Tunnel Accident: उत्तरकाशी टनल के रेस्क्यू में एक्सपर्ट को सता रहा ये डर, मजदूरों की निकासी में क्यों हुई देरी, जानें
Tunnel Rescue Operation: उत्तरकाशी सुरंग दुर्घटना के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन बहुत आसान नहीं है. NDRF के सदस्य रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सैयद अता हसनैन ने इसकी चुनौतियों के बारे में बताया है.
Uttarakhand Tunnel Accident Rescue Operation: उत्तरकाशी के सिलक्यारा गांव में निर्माणाधीन सुरंग धंसने के बाद उसमें 41 मजदूरों के फंसे होने की घटना के 12 दिन बीत गए हैं. अभी भी मजदूरों को सुरक्षित बाहर नहीं निकाला जा सका है. इसकी वजह से प्रशासन के प्रति मजदूरों के परिजनों की गुस्सा बढ़ रहा है. हालांकि अब सुरंग से मजदूरों के जल्द बाहर आने की उम्मीद बढ़ गई है.
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सैयद अता हसनैन ने रेस्क्यू ऑपरेशन की चुनौतियों के बारे में बताया है. उन्होंने कहा है कि हिमालय के क्षेत्र में जियोलॉजिकल प्रिडिक्शन आसान नहीं होता. इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने इस बात की उम्मीद जतायी है कि अब बचाव अभियान उस मोड़ पर है, जहां से मजदूरों को पाइप के जरिये आसानी से निकाला जा सकेगा.
मजदूरों तक पर्याप्त मात्रा में पहुंच रहा भोजन
उन्होंने कहा कि जीवन रक्षा के लिए राशन, दवा और अन्य आवश्यक चीजें कंप्रेसर की मदद से मजदूरों तक पहुंचाई जा रही हैं. मजदूरों को 4 इंच की पाइप लाइन से सूखे मेवे और अन्य खाने-पीने का सामान भेजा रहा है. उन्होंने कहा कि सुरंग के अंदर पर्याप्त पानी, ऑक्सीजन और रोशनी है. फिलहाल हमारा ध्यान ऑगर मशीन से हॉरिजोंटल ड्रिलिंग करने पर है. सुरंग पहले से ही बनी होने के कारण अंदर 2 किमी तक जगह मौजूद है.
क्यों हुई पांच दिन की देरी
रेस्क्यू ऑपरेशन में हो रही देरी को लेकर जनरल हसनैन कहते हैं, " जो काम किया जा रहा है वह बेहद तकनीकी है, लेकिन हिमालय क्षेत्र के भूविज्ञान को लेकर आप कोई भविष्यवाणी नहीं कर सकते हैं. 16, 17 नवंबर को जिस तरह की बाधाएं हमारे सामने आईं, उनकी वजह से राहत और बचाव अभियान में कम से कम पांच दिनों की देरी हुई है. मैं इतना जरूर कहूंगा कि हम कहीं बेहतर स्थिति में हैं.
मजदूरों तक पहुंची 80 सेंटीमीटर की पाइप
फंसे हुए श्रमिकों को बचाने के लिए एनडीआरएफ की योजना पर पर भरोसा जताते हुए हसनैन कहते हैं अंदर फंसे हुए मजदूरों तक 800 मिमी (80 सेंटीमीटर) व्यास वाले स्टील के पाइप पहुंच गए हैं. इसकी चौड़ाई इतनी है कि इसमें मजदूर घुसकर आराम से रेंगते हुए बाहर आ सकते हैं.
हालांकि, उन्होंने कहा, चूंकि श्रमिक 11 दिनों से फंसे हुए हैं, इसलिए उनकी एनर्जी कम हो सकती है. ऐसी स्थिति में, एनडीआरएफ कर्मी अंदर जाकर मजदूरों को बाहर ला सकते हैं." वह कहते हैं, "मुझे एनडीआरएफ पर पूरा भरोसा है कि वे ऐसा करने में सक्षम होंगे. वे बहादुर जवान हैं, और अंदर जाकर उन लोगों को बाहर लाने में सक्षम होंगे जो अपने आप बाहर नहीं आ सकते. "
श्रमिकों को सुरक्षित निकालने के लिए किए जा रहे अतिरिक्त उपाय
श्रमिकों को निकालने के लिए नए पाइप डालते समय अपनाए गए अतिरिक्त सुरक्षा उपायों के बारे में पूछे जाने पर, लेफ्टिनेंट जनरल हसनैन ने बताया कि पाइप के ढहने की संभावना से बचने के लिए एक निश्चित मात्रा में क्लैडिंग जोड़ी गई है.
हसनैन ने कहा, "मुझे लगता है कि जो पाइप अंदर गया है वह काफी मजबूत है, हालांकि उस पर सभी मलबे का भार है. यही कारण है कि मैं इस बात पर जोर दे रहा हूं कि हम जितनी तेजी से वहां से बाहर आएं, उतना ही बेहतर होगा."
क्या होती है क्लैडिंग
क्लैडिंग एक तरह की शिल्डिंग होती है जो सुरंग की परत से लगकर सारा बोझ झेलती है और पाइप उसके बीच से आसानी से अंदर जा सकता है. इसकी वजह से पाइप पर दबाव बहुत कम होगा और उससे निकलने वाले मजदूर सुरक्षित रहेंगे. उन्होंने आगे कहा कि बचाव कार्यों को बढ़ाने के लिए कई सरकारी विभागों और भारतीय सेना के इंजीनियरों को लगाया गया है.
दिवाली के दिन से फंसे हैं मजदूर
आपको बता दें कि दिवाली के दिन 12 नवंबर (रविवार) को निर्माणाधीन सुरंग भूस्खलन के बाद धंस गई थी, जिसमें 41 मजदूर फंस गए हैं. दुर्घटना के 12 दिन बीत जाने के बाद भी अत्यधिक भारी मशीनों से भी मलबे को नहीं हटाया जा सका है. यह टनल महत्वाकांक्षी चारधाम परियोजना का हिस्सा है, जो बद्रीनाथ, केदारनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री तक कनेक्टिविटी बढ़ाने के लिए एक नेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर पहल का हिस्सा है.
जल्द बाहर आने की उम्मीद
अब सुरंग में राहत और बचाव अभियान के लिए जो मलबे में छेद करने का काम है वह मजदूरों के करीब पहुंचा है. इसकी वजह से अब उनके जल्द बाहर निकलने की उम्मीद बढ़ गई है. इसके लिए जिले के सभी अस्पतालों के साथ-साथ एम्स, ऋषिकेश को भी अलर्ट पर रखा गया है.