आज बीएसपी प्रमुख मायावती का जन्मदिन है और यूपी में फिर एक बार उसी सोशल इंजीनियरिंग की चर्चा हो रही है जिसने मायावती को सत्ता तक पहुंचाया था. बात हो रही है ब्राह्मण कार्ड की. कांग्रेस ने 2022 में ब्राह्मण मुख्यमंत्री की मांग उठाकर नए समीकरण के जरिए सियासत की बिसात बिछा दी है.
दरअसल, उत्तरप्रदेश की पॉलिटिक्स में भगवान परशुराम के बहाने ब्राह्मणों की राजनीति एक बार फिर शुरू हो गई है. भगवान परशुराम की प्रतिमा के अनावरण के लिए यूपी के मेरठ पहुंचे पहुंचे कांग्रेस नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम ने यूपी की पॉलिटिकल पिच पर फिर एक बार ब्राह्मण वाली बॉल फेंक दी है.
2022 में बने ब्राह्मण मुख्यमंत्री
आचार्य प्रमोद कृष्णम ने यूपी में ब्राह्मणों पर अत्याचार का आरोप लगाकर 2022 में ब्राह्मण मुख्यमंत्री की मांग भी उठा दी. सिर्फ कांग्रेस के अचार्य प्रमोद कृष्णम ही नहीं, जेडीयू के केसी त्यागी ने भी परशुराम पर सुर में सुर मिलाए हैं. उनके अनुसार, कोई परशुराम के अनुयायियों को नजरअंदाज नहीं कर सकता.
बीते कुछ दिनों में भले इसकी चर्चा मद्धम पड़ गई हो लेकिन कांग्रेस पिछले साल से ही ब्राह्मणों के जरिए यूपी में 31 साल का सूखा खत्म करने की रणनीति बना रही है.
ब्राह्मण वोटरों के सहारे 2007 में मायावती ने हासिल की सत्ता
दरअसल, यूपी में ब्राह्मण वोटरों के सदुपयोग की सोशल इंजीनियरिंग के जरिए बीएसपी प्रमुख मायावती ने साल 2007 में ब्राह्मणों और दलितों का ऐसा गठजोड़ बनाया कि सीधे सत्ता तक पहुंच गईं.उस समय नारा भी दिया जाता था - ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जाएगा...आज मायावती का जन्मदिन है. और ठीक इसी मौके पर फिर एक बार उनके सोशल इंजीनियरिंग की सुगबुगाहट साफ सुनी जा सकती है.
दरअसल, यूपी में ब्राह्मण वोटरों की संख्या करीब 9-10 फीसदी है और 2007 बीएसपी की जीत में ब्राह्मणों की अहम भूमिका रही. तब 56 उम्मीदवार में से 41 विधायक चुने गए थे. वहीं 2012 में एसपी सरकार में 21 ब्राह्मण विधायक चुने गए और 2017 में बीजेपी की टिकट पर 58 ब्राह्मण चुनाव जीते.
कांग्रेस को ब्राह्मण कार्ड में नजर आ रहा कामयाबी का मंत्र
यानी कांग्रेस को कामयाबी का मंत्र ब्राह्मण कार्ड में नजर आ रहा है. पिछले दस जुलाई को एनकाउंटर में मारा गया गैंगस्टर विकास दुबे ब्राह्मण ही था. उस समय एक महीने में दर्जनभर अपराधियों का एनकाउंटर हुआ और सबके सब ब्राह्मण थे. उस समय से ही कांग्रेस योगी सरकार पर ब्राह्मणों के फर्जी एनकाउंटर और अत्याचार के आरोप लगा रही है.
इसके बाद समाजवादी पार्टी की तरफ से हर जिले में भगवान परशुराम की प्रतिमा लगाने का एलान किया तो परशुराम की राजनीति जोर पकड़ने लगी. बीच में कुछ दिनों तक भले इसकी चर्चा नहीं हुई हो लेकिन ब्राह्मण कार्ड की वापसी से साफ है कि ये मामला 2022 के चुनाव तक जोर-शोर से उठता रहेगा.
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