सिलक्यारा सुरंग में फंसे श्रमिकों को दी गई लैंडलाइन सुविधा, बचाव अभियान में लग सकता है लंबा समय, अब इन विकल्पों से लिया जाएगा काम
Uttarakhand Tunnel Rescue Operation: उत्तराखंड की सिलक्यारा सुरंग में 13 दिनों से 41 श्रमिक फंसे हैं. उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए बचाव अभियान युद्धस्तर पर चल रहा है.
Silkyara Tunnel Rescue Operation: उत्तराखंड के उत्तरकाशी में निर्माणाधीन सिलक्यारा सुरंग में कुछ हिस्से ढहने से भीतर फंसे 41 श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए बचाव अभियान के बीच एक लैंडलाइन सुविधा स्थापित की गई है. न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, अधिकारियों ने शनिवार (25 नवंबर) को यह जानकारी दी. श्रमिक अपने परिवार के सदस्यों से बात कर सकें, इसके लिए बीएसएनएल ने यह लैंडलाइन सुविधा स्थापित की है. श्रमिक करीब 13 दिन से सुरंग में फंसे हुए हैं. अधिकारियों ने कहा कि श्रमिकों को बात करने के लिए एक फोन दिया जाएगा.
'अपने परिवार से बात कर सकते हैं श्रमिक'
बीएसएनएल के उप महाप्रबंधक (डीजीएम) राकेश चौधरी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई को बताया, ''हमने एक टेलीफोन एक्सचेंज स्थापित किया है. हम उन्हें भोजन भेजने के लिए इस्तेमाल होने वाले पाइप के माध्यम से लाइन से जुड़ा एक फोन देंगे. इस फोन में इनकमिंग और आउटगोइंग सुविधाएं होंगी. वे अपने परिवार से बात कर सकते हैं.'' चौधरी ने कहा कि एक्सचेंज सिलक्यारा सुरंग से 200 मीटर दूर स्थापित किया गया है.
बता दें कि विभिन्न एजेंसियों ने 12 नवंबर को उत्तराखंड के चार धाम मार्ग पर निर्माणाधीन सुरंग का एक हिस्सा भूस्खलन के चलते ढहने के बाद बचाव अभियान शुरू किया था.
तनाव दूर करने के लिए श्रमिकों को मोबाइल फोन और वीडियो गेम दिए गए
सुरंग फंसे हुए श्रमिकों को तनाव कम करने के लिए मोबाइल फोन और बोर्ड गेम भी दिए गए हैं. एक अधिकारी ने बताया, ''मोबाइल फोन इसलिए दिए गए हैं ताकि श्रमिक वीडियो गेम खेल सकें. उन्हें लूडो और सांप-सीढ़ी जैसे बोर्ड गेम भी उपलब्ध कराए गए हैं.” उन्होंने बताया कि श्रमिकों को ताश के पत्ते नहीं दिए गए. एक अन्य अधिकारी ने कहा, ''ये खेल उन्हें उनका तनाव दूर करने में मदद करेंगे.''
ऑगर मशीन हुई खराब
सुरंग में ‘ड्रिल’ करने में इस्तेमाल की जाने वाली ऑगर (बरमा) मशीन के ब्लेड मलबे में फंसने से काम बाधित होने के बाद दूसरे विकल्पों पर विचार किया जा रहा है, इसके चलते श्रमिकों को बाहर निकालने में कई और हफ्ते लग सकते हैं.
शुक्रवार (24 नवंबर) को लगभग पूरे दिन ‘ड्रिलिंग’ का काम बाधित रहा, हालांकि समस्या की गंभीरता का पता शनिवार को चला जब सुरंग मामलों के अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ अर्नोल्ड डिक्स ने संवाददाताओं को बताया कि ऑगर मशीन खराब हो गई है.
पीएम मोदी हर रोज ले रहे अपडेट- सीएम पुष्कर सिंह धामी
यह सुरंग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी ‘चार धाम’ परियोजना का हिस्सा है. शनिवार को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि पीएम मोदी शुरू किए गए बचाव अभियान के बारे में हर रोज अपडेट ले रहे हैं.
गढ़वाल हितैषिणी सभा की ओर से जारी एक बयान में धामी के हवाले से यह जानकारी दी गई है. धामी ने एक कार्यक्रम में एक वीडियो संदेश में कहा, ‘‘उन्होंने (पीएम मोदी) आश्वासन दिया कि केंद्र और राज्य सरकार सभी फंसे श्रमिकों को सुरक्षित ढंग से सुरंग से निकालने के लिए संयुक्त रूप से काम कर रही है.’’ सीएम धामी ने कहा कि प्रधानमंत्री बचाव अभियान के बारे में हर रोज जानकारी ले रहे हैं.’’
वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू करने की तैयारी
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) ने शनिवार को कहा कि सिलक्यारा सुरंग में फंसे श्रमिकों को निकालने के लिए जारी बचाव अभियान में लंबा समय लग सकता है, क्योंकि क्षैतिज ‘ड्रिलिंग’ के लिए ऑगर मशीन में बार-बार खराबी आ रही है और अब बचावकर्मी लंबवत (वर्टिकल) ड्रिलिंग शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं. एनडीएमए सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) सैयद अता हसनैन ने कहा कि लंबवत ‘ड्रिलिंग’ का काम अगले 24 से 36 घंटे में शुरू होगा.
'अभियान में लंबा समय लग सकता है'
सैयद अता हसनैन ने कहा कि ऑगर मशीन का अगला हिस्सा टूट गया है और सुरंग से उसे निकालने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने बचाव अभियान पूरा होने की कोई समयसीमा बताए बिना कहा, ‘‘हमें धैर्य रखने की जरूरत है क्योंकि यह एक खतरनाक अभियान है... इस अभियान में लंबा समय लग सकता है.’’
हसनैन के मुताबिक, यह बचाव अभियान हर दिन तकनीकी रूप से और जटिल होता जा रहा है. श्रमिकों को बाहर निकालने के लिए सुरंग के ढहे हिस्से में की जा रही ‘ड्रिलिंग’ शुक्रवार रात फिर से रोकनी पड़ी थी. शुक्रवार को ‘ड्रिलिंग’ बहाल होने के कुछ देर बाद ऑगर मशीन स्पष्ट रूप से किसी धातु की चीज के कारण बाधित हो गई थी.
अब तक कितने मीटर की हो चुकी है ड्रिलिंग?
एनडीएमए सदस्य ने कहा कि वर्तमान में 47-मीटर क्षैतिज ‘ड्रिलिंग’ पूरी हो चुकी है. उन्होंने कहा कि ऑगर मशीन के टूटे हुए हिस्से को हटाना होगा और ‘ड्रिल’ किए गए ढांचे को स्थिर रखना होगा. उन्होंने कहा कि बचावकर्ता अन्य विकल्प तलाश रहे हैं जैसे कि शेष हिस्से को हाथ से ‘ड्रिलिंग’ करना (मैन्युअल ड्रिलिंग और लंबवत ड्रिलिंग करना शामिल हैं.
लंबवत ड्रिलिंग विकल्प पर, एनडीएमए सदस्य ने कहा कि मशीनों को सुरंग के ऊपरी हिस्से में एक प्लेटफॉर्म पर रखा जा रहा है और लंबवत ‘ड्रिलिंग’ अभियान अगले 24 से 36 घंटे में शुरू हो जाएगा.
उन्होंने कहा कि सुरंग के ऊपरी हिस्से तक पहुंचने के लिए लगभग 86 मीटर तक लंबवत ‘ड्रिलिंग’ की आवश्यकता है. हसनैन ने कहा कि सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने सुरंग के ऊपर तक 1.5 किलोमीटर लंबी सड़क पहले ही बना दी है.
'तीसरी विधि का भी जल्द किया जा सकता है इस्तेमाल'
एनडीएमए सदस्य ने कहा कि वर्तमान में दो विधियों का इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन एक तीसरी विधि यानी ‘ड्रिफ्ट’ विधि का भी जल्द ही इस्तेमाल किया जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि सुरंग के अंदर ऑगर के फंसे हिस्सों को काटने के लिए उन्नत मशीनरी की आवश्यकता है और इस मशीनरी को हवाई मार्ग से लाने के लिए भारतीय वायु सेना की सहायता ली जा रही है.
बता दें कि सुरंग के ढहे हिस्से की लंबाई करीब 60 मीटर है. श्रमिकों तक भोजन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति के लिए छह इंच चौड़े ट्यूब को 57 मीटर तक पहुंचा दिया गया है. लगातार आ रही बाधाओं के कारण ऑगर मशीन से ड्रिलिंग और मलबे के बीच इस्पात का पाइप डालने का काम आगे नहीं बढ़ पा रहा है. श्रमिकों को इस पाइप से बाहर निकालने की योजना है.
(भाषा इनपुट के साथ)