Maiden Pharma: कफ सिरप बनाने में एक्सपायरी डेट वाले पदार्थ का इस्तेमाल, और भी कई खामियां, जानें मेडेन फार्मा पर प्रतिबंध के पीछे के कारण
Maiden Pharma Cough Syrups Row: हरियाणा की दवा कंपनी मेडन फार्मास्युटिकल्स के कफ सिरफ को लेकर की गई जांच में कई गड़बड़ियां पाई गई हैं. डब्ल्यूएचओ के मेडिकल अलर्ट के बाद कंपनी विवाद में आ गई थी.
Maiden Pharma Investigation: गांबिया (Gambia) में 66 बच्चों की मौत के बाद विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भारत (India) की मेडन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड (Maiden Pharmaceuticals Ltd) के खिलाफ मेडिकल अलर्ट (Medical Alert) जारी किया था. हरियाणा (Haryana) की इस कंपनी में निर्मित होने वाले चार कफ सिरप को लेकर विवाद गरमाया हुआ है. डब्ल्यूएचओ के मेडिकल अलर्ट के बाद भारत में मेडन फार्मा (Maiden Pharma) के खिलाफ जांच शुरू की गई.
हरियाणा के दवा नियंत्रण विभाग ने 7 अक्टूबर को मेडन फार्मा को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए जवाब देने के लिए एक हफ्ते का समय दिया था. बुधवार (12 अक्टूबर) को जनहित का हवाला देते हुए हरियाणा सरकार ने सोनीपत में चल रहे कंपनी के दवा कारखाने के उत्पादन पर पूरी तरह से रोक लगा दी. मेडन फार्मा को लेकर की गई जांच में 12 सूत्रीय खामियां पाए जाने का जिक्र किया गया है.
सिरप बनाने में पाई गई ये खामियां
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, दवा की एक्सपायरी डेट से पहले एक्सपायर होने वाले सॉल्वेट का इस्तेमाल सिरप बनाने में किया गया था. दूषित पदार्थों के लिए सॉल्वेंट का परीक्षण नहीं किया गया. उत्पादन तिथियों में गड़बड़ी पाई गईं और प्रमुख परीक्षण रिपोर्ट से बैच संख्या गायब मिली.
कंपनी ने एक सिरप की खेप नवंबर 2024 की एक्यपायरी डेट के साथ बनाई लेकिन उसमें जिस प्रोपलीन ग्लाइकोल का इस्तेमाल किया गया, उसकी एक्सपायरी डेट सितंबर 2023 थी. कंपनी ने क्वॉलिटी कंट्रोल के दौरान सॉल्वेंट में डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल का परीक्षण नहीं किया. चारों कफ सिरप की मैन्युफैक्चरिंग डेट दिसंबर 2021 दिखाई गई थी जबकि उनका निर्माण 2022 में शुरू हुआ. दो प्रोडक्ट के लिए फरवरी 2022 में सरकारी अनुमति दी गई थी.
परीक्षण में फेल होने बावजूद स्टैंडर्ड क्वॉलिटी घोषित
कई विश्लेषण रिपोर्ट के प्रमुख प्रमाणपत्रों में यह नहीं बताया गया था कि प्रोपलीन ग्लाइकोल समेत सिरप की खेपों में दूषित पदार्थों के होने का संदेह है. विश्लेषण रिपोर्ट के कुछ प्रमाणपत्रों में प्रोपलीन ग्लाइकोल की मैन्यूफैक्चरिंग और एक्सपायरी डेट नहीं बताई गई और प्रोपलील ग्लाइकोल की कुछ एक खेप एक परीक्षण में फेल हो गई लेकिन इसके बावजूद एनालिस्ट रिपोर्ट के सर्टिफिकेट में इसकी स्टैंडर्ड क्वॉलिटी को घोषित कर दिया गया.
हालांकि, कंपनी ने इसके छह महीनों की रियल टाइम और एक्सिलिरेटेड स्टेबिलिटी डेटा को सब्मिट किया लेकिन स्टेबिलिटी चैंबर में चारों में से कोई सिरप नहीं मिला. स्टेबिलिटी चैंबर ऐसे कमरे होते हैं जिनमें नमी और कई अन्य कारकों का अध्ययन करने के लिए तापमान को नियंत्रित किया जा सकता है. दवा कितने समय में खराब होगी, इनमें यह पता लगाया जाता है. कंपनी चारों सिरप के निर्माण के लिए इस्तेमाल किए गए उपकरणों को लेकर लॉग बुक पेश नहीं कर सकी. उत्पादों के लिए आवश्यक सत्यापन नहीं किया गया और इन प्रोसेस टेस्ट रिपोर्ट उपलब्ध नहीं कराई गई.
मेडन फार्मा के खिलाफ भारत सरकार ने उठाए ये कदम
भारत ने डब्ल्यूएचओ से उन 23 नमूनों की एनालिस्ट रिपोर्ट का सर्टिफिकेट भेजने के लिए कहा है जिनका परीक्षण चार सिरपों में डायथिलीन ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल की मात्रा का पता लगाने के लिए किया गया. इस बीच निर्यात की गई खेप के नियंत्रण नमूने, जिन्हें गुणवत्ता नियंत्रण प्रक्रिया के हिस्से के रूप में कंपनी द्वारा संग्रहीत किया गया था, उन्हें चंडीगढ़ की एक क्षेत्रीय ड्रग टेस्टिंग लैब में परीक्षण के लिए भेजा गया है. अधिकारियों ने कहा कि इन रिपोर्टों के आधार पर कंपनी को आगे की कार्रवाई का सामना करना पड़ेगा.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बुधवार को डब्ल्यूएचओ से प्राप्त या प्राप्त होने वाली रिपोर्ट और पूरे मामले को लेकर एक समिति का गठन किया. इस समिति में दवाओं के लिए स्थायी राष्ट्रीय समिति के उपाध्यक्ष डॉ वाईके गुप्ता, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी पुणे की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ प्रज्ञा यादव, राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र में महामारी-विज्ञान विभाग की अतिरिक्त निदेशक और प्रमुख डॉ आरती बहल और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन के अधिकारी एके प्रधान शामिल हैं.
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