Uttar Pradesh: यूपी (UP) में लगातार चुनाव हार रही समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के मुखिया अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) से मुस्लिम (Muslim) समाज का मोहभंग होने लगा है. आजमगढ़ (Azamgarh) और रामपुर (Rampur) में हुए लोकसभा उपचुनावों (Lok Sabha By-Elections) में पार्टी की हार से यह साबित हो गया है. ऐसे में अब यूपी की मुस्लिम सियासत को लेकर नया सियासी ताना -बाना बुना जाने लगा है.


बहुजन समाज पार्टी (Bahujan Samaj Party) की अध्यक्ष मायावती (Mayawati) और असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) से लेकर उलेमा काउंसिल तक ने अब यूपी में मुस्लिम समाज को समाजवादी पार्टी से दूर करने के लिए माहौल बनाना शुरू कर दिया है.


‘MY   (मुस्लिम-यादव) फैक्टर तार-तार
राजनीतिक दलों और उलेमा काउंसिल का दावा है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने रामपुर और आजमगढ़ के उपचुनाव में समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव के MY   (मुस्लिम-यादव) फैक्टर को तार-तार कर दिया है. ऐसे में मुस्लिम समाज अब समाजवादी पार्टी पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं कर पा रहा है.


बीते विधानसभा चुनावों में सूबे के मुस्लिमों ने एकजुट होकर समाजवादी पार्टी को वोट किया था, जबकि बीएसपी और कांग्रेस से मुस्लिम समाज ने दूरी बनाई थी. असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) को भी यूपी के मुस्लिमों ने नकार दिया था. इसके चलते ही बीते विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की सीटें 47 से बढ़कर 111 हो गई. इन 111 सीटों में समाजवादी पार्टी से 31 मुस्लिम विधायक जीते थे.


इस मुद्दे पर अखिलेश ने आवाज नहीं उठाई
इसके बाद भी समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव ने मुस्लिम समाज और पार्टी के मुस्लिम विधायकों के खिलाफ प्रदेश सरकार के हुए एक्शन को लेकर आवाज नहीं उठाई. अखिलेश के इस रवैये से आजम खान के समर्थक नाराज हुए. पार्टी के सांसद शफीकुर्रहमान वर्क ने नाराजगी जताई. फिर भी अखिलेश यादव ने जनता के बीच जाने और मुस्लिम समाज के मुद्दों को उठाने में संकोच किया और रामपुर तथा आजमगढ़ में चुनाव प्रचार तक करने नहीं गए.


अखिलेश ने राजभर की सलाह नहीं मानी
समाजवादी पार्टी के सहयोगी ओम प्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव को एसी कमरे से बाहर निकलकर जनता के बीच जाने की सलाह दी थी, लेकिन अखिलेश यादव ने उनकी सलाह की अनदेखी की. जिसका परिणाम यह रहा कि बीजेपी ने आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट उपचुनावों में समाजवादी पार्टी को हरा दिया. तो अब बीएसपी अध्यक्ष मायावती से लेकर एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल के मौलाना आमिर रशीदी तक मुस्लिम मतदाताओं को सियासी संदेश दे रहे हैं कि बीजेपी को हराने की ताकत और साहस समाजवादी पार्टी में नहीं है.


बेकार दलों पर अपना बहुमूल्य वोट बर्बाद न करें
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी अब यह कह रहे हैं कि समाजवादी पार्टी में बीजेपी को हराने की क्षमता नहीं है. मैं मुसलमानों से अपील करूंगा कि वे अपना वोट बर्बाद न करें. ऐसे बेकार दलों पर अपना बहुमूल्य वोट बर्बाद करने के बजाय, मुसलमानों को अब अपनी स्वतंत्र राजनीतिक पहचान बनानी चाहिए और अपने भाग्य का फैसला खुद करना चाहिए.


उलेमा काउंसिल के संस्थापक और राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना आमिर रशीदी कहते हैं कि समाजवादी पार्टी न तो विपक्ष की सही भूमिका अदा कर पा रही है और न ही अपने बुनियादी वोटरों के साथ खड़ी हो पा रही है. विधानसभा चुनाव में मुसलमानों का एकतरफा वोट लेने वाली समाजवादी मुस्लिमों के मुद्दों पर अब बेरुखी दिखा रही है और पूरी तरह खामोश है. ऐसे में मुसलमानों ने भी दोनों उपचुनाव में अपना पैगाम दे दिया है. मुसलमान अब गूंगी-बहरी सियासी कयादत का बोझ अपने कंधों पर नहीं उठाने वाला है.


केवल बीएसपी में ही बीजेपी को हराने की शक्ति
बीएसपी मुखिया मायावती का कहना है कि यूपी के इस उपचुनाव परिणाम ने एक बार फिर से यह साबित किया है कि केवल बीएसपी में ही बीजेपी को हराने की सैद्धान्तिक और जमीनी शक्ति है. मायावती साफ तौर पर दलित-मुस्लिम कॉम्बिनेशन पर ही आगे बढ़ सकती हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव में इसी फॉर्मूले पर लड़ने का संकेत दे रही हैं.


यूपी के मुस्लिम वोट को अपनी तरफ लाने के लिए इन दलों की सक्रियता समाजवादी पार्टी के लिए संकट खड़े करेगी. उत्तर प्रदेश में मुस्लिम मतदाता (Muslim Voters) अगर समाजवादी पार्टी के छिटका तो अखिलेश यादव के भविष्य की राजनीति के लिए सियासी संकट खड़ा हो सकता है.


इसकी वजह यह है कि समाजवादी पार्टी का सियासी आधार मुस्लिम वोटों पर टिका है और अगर यह वोट छिटकर बीएसपी (BSP) या फिर किसी मुस्लिम पार्टी के साथ जाता है तो निश्चित तौर पर अखिलेश की टेंशन बढ़ सकती है. इसीलिए अखिलेश यादव को मुस्लिमों को साधने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी होगी.


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