(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
राज की बात: उत्तराखंड में पहाड़ पर झाड़ू चलाने की तैयारी में आप, सतपाल महाराज और केजरीवाल की हो चुकी है मुलाकात
Raaj Ki Baat: लाखों अनुयायियों वाले सतपाल महाराज की पत्नी अमृता रावत भी बीजेपी से विधायक हैं. वैसे सियासी तौर पर सतपाल महाराज के वैसे अनुयायी नहीं रहे, जैसे कि लोग उनकी कथा सुनने आते हैं. फिर भी उनका प्रभाव है. इसके बूते सीएम पद की महत्वाकांक्षा उनकी हिलोरें मारती रहती है. राज की बात ये कि सतपाल महाराज की इसी महत्वाकांक्षा में आप ने अपना चेहरा ढूढ़ने का दांव चला है.
Raaj Ki Baat: दिल्ली में जड़ें जमाने और पंजाब में अपना आधार मज़बूत करने के बाद अगले साल आम आदमी पार्टी ने पहाड़ पर झाड़ू फेरने के लिए कमर कसी है. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं. उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में आप चुनाव तो लड़ेगी, लेकिन पंजाब और उत्तराखंड में वह सत्ता के लिए या सत्ता बनाने में अहम रोल निभाने वाली भूमिका के लिए लड़ेगी. पिछले हफ्ते हमने आपको आम आदमी पार्टी की पहाड़ पर तोड़-फोड़ वाली सियासी रणनीति पर बात की थी. आज राज की बात में आम आदमी पार्टी की इस रणनीति के किरदारों और ज़मीन पर भविष्य की सियासी संभावनाओं पर करेंगे चर्चा. विस्तार से आगे करेंगे चर्चा, लेकिन आपके लिए एक इशारा ये कि हो सकता है कि पहाड़ पर अगली तीन ‘रावत’ के बीच हो सकता है सत्ता के लिए मुकाबला.
आपने मन में प्रश्न होगा कि कैसे? कौन रावत? तो दो रावत तो साफ दिख रहे हैं. एक वो तो त्रिवेंद्रम सिंह रावत को हटाकर बीजेपी आलाकमान ने जिनको मुख्यमंत्री बनाया है तीरथ सिंह रावत. दूसरे कांग्रेस के और पहाड़ के फ़िलहाल सबसे वरिष्ठ नेताओं में एक हरीश रावत. तो ये तीसरा रावत कौन है? इनका नाम खोलें उससे पहले आपको बता दें कि अगर आम आदमी पार्टी का दांव ठीक पड़ा तो ये तीसरा रावत झाड़ू लेकर केजरीवाल के ख़ेमे से ही दांव ठोकेगा.
उत्तराखंड में सियासी उठापठक कभी नहीं थमी
वैसे उत्तराखंड के जन्म के बाद से ही सियासी उठापठक वहां कभी नहीं थमी. पहाड़ के सर्वोच्च और देश के बड़े नेताओं में शुमार किए जाने वाले नारायण दत्त तिवारी को छोड़कर यहां पर कोई भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सका. छोटे राज्यों की त्रासदी ये है कि चंद विधायकों का एक गुट पूरा का पूरा बाहर हुआ और सत्ता बदलकर दूसरे की सरकार बन जाती है. तो छोटे राज्य ही फ़िलहाल केजरीवाल के निशाने पर हैं. इसमें फ़िलहाल उसकी प्राथमिकता में उत्तराखंड है.
राष्ट्रीय फलक पर विस्तार के लिए आतुर आप ने पहाड़ पर जो रणनीति बीजेपी ने पश्चिम बंगाल या असम और दूसरे राज्यों में अपनाई, उसी को पकड़ते हुए उत्तराखंड में ज़ोर आज़माइश की ज़मीन तैयार करनी शुरू कर दी है. राज की बात ये है कि कांग्रेस और बीजेपी के बाग़ी नेताओं को टिकट देकर उत्तराखंड की सत्ता में केजरीवाल की पार्टी किंगमेकर बनने का ख़्वाब न सिर्फ संजो रही है, बल्कि उसे साकार करने के लिए आगे बढ़ चुकी है.
राज की बात ये कि आम आदमी पार्टी के जिस तीसरे रावत की बात हो रही वो हैं बीजेपी के प्रदेश में कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज. कांग्रेस से सियासी कैरियर शुरू करने वाले सतपाल महाराज केंद्र में राज्य मंत्री भी रहे. पहाड़ पर वर्चस्व की लड़ाई में उन्होंने हरीश रावत सरकार गिराई भी. फिर हरीश रावत सरकार को हराने के लिए बीजेपी में शामिल हो गए.
सतपाल महाराज की केजरीवाल से मुलाकात
राज की बात ये भी कि सतपाल महाराज की आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल से एक मुलाक़ात भी हो चुकी है. बाक़ी आगे के नियम व शर्तों पर बातचीत चल रही है. केजरीवाल की कोशिश है कि जिस तरह से बीजेपी और कांग्रेस के बीच अंदरूनी खींचतान है. वैसे भी मौजूदा बीजेपी सरकार की कैबिनेट कांग्रेस के नेताओं से ही भरी हुई है. उसी तरह केजरीवाल ने भी इन दोनों दलों से असंतुष्ट और जिताऊ चेहरों को टिकट देकर पहाड़ पर झाड़ू को चलाने की कोशिश शुरू की है.
दरअसल, आप का मानना है कि अगर उत्तराखंड में सतपाल महाराज और कुछ बड़े चेहरे उसके बैनर के तले आ जाते हैं तो राज्य की विधानसभा में किसी को पूर्ण बहुमत नहीं होगा. उस स्थिति में दिल्ली की तरह अगर उत्तराखंड में भी दांव बैठता है या वह किंगमेकर की भूमिका में आती है तो राष्ट्रीय फलक पर छा जाने की उसकी महत्वाकांक्षाओं को पर लग जाएंगे.
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