Haldwani Eviction: उत्तराखंड के हल्द्वानी में रेलवे की जमीन से अतिक्रमण हटाने के मामले में वकील प्रशांत भूषण ने बीजेपी पर मंगलवार (10 जनवरी) को निशाना साधा है. उन्होंने साथ ही बताया कि बीजेपी सरकार कैसे अतिक्रमण शब्द का प्रयोग कर हर जगह अपनी विचारधारा थोपने के लिए काम करती है.
वकील प्रशांत भूषण ने मंगलवार (10 जनवरी) को 'द लल्लनटॉप' से बात करते हुए कहा, ''हल्द्वानी वाला मामला कोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुआ. रेलवे की जमीन कितनी है, ऐसा कुछ नहीं बताया गया. जो आदेश दिया गया कि बस्ती हटानी है वो तो रेलवे की जमीन से काफी दूर है. यहां पर तो मकान 50 से 80 साल पुराने हैं.''
उन्होंने आगे कहा कि कई सारे केस में सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि 'राइट टू शेल्टर' मौलिक अधिकार है. किसी के पास कोई दूसरा घर नहीं है तो उसे रहने की जगह देनी होगी. साथ ही बीजेपी पर आरोप लगाते हुए कहा कि वो हर मुस्लिम आबादी वाली जगह पर बुलडोजर चलवा देती है. धामी सरकार का पूरे मामले पर रवैया सही नहीं है.
'मुस्लिम आबादी वाली जगह पर बुलडोजर चला दो'
हल्द्वानी की यह बस्ती मुस्लिम बहुल है. यह बीजेपी का वोट बैंक नहीं है. ऐसे में इसे हटाने के बाद ना यहां लोग रहेंगे और ना ही वोट रहेंगे, के सवाल पर प्रशांत भूषण ने कहा कि यह आदेश तो कोर्ट का है, लेकिन मौजूदा सरकार का रवैया सही नहीं है. कांग्रेस की सरकार के दौरान मामला आया तो कोर्ट में हलफनामा दिया गया कि यह रेलवे की जमीन नहीं है, लेकिन बीजेपी की सरकार का रुख बदल गया. अब बीजेपी रेलवे का समर्थन करने लगी.
प्रशांत भूषण ने आगे कहा कि बीजेपी तो मुस्लिम आबादी वाली हर जगह पर बुलडोजर चलवा देती. खैर यह केस तो कोर्ट से आया लेकिन सरकार की जरूर मंशा रही होगी कि मुस्लिम आबादी होने के कारण इनको हटा दिया जाए.
सरकार पर साधा निशाना
क्या अतिक्रमण शब्द के नाम पर सरकार अपनी ऑयडियोलॉजी और प्लान को थोपने की कोशिश करती है, के सवाल पर वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ''हां यह बात सही है. यह सरकार (केंद्र सरकार) कभी अतिक्रमण के नाम पर, दंगे या कोई प्रोटेस्ट के नाम पर ऐसा करती है. यूपी और दिल्ली के जहांगीरपुरी में प्रदर्शन करने वालों के घर पर ही बुलडोजर चला दिए गए. इसका कारण था कि यह सरकार का विरोध कर रहे थे लेकिन बाद में सरकार कहने लगी कि इन्होंने अतिक्रमण किया है.''
प्रशांत भूषण ने कहा कि कुछ भी कारण हो लेकिन हर किसी चीज की एक कानूनी प्रक्रिया है. आप उनको अधिकार तो देंगे साबित करने का कि उन्होंने जमीन कब्जा नहीं की है. यह साबित भी हो जाता है कि उन्होंने अतिक्रमण किया फिर भी दूसरी जगह उनके रहने का इंतजाम करना होगा क्योंकि यह 'राइट टू शेल्टर' के तहत सरकार का काम है.
कैसे लेनी होगी जमीन
वकील प्रशांत भूषण ने हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर आजादी के पहले से कई लोग रह रहे के सवाल पर कहा कि इससे सवाल उठता है कि क्या जमीन पर जो लोग रह हैं वो सच में रेलवे की जमीन है. रेलवे का अगर लैंड है भी तो क्या इन लोगों को कभी सरकारी अथॉरिटी की तरफ से लीज पर जमीन दी गई या बेची गई है. ऐसा है तो यह रेलवे लैंड लोगों की जमीन मानी जाएगी. रेलवे को लैंड की जरूरत भी है तो उसे भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत इसे लेना होगा. इसके तहत पुनर्वास के लिए इंतजाम करने के अलावा लोगों को पैसे देने होंगे.
मामला क्या है
हाई कोर्ट ने 20 दिसंबर को हल्द्वानी में अतिक्रमित रेलवे भूमि पर निर्माण को ध्वस्त करने का आदेश दिया था. उसने निर्देश दिया था कि अतिक्रमण करने वालों को एक सप्ताह का नोटिस दिया जाए, जिसके बाद उन्हें वहां से बेदखल किया जाए. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (5 जनवरी) को रोक लगा दी थी.