उत्तराखंड के तपोवन हादसे को आज 8 दिन हो गए हैं. तपोवन टनल में फिर ड्रिंलिंग का काम शुरू हो गया है. यहां तपोवन में विष्णुगाड बिजली परियोजना का निर्माण हो रहा था. पानी से बिजली बनाने पर काम शुरू होने वाला था. लेकिन उत्तराखंड हादसे से इस परियोजना को बड़ा झटका लगा है. आखिर यहां बिजली कैसे बनाई जानी थी, हादसे से इस प्रोजेक्ट पर कितना असर पड़ा, यहां हम आपको बताते हैं.


कई सुरंग, बैराज से होते हुए पानी पावर हाउस तक पहुंचता है. इस परिजना के जरिए 520 मेगावाट बिजली का निर्माण होना था, एबीपी न्यूज संवाददाता रक्षित उस टनल के अंदर गए. मुख्य टनल से होते हुए रक्षित उस जगह पहुंचे जहां से पूरा प्रोजेक्ट को कंट्रोल किया जाता है.


17 मंजिल ऊंची, 20 किमी लंबी है सुरंग
शॉफ्ट एरिया में रक्षित ने NTPC के इंजीनियर से मुलाकात की, जिन्होंने बताया कि इस पूरी परियोजना को कैसे तैयार किया गया. जिस परियोजना के जरिए 520 मेगावाट बिजली सप्लाई होनी है, इसके निर्माण के लिए 17 मंजिल के बराबर सुरंग बनाई गई है. ये पूरी सुरंग 51 मीटर ऊंची है और करीब 20 किमी लंबी है. नीचे ट्रांसफार्मर सेक्शन है. सबसे ऊपर GIS है जो पावर प्रोजेक्ट की शान है. GIS यानी गैस इंसुलेटेड स्वीचगेयर. यहां पर ही नीचे के ट्रांसफॉर्मर सेक्शन से ऊपर GIS है. यहां पर ही बिजली बनती है. बड़े बड़े 400 KV के विदेशी केबल्स की मदद से बिजली यहां से नेशनल ग्रिड को सप्लाई होती है.


20 किमी लंबी सुरंग पावर हाउस पर पहुंचती है. टरबाइन के ऊपर पानी पड़ता है, जिससे टरबाइन घूमता है और बिजली बनती है. जब बिजली बनती है, तो इसे जीईएस से कंट्रोल किया जाता है. यहीं से बिजली को देशभर में सप्लाई किया जाता है.



520 मेगावाट बिजली बनाने की परियोजना
प्रोजेक्ट डायरेक्टर उज्जवल भट्टाचार्य ने बताया, ये परियोजना 520 मेगावाट की है. इस प्रोजेक्ट में 130 मेगावाट की चार यूनिट है. मानसून के समय पूरी शक्ति के साथ यहां बिजली का उत्पादन होगा. बाकी समय भी दो यूनिट में काम होगा. उत्तराखंड त्रीसदी से पहले इस प्रोजेक्ट पर 74 से 76 फीसदी तक काम हो चुका था.


प्रोजेक्ट मैनेजर आरपी अहिरवार ने बताया, हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट बनाते समय सबसे पहले ये देखा जाता है कि कितनी ऊंचाई से पानी गिर सकता है. पावर बनाने के लिए ऊंचाई का रोल काफी अहम होता है. जैसे हमारा गैराज 1800 मीटर की ऊंचाई पर है और पावर हाउस 1200 मीटर की ऊंचाई पर है. ये करीब 500 मीटर का अंतर है. इसी का इस्तेमाल पावर बनाने के लिए किया जाता है.


करीब 20 किमी के सुरंगे के इस जाल के जरिए 520 मेगावाट बिजली बनाने की परियोजना अपने आखिरी दौर से गुजर रही है, लेकिन उत्तराखंड में आई त्रासदी ने इस बड़ा झटका दिया, अब चुनौती इस प्रोजेक्ट को दोबारा खड़ा करने की है.


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