नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश सरकार ने रेलवे और गृह मंत्रालय से वाराणसी के मंडुआडीह स्टेशन का नाम बदलकर बनारस स्टेशन रखने के लिए मंज़ूरी मांगी थी. सोमवार को गृह मंत्रालय ने रेलवे की सहमति से ये मंज़ूरी दे है. अब जल्द ही उत्तर प्रदेश सरकार एक नोटिफ़िकेशन जारी कर मंडुआडीह स्टेशन का नाम बनारस स्टेशन हो जाने की घोषणा कर देगी. लेकिन अब ये महज़ औपचारिकता भर है. हालांकि नाम बदलने से पहले ही मंडुआडीह स्टेशन की बिल्डिंग का रेलवे ने काया कल्प कर दिया है. अब यह पहले का छोटा सा स्टेशन एक भव्य इमारत वाले वर्ल्ड क्लास स्टेशन में बदल चुका है.


बनारसियों ने किया स्वागत


एक ही शहर के दो नाम हैं वाराणसी और बनारस. दोनों ही सामान रूप से विश्व प्रसिद्ध हैं. एक शास्त्रीय है तो दूसरा भदेस. वरुणा और असि नाम की दो नदियों के बीच होने के कारण नाम पड़ा वाराणसी और यहां की संपन्नता और ख़ुशहाली को देख इसे बना हुआ रस यानी बनारस कहा गया. बनारस प्रेमियों के लिए दोनों ही नाम प्राण प्यारे हैं. मंडुआडीह का नाम बदल कर बनारस कर देने का बनारस के लोगों ने स्वागत किया है.


योगी सरकार ने बदले हैं कई रेलवे स्टेशनों के नाम


मंडुआडीह स्टेशन से पहले भी उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने कई प्रसिद्ध स्टेशनों के नाम बदले हैं. इससे पहले यूपी सरकार ने शहर और उनके स्टेशन दोनों के नाम बदले थे.


मुग़लसराय का नाम बदला


सबसे पहले वाराणसी जंक्शन से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मुग़लसराय स्टेशन का नाम बदल कर पंडित दीन दयाल उपाध्याय स्टेशन किया गया था. ये स्टेशन यूपी के चंदौली ज़िले के शहर मुग़लसराय में आता है. इस शहर का नाम भी बदल कर पंडित दीन दयाल उपाध्याय नगर कर दिया गया है.


इलाहाबाद जंक्शन का नाम बदला


इलाहाबाद और प्रयागराज ये दोनों ही नाम दुनिया भर में सामान रूप से जाने जाते हैं. इलाहाबाद सरकारी नाम था लेकिन कुम्भ के चलते प्रयागराज भी सबकी ज़ुबान पर रहता आया है. योगी सरकार ने इलाहाबाद कुम्भ से पहले पूरब का ऑक्स्फ़र्ड कहे जाने वाले इस शहर का आधिकारिक नाम बदल कर प्रयागराज कर दिया. इसके कुछ ही दिनों बाद इलाहाबाद जंक्शन का नाम भी बदल कर प्रयागराज जंक्शन कर दिया गया. हालांकि इस शहर में लगभग शुरुआत से ही प्रयागराज नाम का एक और स्टेशन मौजूद है जो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के क़रीब है.


राज्य सरकार का है अधिकार


किसी भी रेलवे स्टेशन का नाम बदलना राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है. इसके लिए राज्य सरकार रेलवे और गृह मंत्रालय से मंज़ूरी के रूप में ‘नो ऑबजेक्शन’ मांगती है. सामान्यतः इस बदलाव की सूचना अन्य सम्बंधित विभागों को देते हुए ये मंज़ूरी दे दी जाती है.


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