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Uttarakhand Tunnel Rescue: गरीबी के पहाड़ के नीचे दबे मजदूर, सिल्क्यारा टनल में काम करने के लिए मिल रही थी 18,000 रुपये सैलरी

झारखंड के रांची के रहने वाले अनिल की मां ने कहा कि गरीबी उनके बेटे को सुरंग में काम करने के लिए ले गई. अनिल बेहद गरीब परिवार से हैं और वह यहां एक कच्चे घर में रहते हैं.

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले की सिल्क्यारा टनल में 17 दिन से फंसे 41 मजदूरों को मंगलवार (29 नवंबर) रात को बाहर निकाल लिया गया. सभी मजदूर सुरक्षित बाहर आ गए. आज मजदूरों के परिवारजन बहुत खुश हैं, लेकिन ये 17 दिन उनके लिए कितनी मुश्किल भरे रहे, ये बात तो वही जानते हैं. टनल में फंसे ये 41 मजदूर अलग-अलग राज्यों से यहां मजदूरी करने के लिए आए हुए थे. गरीबी की वजह से ये घर से इतनी दूर यहां पड़े हैं. जब यह हादसा हुआ तो उनके घरवाले अपनों की खौज खबर लेने के लिए उत्तरकाशी पहुंचे, लेकिन यहां तक पहुंचना बेहद मुश्किल भरा था.

झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार और यूपी समेत अलग-अलग राज्यों के मजदूर चार धाम राष्ट्रीय राजमार्ग प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं. सिल्क्यारा टनल भी 1.5 बिलियन डॉलर के इस प्रोजेक्ट का ही हिस्सा है. 12 नवंबर को सुबह 5.30 बजे जब यह हादसा हुआ तो मजदूरों के घरवालों को भी इसकी खबर मिली और यह सुनते ही वह परेशान हो गए.

टिकट खरीदने के लिए भी नहीं थे पैसे
किसी का बेटा तो किसी का भाई सिल्क्यारा टनल में फंसा था. ऐसे में परिवारवालों ने अपनों से मिलने के लिए उत्तरकाशी जाने का सोचा, लेकिन उनके पास इतना पैसा नहीं था कि यहां तक टिकट खरीद सकें. यह भी नहीं पता था कि मजदूरों को बाहर आने में कितना समय लगेगा तो यहां रहने के लिए भी पैसे की जरूरत होगी. यही सब सोचकर किसी ने अपनी पत्नी के जेवर बेचे तो किसी ने कोई और कीमती सामान बेच दिया और जो पैसा मिला वह लेकर उत्तरकाशी पहुंच गए. ऐसी ही कहानी है यूपी के लखीमपुर के अखिलेश कुमार की, जिनका बेटा मंजीत टनल में फंसा था.

पिता बोले- अब कभी बेटे को सुरंग में काम करने के लिए नहीं भेजूंगा
अखिलेश कुमार ने बताया कि वह अपनी पत्नी की नथ, पायल और अन्य गहने सुनार के पास गिरवी रखकर उत्तरकाशी पहुंचे हैं. वह घर से तो 9 हजार रुपये लेकर निकले थे और रेस्क्यू ऑपरेशन तक सिर्फ 290 रुपये ही रह गए. अखिलेश ने बताया कि मंजीत उनका दूसरे नंबर का बेटा है. बड़े बेटे दीपू को वह पहले ही सड़क हादसे में खो चुके हैं, जो मुंबई में रहकर काम कर रहा था. इस हादसे के बाद अखिलेश कुमार का कहना है कि वह कभी अपने बेटे को किसी सुरंग में काम करने के लिए नहीं भेजेंगे.

गरीबी और हालात इन मजदूरों को टनल में ले गए
झारखंड के रांची के पास के रहने वाले अनिल की भी यही कहानी है. अनिल का परिवार यहां एक कच्चे मकान में रहता है. अनिल ने भी गरीबी के कारण 18,000 रुपये के लिए यह काम चुन लिया. अनिल की मां का कहना है कि गरीबी उनके बेटे को सुरंग में काम करने के लिए ले गई. इस टनल में फंसे इन सभी 41 मजूदरों की ऐसी ही कहानी है. इन सभी की एक ही जाति है- गरीबी, जो इन्हें काम करने के लिए उत्तरकाशी की टनल में ले गई.

टनल में काम कर रहे मजदूरों को मिल रही थी कितनी सैलरी
ये 41 मजदूर सिर्फ 18,000 रुपयों के लिए सिल्क्यारा टनल में काम कर रहे थे. ये जानते हुए भी की इस सुरंग में काम करने में बहुत खतरा है फिर भी महज 18,000 रुपयों के लिए उन्होंने यह जोखिम लिया. वह कर भी क्या सकते थे क्योंकि वह गरीबी और घर के हालातों के सामने मजबूर थे. अगर वह टनल में काम करने का विकल्प नहीं चुनते उनका परिवार भूख और गरीबी से मर जाता.

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