Uttar Pradesh Politics: उत्तर प्रदेश का सियासी संकट अब राज्य की सीमा लांघकर राष्ट्रीय राजधानी में पहुंच गया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और दोनों उप मुख्यमंत्रियों- केशव प्रसाद मौर्य और बृजेश पाठक के बीच खटपट की खबरों पर अब दिल्ली का दखल हो गया है. पार्टी हाई कमान ने यूपी के पॉलिटिकल ड्रामे पर नाराजगी जाहिर की है और इसे अनुशासनहीनता माना है. अब दिल्ली के दखल के बाद यूपी की सियासी उलझल कितना सुलझ पाती है ये तो बाद में पता चलेगा, लेकिन इस खटपट के कारण यूपी में बीजेपी के सहयोगी दलों को भी आवाज मुखर करने का अवसर मिल गया है. 


बीजेपी की आपसी खटपट को मौका मानकर अब एनडीए के सहयोगी दल भी सरकार और सरकार में बैठी बीजेपी की कलाई मरोड़ सकते हैं. वो कई मौकों पर अपने तल्ख तेवर तो दिखाते ही रहे हैं. इस खटपट के दौरान बीजेपी को आंख दिखाने वाली सहयोगियों में सबसे पहले नाम आता है केंद्रीय मंत्री और अपना दल नेता अनुप्रिया पटेल का. जिन्होंने साक्षात्कार वाली नियुक्तियों में ओबीसी, एससी-एसटी छात्रों का चयन न होने पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को चिट्ठी लिख दी थी. 


जब निषाद हुए हमलावर


आंख दिखाने वाले सहयोगियों की लिस्ट में दूसरा नाम है योगी कैबिनेट के मंत्री संजय निषाद का. निषाद पार्टी प्रमुख कई मौकों पर बीजेपी को चुभने वाले बयान देते रहे हैं. योगी आदित्यनाथ की बुलडोजर नीति का विरोध करना हो या प्रदेश के अफसरों पर मनमानी चलाने का सीधा आरोप लगाना हो, संजय निषाद कई मौकों पर खुलकर सामने आते रहे हैं और अपने सहयोगी की कलाई मरोड़ते रहे हैं. साथ ही वो निषाद समाज को अनुसूचित जाति वर्ग में आरक्षण देने की मांग भी उठाकर भी बीजेपी के माथे पर सिकन पैदा करते रहे हैं.


राजभर ने लिया मोदी-योगी का नाम


इस लिस्ट में तीसरा नाम आता है सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी नेता ओम प्रकाश राजभर का. अपने बयानों की वजह से अक्सर सुर्खियों में रहने वाले राजभर सहयोगी बीजेपी को मुश्किल में डालने से बिल्कुल भी नहीं हिचकते. लोकसभा चुनाव के नतीजों में एनडीए को यूपी से मिले जनादेश के बाद तो राजभर ने साफ-साफ कह दिया था कि मोदी और योगी के नाम पर पड़ने वाला वोट कम हुआ है. यानी खराब प्रदर्शन का सीधा दोष बीजेपी नेतृत्व के माथे मढ़ते वक्त उन्हें कोई हिचक नहीं हुई.


कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में हालात ये हैं कि बीजेपी को चारों तरफ से चोट लग रही है. यूपी में अभी पार्टी लोकसभा चुनाव के झटके से नहीं उभरी थी कि आंतरिक कलह ने बीजेपी को जकड़ लिया. इसी बीच सहयोगी दलों ने भी अवसर पाकर अपने बयानों को और तल्ख कर लिया. विपक्षी दलों के मजबूत होने के बाद उनके हमलों में भी ताकत और तेवर दिखाई देने लगी है. ऐसे में क्या अब यूपी की सत्ता में कोई बदलाव होगा या दिल्ली से कोई ऐसा फॉर्मूला निकलेगा जो सूबे में सब ठीक कर देगा. इसके जवाब की प्रतीक्षा यूपी की जनता के साथ-साथ बीजेपी संगठन को भी है.


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