Uttarakhand Tunnel Crash: उत्तरकाशी में 6 दिनों से सुरंग में फंसे मजदूर, ड्रिलिंग के बाद रुका रेस्क्यू ऑपरेशन, जानें बड़ी बातें
उत्तरकाशी में बनाए गये इमरजेंसी कंट्रोल रुम से मिली जानकारी के मुताबिक सुरंग में 45 से 60 मीटर तक मलबा जमा है जिसमें ड्रिलिंग का काम फिलहाल के लिए रोक दिया गया है.
Uttarakhand Tunnel Crash: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में सिलक्यारा सुरंग में बीते 6 दिन से फंसे 40 मजदूरों को निकालने का काम फिलहाल के लिए रोक दिया गया है. ऐसा इसलिए ऐसा किया गया है क्योंकि अमेरिकी ऑगर मशीन ने शुक्रवार (18 नवंबर 2023) को देर रात ड्रिलिंग के वक्त क्रैक की आवाज सुनी जिस वजह से वहां पर इस काम को थोड़ी देर रोकने के लिए आदेश दिया गया.
हमारे रिपोर्टर के मुताबिक घटनास्थल पर मौजूद बचाव अधिकारी और इस मामले की समझ रखने वाली बाकी संस्थाएं एक बार फिर से मीटिंग करके नई रणनीति बनाने को लेकर विचार कर रही हैं. इस रेस्क्यू ऑपरेशन को लेकर अब तक की हम आपको बड़ी बातें बताएंगे.
उत्तरकाशी, सिलक्यारा टनल से जुड़ी आज की 5 बड़ी बातें
1. टनल में अब तक सिर्फ 4 पाइप ही ड्रिल हो पाए हैं यानि 22 मीटर की ड्रिलिंग पूरी हो चुकी है.
2. ड्रिल करने वाली मशीन के आगे के हिस्से का बेयरिंग टूट गया है इसलिये कल तकरीबन 11 बजे के बाद से काम अभी तक बंद है. जिसे ठीक करने की कोशिश चल रही है.
3. टनल के भीतर कल बहुत तेज क्रेकिंग की आवाज वहां काम कर रही रेस्क्यू टीम को सुनाई दी. जिसके बाद से दहशत का माहौल बन गया. अब ये आशंका जताई जा रही है कि और भी मलबा टनल में गिर सकता है.
4. मौजूदा स्थिति को देखते हुये रेस्क्यू ऑपरेशन में लगे अधिकारियों ने एक मीटिंग बुलाई है. जिसमें आगे रेस्क्यू कैसे चलेगा इस पर रणनीति तैयार की जायेगी.
5. इंदौर से एक और अमेरिकन ऑगर ड्रिलिंग मशीन एहतियातन मंगाई गई है. जिसे ज़रूरत पड़ने पर इस्तेमाल में लाया जायेगा.
क्या है एग्जिट प्लान?
सिलक्यारा में बने उत्तरकाशी जिला आपातकालीन परिचालन केंद्र के नियंत्रण कक्ष से मिली जानकारी के अनुसार, सुरंग में जमा मलबे में रात भर चले चली ड्रिलिंग के बाद 22 मीटर की दूरी तक भेदा जा चुका है. सुरंग में 45 से 60 मीटर तक मलबा जमा है जिसमें ड्रिलिंग की जा रही है.
योजना यह है कि ड्रिलिंग के जरिए मलबे में रास्ता बनाते हुए उसमें 900 मिमी व्यास के छह मीटर लंबे पाइप को एक के बाद एक इस तरह डाला जाएगा कि मलबे के एक ओर से दूसरी ओर तक एक ‘वैकल्पिक सुरंग’ बन जाए और श्रमिक उसके माध्यम से बाहर आ जाएं.