नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने शनिवार को कहा कि सत्ता पाने के लिए धर्म और जाति के इस्तेमाल से समाज में नफरत और विभाजन का वातावरण पैदा हो सकता है. उन्होंने राजनीति में धर्म और जाति का इस्तेमाल करने वाले लोगों का मुकाबला करने के लिए अच्छे लोगों को एक साथ आने की जरूरत बताई. पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिशें डर, चिंता और अनिश्चिता का माहौल बना सकती हैं.


मनमोहन सिंह ने कहा कि शांति और सौहार्द के लिए सभी संस्थानों, न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका का धर्मनिरपेक्ष चरित्र पहली जरूरत है. एक समारोह में बोलते हुए उन्होंने कहा कि देश के प्रमुख संस्थान विश्वसनीयता की कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. उन्होंने रेखांकित किया कि अच्छी तरह से काम करने वाले संस्थानों के बिना राष्ट्र ‘‘नाकाम’’ हो जाते हैं.


कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि शांति और सौहार्द बनाए रखने के लिए देश के विभिन्न संस्थान एक आवश्यक शर्त हैं. इसके अलावा, उनका निष्पक्ष होना जरूरी है और उन्हें समाज के सभी तबकों के लिए काम करना चाहिए. मनमोहन सिंह ने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से राजनीतिक पार्टियों द्वारा अपने राजनीतिक हितों को आगे बढ़ाने और सत्ता हासिल करने के लिए धर्म, जाति के इस्तेमाल से समाज में नफरत का माहौल बन सकता है.


कांग्रेस नेता ने कहा, ‘‘समाज में शांति, सौहार्द और खुशहाली को बाधित करने वाली ताकतों के गलत इरादों का मुकाबला करने के लिए समाज के अच्छे तबके को साथ आने की जरूरत है.’’ गुरूनानक, रविंद्रनाथ टेगौर, महात्मा गांधी, सर मोहम्मद इकबाल का हवाला देते हुए पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि वे सभी एक ऐसा देश चाहते थे जो सांप्रदायिक अशांति से मुक्त हो और लोगों में उनकी जाति, नस्ल, रंग, धर्म के आधार पर कोई विभाजन नहीं हो.


मनमोहन सिंह ने कहा, ‘‘ यह हमेशा याद रखा जाना चाहिए कि भारत एक बहु-सांस्कृतिक, बहु जातीय, बहुभाषी देश है. हालांकि, कुछ ताकतें हैं जो इस विविधता का फायदा उठा रही हैं और देश की एकता के समक्ष चुनौतियां पैदा कर रही हैं.’’ उन्होंने कहा, ‘‘एक ऐसे समाज में जहां विभिन्न धर्मों के लोग रहते हैं, वहां डर, चिंता और अनिश्चितता से मुक्त जीवन जीने के लिए सांप्रदायिक सौहार्द बहुत अहम है.’’


पूर्व प्रधानमंत्री की टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है जब विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या में राम मंदिर के संवेदनशील मुद्दे पर ‘धर्म संसद’ बुलाई है. शांति और सौहार्द के लिए सभी संस्थानों का धर्मनिरपेक्ष चरित्र बनाए रखने को जरूरी बताते हुए उन्होंने कहा कि यह राजनीतिक, धार्मिक नेतृत्व, नागरिक समाज, बुद्धिजीवी, और मीडिया की जिम्मेदारी है कि वे संविधान और संस्थानों की विश्वनीयता को बनाए रखें.


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