Uttarakhand Elections: उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन की आखिरी तारीख कल यानी 28 जनवरी है. लेकिन अभी तक बीजेपी ने अपने पूरे 70 उम्मीदवारों के नाम की घोषणा नहीं की है. वहीं, कांग्रेस के अंदर भी टिकट को लेकर भी घमासान देखने को मिल रहा है. विरोध के बीच कांग्रेस को कई उम्मीदवार बदलने पड़े तो कई उम्मीदवार की सीट बदलनी पड़ी.
पहाड़ की राजनीति में जबरदस्त उलटफेर
14 फरवरी को उत्तराखंड में मतदान होना है लेकिन उससे पहले पहाड़ की राजनीति में जबरदस्त उलटफेर देखने को मिल रहा है. जहां कांग्रेस ने बीजेपी के दो मंत्रियों हरक सिंह रावत और यशपाल आर्य को पार्टी में शामिल कराया वहीं बीजेपी ने कांग्रेस के पूर्व प्रदेशाध्यक्ष किशोर उपाध्याय को पार्टी में शामिल कराते हुए अपने 60 प्लस सीट के जीत के नारे को दोहराया.
विरोध के बीच हरीश रावत को बदलनी पड़ी सीट
हरीश रावत उत्तराखंड कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं और मुख्यमंत्री रह चुके हैं. हरीश रावत ने इस बार पूरा मन नैनीताल की रामनगर सीट से चुनाव लड़ने का बनाया था और पार्टी ने हरीश रावत की बात को मानते हुए उनके नाम का ऐलान भी रामनगर सीट पर बतौर उम्मीदवार कर दिया था. लेकिन पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष और एक समय हरीश रावत के काफी नजदिकी कहे जाने वाले रंजीत रावत ने विरोध करना शुरू कर दिया इस बीच पार्टी आलाकमान को दूसरी लिस्ट के प्रत्याशियों को सिंबल देने पर रोक लगानी पड़ी. साथ ही हरीश रावत को अपने शिष्य रहे रंजीत रावत के विरोध के कारण रामनगर सीट के बजाए लालकुआं से उम्मीदवार बनना पड़ा. वहीं दूसरी ओर रंजीत रावत को भी पार्टी ने रामनगर की बजाय सल्ट से बीजेपी उम्मीदवार महेश जीना के खिलाफ उम्मीदवार बनाया है.
रावत बनाम रावत की लड़ाई पर पार्टी ने निकाला बीच का रास्ता
रामनगर सीट को लेकर जहां हरीश रावत और रंजीत रावत आमने-सामने हो गए थे ऐसे में पार्टी हाई कमान ने दोनों रावत को रामनगर सीट से प्रत्याशी नहीं बनाया और बीच का रास्ता निकालते हुए रंजीत रावत और हरीश रावत को अलग-अलग सीट से उम्मीदवार बनाया है. कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने इस पर कहा पार्टी में कोई विवाद नहीं हैं कई बार समीकरण बदलने से ऐसा करना पड़ता है.
हरीश रावत की पार्टी ने कई बार की अनदेखी
उत्तराखंड में इस वक्त कांग्रेस के पास सबसे वरिष्ठ नेताओं में हरीश रावत ही हैं लेकिन कई बार पार्टी ने हरीश रावत की बातों को नहीं मानते हुए अलग फैसला लिया. उदाहरण के तौर पर हरीश रावत चाहते थे कांग्रेस पार्टी बीजेपी के सीएम पुष्कर सिंह धामी के मुकाबले उन्हें पार्टी का सीएम चेहरा घोषित करे लेकिन पार्टी के अंदर हरीश रावत के चेहरे के विरोध के कारण हरीश रावत को चुनाव कैंपेन कमेटी का प्रमुख बनाया गया. इसके बाद हरीश रावत पार्टी में हरक सिंह रावत की वापसी नहीं चाहते थे लेकिन कांग्रेस हाई कमान ने हरक सिंह को न सिर्फ पार्टी में लिया बल्कि उनकी बहू अनुकृति को लैंसडाउन से प्रत्यशी भी घोषित किया. हरीश रावत के नाम का पार्टी में कई लोग विरोध करते रहे हैं जिनमें रंजीत रावत और प्रीतम सिंह प्रमुख नाम हैं.
बेटी को मिला टिकट लेकिन बेटे को नहीं
कांग्रेस ने इस बार उत्तराखंड में एक परिवार एक टिकट की रणनीति बनाई थी लेकिन हरीश रावत एकमात्र ऐसे राजनेता रहे हैं जिन्होंने खुद के साथ-साथ बेटी के लिए भी टिकट ले लिया. हरीश रावत की बेटी अनुपमा रावत को पार्टी ने हरिद्वार ग्रामीण से उम्मीदवार बनाया है. इस सीट से हरीश रावत भी 2017 में विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. यहां उनको बीजेपी के मौजूदा उम्मीदवार स्वामी यतीश्वरानंद से हार का सामना करना पड़ा था. वहीं हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत ने भी खानपुर से सीट की मांग की थी लेकिन पार्टी ने हरीश रावत के बेटी को टिकट तो दे दिया लेकिन बेटे को नहीं दिया.
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