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वो अहम वजहें, जिसके चलते पुष्कर सिंह धामी को उत्तराखंड का सीएम बनाना हो गया BJP के लिए जरूरी, पढ़िए खास रिपोर्ट

धामी सभी को स्वीकार हैं अपने छोटे से कार्यकाल में सभी को संतुष्ट रखने में सफल भी हुए. ऐसे में धामी को रिपीट करने का फैसला नेतृत्व ने लिया. अब विस्तार से समझते हैं क्यों धामी हो गए जरूरी.

पुष्कर धामी (Pushkar Dhami) वे व्यक्ति हैं, जिसकी वजह से बीजेपी ने अपनी नीति में बड़ा बदलाव किया. पहली बार हारे हुए उम्मीदवार की बीजेपी ने मुख्यमंत्री बनाया है, क्या वजह रही कि हार के बावजूद पुष्कर धामी मुख्यमंत्री चुने गए. पुष्कर धामी ने जिस तरह अपनी सीट को छोड़कर पूरे प्रदेश में प्रचार किया ये जानते हुए भी कि उनकी सीट खटिमा फंसी हुई है और वे हार सकते हैं, ये बात केंद्रीय नेतृत्व को प्रभावित कर गई.

साथ ही बीजेपी एक और पूर्व मुख्यमंत्री राज्य में नहीं पैदा करना चाहती थी, धामी के नाम पर नेतृत्व सहमत हो गया था. अन्य विकल्प राज्य में नई प्रतिस्पर्धा पैदा करते, जबकि धामी सभी को स्वीकार हैं और अपने छोटे से कार्यकाल में सभी को संतुष्ट रखने में सफल भी हुए. ऐसे में धामी को रिपीट करने का फैसला नेतृत्व ने लिया. अब विस्तार से समझते हैं क्यों धामी हो गए जरूरी.

1. पुष्कर धामी ने विपरीत परिस्थितियों में दो तिहाई बहुमत दिलाया, 2017 में बीजेपी ने 57 सीटों पर जीत हासिल की थी, तब त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया गया था, तकरीबन चार साल के बाद ही BJP ने त्रिवेंद्र रावत को हटाकर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बना दिया था, तीरथ सिंह का कार्यकाल भी महज तीन महीने ही रहा. चुनाव से ठीक पहले जुलाई 2021 में खटीमा से विधायक पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया गया. सात महीने में धामी ने करिश्मा कर दिया बीजेपी को 47 सीटों पर जीत दर्ज करवाई.

2. धामी ने सत्ताविरोधी रुझान को कमजोर कर दिया और जीत की इबारत लिखी. धामी के नेतृत्व में ही उत्तराखंड में बीजेपी ने चुनाव लड़ा और दोबारा 47 सीटें पाकर सत्ता हासिल कर ली. छह महीने के अंदर दो बार मुख्यमंत्री बदलने से जनता में काफी रोष था, लेकिन धामी ने उसे अपने अंदाज में संभाल लिया. युवा नेता के तौर पर धामी सात महीने के अंदर एंटीइनकंबेंसी को दूर करने की कोशिश में कामयाब हुए, जिसकी बदौलत पार्टी ने राज्य में  मिथक को तोड़ डाला.

3. धामी मुख्यमंत्री बनते ही पुराने और युवा नेताओं के बीच तालमेल बैठाने में जुट गए, उन्हें पता था कि अगर ऐसा नहीं कर पाए तो सबसे ज्यादा दिक्कत उन्हें खुद होने वाली है. मुख्यमंत्री बनने के बाद भी धामी ने उत्तराखंड बीजेपी के पुराने और वरिष्ठ नेताओं का ख्याल रखा. बड़े-बड़े फैसले लेने से पहले उन्होंने तीरथ सिंह रावत, त्रिवेंद्र सिंह रावत, रमेश पोखरियाल निशंक जैसे पूर्व मुख्यमंत्रियों की सलाह ली. पार्टी और सरकार के बीच तालमेल बनाने के लिए वरिष्ठ नेताओं से भी सुझाव मांगे, इससे उन्होंने वरिष्ठ और युवा नेताओं के बीच अच्छा तालमेल बनाया और सभी के प्रिय भी बन गए.

4. चार जुलाई को पुष्कर धामी ने मुख्यमंत्री का पद सम्भाला,  इसके एक महीने बाद कई योजनाओं का ऐलान किया. मसलन 10वीं-12वीं पास छात्रों को मुफ्त टैबलेट, खिलाड़ियों के लिए खेल नीति बनाने, जनसंख्या नियंत्रण पर कानून बनाने, पौड़ी और अल्मोड़ा को रेल लाइन से जोड़ने जैसी योजनाओं का ऐलान इसमें शामिल था. इसने आम लोगों के बीच ना केवल बीजेपी की लोकप्रियता बढ़ी. बल्कि धामी की लोकप्रियता शिखर पर पहुंचने लगी. इस तरह अपने कुशल राजनीतिक दूर दृष्टि और कौशल के दम पर केंद्रीय नेतृत्व के साथ साथ जनता का दिल जीतने में सफल हो गए. पुष्कर धामी दोबारा से हार के बावजूद मुख्यमंत्री की कुर्सी पर क़ाबिज हो गए.

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