नई दिल्लीः गुरुवार को ट्रंप प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भारत की परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) सदस्यता को लेकर कहा कि अमेरिका हमेशा से भारत की एनएसजी सदस्यता चाहता है लेकिन वो चीन की वजह से कुछ नहीं कर पाता. मध्य और दक्षिणी एशिया मामलों के मुख्य उप सचिव एलिस वेल्स ने कहा, ''एनएसजी एक आम सहमति वाला संगठन है. चीन के विरोध के चलते भारत इसका हिस्सा नहीं बन पा रहा है. चीन का कहना है कि सदस्यता पाने के लिए परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर करना जरूरी है और इसी बात का फायदा उठाकर वो अपना वीटो पावर इस्तेमाल करता है और भारत की सदस्यता में अड़ंगा डालता है, जबकि ज्यादातर पश्चिमी देश भारत के साथ हैं."
वेल्स ने कहा, ''चीन के वीटो के आधार पर हम भारत के साथ अपना सहयोग कम नहीं कर सकते. भारत एनएसजी की सदस्यता पाने के लिए सभी योग्यताओं को पूरी करता है और हम इसके लिए लगातार भारत की वकालत करते रहेंगे.'' भारत लंबे समय से परमाणु व्यापार का नियंत्रण करने वाले 48 सदस्यीय समूह एनएसजी में शामिल होने की कोशिश कर रहा है लेकिन चीन बार-बार भारत की कोशिशों में अड़चन डालता रहा है.
साफ-सुरक्षित ईंधन की कहानी फिर होगी शुरू
पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने 8 अक्टूबर, 2008 को साफ और सुरक्षित ईंधन के लिए भारत-अमेरिका परमाणु समझौता किया था. वेल्स ने बताया कि इस परमाणु समझौते को 10 साल पूरे होने वाले हैं. इस पर वेल्स ने कहा कि वेस्टिंगहाउस का दिवालियापन खत्म हो रहा है और अब हमारे पास मौका है कि हम एक दशक पहले भारत-अमेरिका के बीच उस ऐतिहासिक प्रक्रिया को फिर से शुरू करें जिससे कि करोड़ों भारतीयों को साफ और सुरक्षित ईंधन मिल सके. निश्चित रूप से हम वेस्टिंगहाउस और भारत के बीच इस मुद्दे पर चल रही को बातचीत को जारी रखेंगे.
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