उत्तरकाशी की एक सुरंग में देश के 41 लोग 9 दिन से फंसे हुए हैं. उन्हें बाहर निकालने की कोशिश हो रही है. सूरज रोज इस उम्मीद के साथ निकलता है कि आज वो मजदूर शायद बाहर आ जाएंगे, लेकिन सूर्यास्त के साथ एक और दिन नाउम्मीदी का अंधेरा बिखेरकर खत्म हो जाता है. पूरे हिंदुस्तान के मन में सिर्फ एक सवाल है कि आखिर ये सुरंग कब खुलेगी?
9 दिन पहले 12 नवंबर, 2023 यानी जिस दिन पूरा देश दिवाली मना रहा था तब 41 जानें उत्तरकाशी के सिल्क्यारा टनल के भीतर फंस गईं. सुबह करीब पौने नौ बजे पहाड़ का मलबा गिरने से सुरंग ब्लॉक हो गई. सुरंग में फंसे मजदूरों को बोतलों में खाना-पानी भरकर पाइप के जरिए भेजा जा रहा है. मंगलवार (21 नवंबर, 2023) को पहली बार इन मजदूरों का वीडियो सामने आया है.
टनल में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए पूरे सिस्टम ने जोर लगा रखा है. विदेश से सुरंग के एक्सपर्ट बुलाए गए हैं. इंदौर से लेकर अमेरिका तक से सुरंग को भेदने के लिए भारी-भरकम मशीनें मंगाई जा रही है. एक दो नहीं... 5 विकल्पों पर काम किया जा रहा है लेकिन कोई ऐसी खबर नहीं आ रही जिसे सुनकर दिल को चैन की सांस आ जाए. दीवाली के दिन उत्तरकाशी में ये हादसा हुआ था और 9 दिन बीतने के बाद देश के मन में सवाल है कि आखिर हो क्या रहा है. 41 मजदूर बाहर क्यों नहीं आ रहे. केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर कोशिश कर रहीं तो रुकावट आखिर आ कहां आ रही है. तो चलिए बारी-बारी आपको रेस्क्यू ऑपरेशन के प्लान और प्लान में आ रहे रोड़े के बारे में बताते हैं-
पहला प्लान
सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकालने के लिए 6 अलग-अलग प्लान पर काम हो रहा है लेकिन जो सबसे ताजा प्लान है वो समझिए. सुरंग के ऊपर मौजूद पहाड़ की चोटी में ड्रिल करके सुरंग के भीतर जाने की कोशिश हो रही है. हालांकि, ये इतना आसान नहीं है. चोटी तक भारी मशीनों को जाना है और इसके लिए बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन यानि बीआरओ को बुलाया गया है. बीआरओ की टीम पहाड़ की चोटी तक जाने का रास्ता बना रही है ताकि मशीनों के हिस्से वहां तक ले जाए जा सकें. यानी पहले पहाड़ को समतल करके सड़क बनेगी फिर मशीन के पार्ट्स पहुंचेंगे और फिर उससे सुरंग को भेदा जाएगा.
दूसरा प्लान
मजदूर सूखे मेवे और मल्टीविटामिन जैसी चीजें खाकर अपना पेट भर रहे हैं लेकिन अब उन्हें खाना पहुंचाने के लिए सुरंग तक एक मोटा पाइप डालने की कोशिश हो रही है. दरअसल, मजदूरों तक पहुंचने के लिए सुरंग के ऊपर पहाड़ की चोटी से ड्रिल की जाएगी, लेकिन पहले छोटा पाइप डाला जाएगा ताकि सुरंग तक रोटी चावल, पानी और कैमरा भेजा जा सके. अगर सुरंग की चोटी से छोटा पाइप चला गया तो फिर वहां से बड़ा पाइप डालने की कोशिश की जाएगी ताकि मजदूरों तक पहुंचा जा सके. इसमें मुश्किल ये है कि पहाड़ के ऊपर से छेद करने के लिए 103 मीटर तक छेद करना होगा जो कि एक जोखिम भरा काम होगा.
तीसरा प्लान
मजदूरों तक पहुंचने के लिए तीसरा प्लान सुरंग के मुख्य रास्ते से ही पहुंचने का है जो पहले दिन से किया जा रहा है. सुरंग का ये हिस्सा उत्तरकाशी में सिल्कियारा की तरफ खुलता है. जानकारी के मुताबिक, सुरंग के भीतर करीब 60 मीटर में फैले मलबे में 24 मीटर तक छेद किया जा चुका था लेकिन शुक्रवार को काम अचानक रोकना पड़ा था. तय है कि सामने वाले रास्ते से मलबे को हटाने में मुश्किल पेश आ रही है और इसीलिए अब पहाड़ की चोटी से और बड़ा छेद करने की प्लानिंग हुई है. सबसे बड़ी चुनौती मजदूरों को सुरंग के भीतर स्वस्थ रखने की है. लगातार सुरंग के भीतर 6 इंच का पाइप डालने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन एक विशाल पत्थर ने रास्ता रोक रखा था. जब से मजदूर फंसे हैं. इन 9 दिनों में पहली बार खुशखबरी आई जब ये पता चला कि 6 इंच का पाइप मजदूरों तक पहुंचाने में सफलता मिल गई है.
चौथा प्लान
चौथा प्लान सुरंग के दूसरे मुहाने से अंदर जाने का है. सुरंग का दूसरा मुहाना बडकोट की तरफ से खुलता है. सुरंग के दोनों तरफ के रास्ते पर मलबा है और मलबे के बीच में 2 किमी के इस दायरे में मजदूर मौजूद हैं. सुरंग का ये हिस्सा पूरा हो चुका था. इस सुरंग में पानी और बिजली है, लेकिन सूरज की रोशनी नहीं पहुंच रही है. 41 मजदूरों के परिवार के लोग सुरंग के बाहर मौजूद हैं. इस इंतजार में कि सुरंग का दरवाजा खुलेगा और खुशखबरी मिलेगी.
पांचवां प्लान
पांचवें प्लान के तौर पर बचाव टीम सुरंग के दाएं और बाएं तरफ से भी ड्रिल करने की कोशिश की जाएगी. फिलहाल कोई नहीं जानता कि सफलता कब और कहां से मिलेगी इसलिए हर दिशा से प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती ये है कि इस कोशिश में सुरंग के भीतर मौजूद मजदूरों को किसी तरह की चोट ना पहुंचे.
सुरंग में ड्रायफ्रूट्स, लईया और पानी खा रहे मजदूर
एक छोटे से पाइप के जरिए मजदूरों को ड्रायफ्रूट्स, लईया, चना मुरमुरा और पानी पहुंचाया जा रहा है. लोग मजदूरों की सलामती के लिए दुआ मांग रहे हैं. गंगोत्री धाम के पुजारी सतीश सोमवाल गोमुख से गंगाजल लेकर उत्तरकाशी की सिलक्यारा सुरंग के दरवाजे तक पहुंचे. सुरंग हादसे को वहां के स्थानीय लोग भगवान की नाराजगी से जोड़ रहे हैं. इस हादसे के पीछे लोग बाबा बौखनाग की नाराजगी को मान रहे हैं.
लोगों का कहना है कि सुरंग के पास बाबा बौखनाग का मंदिर था जिसे कंपनी ने तोड़ दिया था जबकि पहले अधिकारी और मजदूर मंदिर में बाबा की पूजा करने के बाद ही सुरंग में प्रवेश करते थे. एक तस्वीर भी सामने आई है, जिसमें देखा गया कि जब सुरंग के प्रवेश द्वार के ठीक बगल में एक अस्थाई मंदिर बनाया गया है. 41 जिंदगी को बचाने के लिए उत्तरकाशी की सिल्कयारा टनल पर पहुंचे इंटरनेशनल एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स ने भी सबसे पहले सुरंग के पास बने मंदिर में माथा टेका था.