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Uttarakhand Election 2022: नए जिलों का फिर दांव, क्या चुनावी दंगल में छोड़ेगा प्रभाव, अतीत से अब तक की पूरी कहानी

Uttarakhand Assembly Election Special: उत्तराखंड के सियासी इतिहास और इस मुद्दे की तह तक जाने की कोशिश करें तो साल 2000 में 13 जिलों को साथ लेकर उत्तराखंड को नया राज्य बनाया गया.

Uttarakhand Assembly Election 2022: उत्तराखंड का सियासी रण इस बार यूपी की तरह ही रोचक होने वाला है, लेकिन इस चुनाव में सालों से चल रहे एक मुद्दा फिर जिंदा हो गया है. इस बार के सियासी समर में जिस मुद्दे ने तूल पकड़ा है वो है नए जिलों के गठन का. उत्तराखंड (Uttarakhand) के अलग राज्य बनने से पहले कई क्षेत्रों में नए जिलों को बनाने के लिए आंदोलन होते रहे हैं. वोटर्स के लिए बेहद अहमियत रखने वाले नए जिलों के गठन को लेकर फैसला भी हुआ और वादा भी, लेकिन देखा गया सपना साकार नहीं हो सका. उत्तराखंड के सियासी इतिहास (Political History) और इस मुद्दे की तह तक जाने की कोशिश करें तो साल 2000 में 13 जिलों को साथ लेकर उत्तराखंड को नया राज्य बनाया गया. सालों से सुलगती रही जिलों की मांग की हकीकत करीब 21 सालों बाद भी अब भी पूरी नहीं हुई है.

एक बार फिर सभी राजनीतिक दलों ने आंदोलनरत इलाकों के वोटर्स को नए जिलों का वादा कर दिया है. अपने उत्तराखंड के दौरे पर पहुंचे अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) काशीपुर गए तो वहां वो काशीपुर को नया जिला बनाने का ऐलान कर आए. उन्होंने अपने चुनावी वादे में कहा कि अगर उत्तराखंड में AAP सत्ता में आई तो काशीपुर के लोगों को नए जिले की सौगात मिलेगी. केजरीवाल ने ये वादा सिर्फ काशीपुर के लिए नया जिला बनाने के लिए नहीं किया. उन्होंने डीडीहाट, रानीखेत, कोटद्वार, रुड़की और यमुनोत्री में भी जिले बनाने का वादा किया है. 


Uttarakhand Election 2022: नए जिलों का फिर दांव, क्या चुनावी दंगल में छोड़ेगा प्रभाव, अतीत से अब तक की पूरी कहानी

पहली बार नए जिले बनाने की मांग को राजनीतिक हवा उस वक्त मिली, जब साल 2011 में उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक (Ramesh Pokhriyal Nishank) ने 15 अगस्त के मौके पर 4 नए जिले बनाने का एलान किया. निशंक ने कहा कि वो डीडीहाट, रानीखेत और यमुनोत्री को नया जिला बनाएंगे. हालांकि कुछ ही वक्त बाद निशंक को सीएम पद से हटना पड़ा. 2012 में बीजेपी ने राज्य की सत्ता गंवाई तो नए जिलों का सपना साकार नहीं हो सका. हालांकि कांग्रेस की सरकार आने के बाद सीएम बने विजय बहुगुणा ने अन्य इलाकों में इस तरह की उठ रही मांगों को ध्यान में रखते हुए एक आयोग का गठन कर दिया. इस आयोग की सिफारिशों के आधार पर नए जिलों को बनाया जाना था. 

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साल 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले कांग्रेस नेता हरीश रावत ने इस मुद्दे को एक बार फिर चुनावी रंग दिया. कांग्रेस को चुनावों में हार का मुंह देखना पड़ा और फिर नए जिलों को बनाने का मुद्दा मानों हवा हो गया. अपने करीब साढ़े चार साल के कार्यकाल के दौरान बीजेपी ने इस मुद्दे पर कोई स्टैंड साफ नहीं किया. हालांकि चुनावों से पहले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राज्य में नए नए जिलों के गठन का एलान किया है. कांग्रेस ने भी सत्ता में वापसी के लिए इस मुद्दे को भुनाने की कोशिश करते हुए 9 नए जिले बनाने की बात कही है. AAP का वादा राज्य में 6 नए जिले बनाने का है.


Uttarakhand Election 2022: नए जिलों का फिर दांव, क्या चुनावी दंगल में छोड़ेगा प्रभाव, अतीत से अब तक की पूरी कहानी

जिला मुख्यालयों से कटे और दूरदराज के लोग अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए नए जिले बनाने के लिए सालों से आंदोलन कर रहे हैं. यही वजह है कि बार-बार राजनेता और राजनीतिक दल वोटों की आस में चुनावों में नए जिलों को वादे का हवा देने में लग जाते हैं. चमोली में देवाल, थराली, उखीमठ और अगस्त्यमुनी विकास खंड के गांव लंबी दूरी के चलते जिला मुख्यालयों से बेहद अलग थे. लोगों को अगर जिला मुख्यालय किसी काम से जाना होता था तो उसमें एक दो दिन का समय लग जाता था. डीडीहाट, रानीखेत, कोटद्वार और यमुनोत्री में अभी भी नए जिलों की मांग को लेकर आंदोलन हो रहे हैं. 

उत्तराखंड में फिलहाल 13 जिले और दो मंडल हैं. इसके अलावा, थराली, गैरसैंण, कर्णप्रयाग, ऋषिकेश, नरेन्द्रनगर, यमुनोत्री, रुड़की, कोटद्वार, डीडीहाट, रानीखेत, रामनगर, काशीपुर को जिला बनाने की मांग हो रही है. पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, चमोली, पौड़ी, उत्तरकाशी, टिहरी और हरिद्वार की कई विधानसभा सीटों में नए जिलों को लेकर आंदोलन चल रहे हैं. एक बार फिर से राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को अपने घोषणापत्र में लाने की तैयारी तो की है, लेकिन ये सपना क्या फिर सपना रह जाएगा या साकार होगा ये वक्त बताएगा.


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