा कहती हैं कि अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों को राजनीति में उतना प्रतिनिधित्व नहीं मिला, जितना मिलना चाहिए. तो ऐसे में भारत के एक देश के तौर पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए न तो ट्रंप के दोबारा राष्ट्रपति बनने से कुछ बदलेगा और न ही कमला हैरिस के. हां, जहां पर भारत के लोगों की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं का सवाल है, वो है वीजा, जिसमें ट्रंप के मुकाबले कमला हैरिस का रुख ज्यादा लचीला है.

भारत से अमेरिका में जो लोग नौकरी करने के लिए जाते हैं, उन्हें एच 1 बी वीजा की जरूरत होती है और ट्रंप हमेशा से ऐसे वीजा के खिलाफ हैं, जबकि कमला हैरिस चाहती हैं कि इस तरह के वीजा दिए जाएं और वो भी बिना किसी कैपिंग के. यानी कि जिस देश को जितना वीजा चाहिए, अमेरिका उसे मुहैया करवाए ताकि अप्रवासी लोग अमेरिका में रह सकें. वहीं, ट्रंप इसके बिल्कुल खिलाफ हैं. इस लिहाज से कमला हैरिस का अमेरिका का राष्ट्रपति बनना मुफीद है, क्योंकि अगर इस तरह का वीजा नहीं होता तो कमला हैरिस के पैदा होने के वक्त जिस अमेरिका में महज 12 हजार भारतीय मूल के लोग थे, अब उनकी संख्या 30 लाख के पार नहीं हुई होती, लेकिन अमेरिका की राजनीति में बाइडेन के हटने के बाद भी डोनाल्ड ट्रंप का पलड़ा भारी ही नजर आ रहा है और ट्रंप भी इस बात को दोहराने लगे हैं कि उनके लिए बाइडेन की तुलना में कमला हैरिस को हराना ज्यादा आसान है.

लिहाजा अभी ये कहना बेहद जल्दबाजी होगी कि महज भारतीय मूल का होने की वजह से कमला हैरिस कुछ ऐसे कदम उठाएंगी, जो भारत के हित में होंगे. ब्रिटेन में ऋषि सुनक इसका उदाहरण रह चुके हैं, जहां प्रधानमंत्री बनने के बाद भी ऋषि सुनक ने ऐसा कुछ भी भारत के लिए नहीं किया, जिसे इतिहास में दर्ज किया जा सके. कमला हैरिस अगर ऐसा कुछ करती हैं, तो जरूर उसके बारे में बात की जाएगी. फिलहाल तो 5 नवंबर तक का इंतजार करना होगा और देखना होगा कि अमेरिका के इस राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप वापसी करते हैं या फिर बाइडेन के हटने से कमला हैरिस के पक्ष में वोटर लामबंद होकर उन्हें अमेरिका की पहली महिला राष्ट्रपति बना देते हैं.

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