धनौल्टी: हिमालय के गोद में बसे उत्तराखंड के खूबसूरत धनौल्टी में इन दिनों ठंड के बावजूद चुनावी पारा चढ़ा हुआ है. वादियों की खूबसूरती को अपने आप में संजोए धनौल्टी की एक बदसूरत राजनीतिक दास्तां भी है जिससे देश के बाकी हिस्से शायद ही वाकिफ हों.


राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे धनौल्टी के गांवों की तस्वीरें ऐसी हैं जो उत्तराखंड का चुनावी गणित पलट सकती हैं. दुर्गम पहाड़ों के बीच बसा ये झंडूखेकड़ी गांव है, आजादी के 70 साल बाद भी शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरत से महरूम है. एबीपी न्यूज़ की टीम जब इस गांव पहुंची तो यहां तक आने में कई किलोमीटर पैदल चलना पड़ा क्योंकि यहां सड़क नहीं है. जब इस गांव पहुंचा तो बदहाली की जो दास्तां लोगों ने सुनाई वो वाकई चौंका देने वाली थी.


झंडूखेकड़ी गांव में ना सड़क, ना अस्पताल और ना ही शौचालय 



धनौल्टी के झंडूखेकड़ी गांव के आस-पास ना कोई स्कूल है और ना ही कोई अस्पताल, अगर किसी को मामूली चोट भी लग जाए तो 30 किलोमीटर दूर मसूरी जाना पड़ता है. यहां जो सबसे चौंकाने वाली बात यह कि 22 परिवारों के इस गांव में एक भी शौचालय नहीं है. इस गांव के किसान आलू, मटर, गोभी जैसी सब्जियों की खेती करते हैं लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये है कि अपनी फसल को बाजार तक पहुंचाने के लिए कोई सड़क तक नहीं हैं.


नेता कर रहे हैं विकास के दावे 



आपको बता दें कि 72 हजार की आबादी वाले धनौल्टी विधानसभा क्षेत्र की 90 फीसदी आबादी गांवों में रहती है. उत्तराखंड राज्य बनने के बाद धनौल्टी में 2002 में पहली बार कांग्रेस को जीत मिली, तो पिछली दो बार से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा रहा है. लेकिन इस बार बीजेपी ने अपने सिटिंग एमएलए महावीर सिंह का टिकट काट, राजनाथ सिंह के समधी और पंकज सिंह के ससुर नारायण सिंह राणा को मैदान में उतारा है जो धनौल्टी का भाग्य बदलने की बात कह रहे हैं. वहीं कांग्रेस ने राणा के विरोध में मनमोहन सिंह मल्ल को मैदान में उतारा है, जिनके अपने अलग ही दावे हैं.



नेता भले ही अपने वादों और दावों के दम पर जनता के दिल में जगह बनाने की कोशिश में लगे हैं लेकिन हकीकत यही है कि धनौल्टी आज भी विकास की एक बूंद के लिए तरस रहा है.