'देवभूमि' उत्तराखंड का उत्तरकाशी जिला पिछले कुल दिनों से 'लव जिहाद' को लेकर चर्चा का केंद्र बना हुआ है. यहां हाल ही में एक हिंदू नाबालिग लड़की के अपहरण की कोशिश का मामला सामने आया था. जिसमें दो पुरुष शामिल थे और उनमें से एक मुस्लिम था. 


इस घटना से नाराज स्थानीय लोगों ने इसे लव जिहाद करार देते हुए वहां रह रहे मुस्लिमों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया और सड़क पर उतर आए. सोशल मीडिया पर ऐसे कई वीडियो सामने आ रहे हैं जिनमें जिले के मुस्लिम व्यापारियों को अपनी दुकानें बंद करने की धमकी देते हुए उनके दुकान के आगे पोस्टर चिपकाए जा रहे हैं. 


पोस्टर पर लिखा है, 'सभी लव जिहादियों को सूचित किया जाता है कि 15 जून को महापंचायत होने से पहले-पहले अपनी दुकानों को खाली कर दें.' 


इस धमकी के बाद उत्तरकाशी के पुरोला से कुछ मुस्लिम परिवारों ने पलायन भी कर दिया है. मीडिया की मानें तो बिगड़ते माहौल को देखते हुए इस जिले के बाजारों में मुस्लिमों ने अपनी दुकानें भी खाली कर दी हैं. हालांकि जिला पुलिस प्रशासन का दावा है कि इलाके में शांति और अमन चैन है.



(फोटो क्रेडिट- सोशल मीडिया)


दोनों समुदाय के लोगों ने बुलाई महापंचायत


अब इस मामले को लेकर 15 जून को देवभूमि रक्षा अभियान ने एक महापंचायत का आयोजन किया है. जिले में रह रहे मुसलमानों को धमकी दी गई है कि वह इस महापंचायत से पहले वहां की दुकानें खाली कर दें. वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम समाज ने भी 18 जून को देहरादून में महापंचायत बुलाई है. 




अब समझते हैं क्या है पूरा मामला 


उत्तरकाशी के पुरोला कस्बे के स्थानीय लोगों ने 26 मई 2023 को उबेद और जितेंद्र सैनी नाम के दो लड़के को वहां की रहने वाली नौवीं कक्षा की एक नाबालिग हिंदू लड़की के साथ पकड़ा और उसे पुलिस के हवाले कर दिया था.


जिसके बाद उबेद और जितेंद्र दोनों के खिलाफ पॉक्सो एक्ट में मुकदमा दर्ज किया गया. इस घटना के बाद पुरोला में अलग अलग संगठनों ने मुस्लिम समुदाय के मोर्चा खोल दिया. इन संगठनों का दावा है कि वह युवक नाबालिग लड़की बहला फुसला रहे थे. 


उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने क्या कहा 


तनावपूर्ण माहौल को देखते हुए उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने लव जिहाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाने की बात कही है. 




विरोध प्रदर्शन के खिलाफ बोलने पर दी गई धमकी 


बीजेपी पदाधिकारी मोहम्मद ज़ाहिद ने द हिंदू से बात करते हुए कहा कि जब उन्होंने दक्षिणपंथी समूहों का का विरोध किया, तो उन्हें उनके कपड़े की दुकान जला दिए जाने की धमकी दी गई. जाहिद पिछले दो दशक से ज्यादा समय से उत्तरकाशी में रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि जब उन्हें अपनी पार्टी से ही किसी तरह का कोई समर्थन नहीं मिला है. 


घटना का विरोध कर रहे लोगों ने क्या कहा 


बीबीसी की एक रिपोर्ट में बीजेपी के पूर्व जिला अध्यक्ष अमीचंद शाह ने कहा कि ये विरोध प्रदर्शन किसी संगठन या पार्टी का नहीं है, बल्कि यह तो जनता का आंदोलन है.”


अमीचंद ने कहा , “जनता नहीं चाहती कि अब ये लोग यहां रहें, इन लोगों का एक आदमी यहां आता है उसके बाद अपने साथ ये 10 लोग ले आते हैं. इन लोगों का यहां कोई सत्यापन भी नहीं हुआ है, मालूम नहीं कौन कहां का है? ये लोग यहां राम और घनश्याम बनकर घूमते हैं.”


क्या है धर्मांतरण-रोधी कानून 


उत्तराखंड में साल 2018 में जबरदस्ती धर्म परिवर्तन कराए जाने को रोकने के लिए एक कानून लाया गया था. जिसके तहत दोषी को एक से 1 से 5 साल की कैद और एससी-एसटी के मामले में 2 से 7 साल की कैद की सजा का प्रावधान था. 


साल 2022 में पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने इस कानून को और सख्त कर दिया है. इस बार जबरन धर्म परिवर्तन कराने वाले दोषी को 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया.




किन-किन राज्यों में है धर्मांतरण विरोधी कानून?


ओडिशा- इस राज्य में जबरन धर्मांतरण पर एक साल की कैद और 5 हजार रुपये की सजा हो सकती है.


मध्य प्रदेश- इस राज्य में जबरन धर्मांतरण कराए जाने पर 1 से 10 साल तक की कैद और 1 लाख तक का जुर्माना लग सकता है. 


अरुणाचल प्रदेश- कानून के तहत जबरन धर्मांतरण कराने पर 2 साल तक की कैद और 10 हजार रुपये तक के जुर्माने की सजा हो सकती है.


छत्तीसगढ़- जबरन धर्मांतरण कराने पर 3 साल की कैद और 20 हजार रुपये जुर्माना. वहीं मामाला अगर नाबालिग या एससी-एसटी से जुड़ा हुआ है तो 4 साल की कैद और 40 हजार रुपये जुर्माने की सजा का प्रावधान है.


गुजरात- इस राज्य में जबरन धर्मांतरण कराने पर 5 साल की कैद और 2 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है. जबकि एससी-एसटी और नाबालिग के मामले में दोषी को 7 साल की सजा और 3 लाख रुपये का जुर्माना देना होगा.


झारखंड- इस राज्य में जबरदस्ती धर्म परिवर्तन करवाने पर दोषी को 3 साल की कैद और 50 हजार रुपये के जुर्माने की सजा हो सकती है. अगर पीड़िता नाबालिग या एससी-एसटी है तो इस मामले में 4 साल की कैद और 1 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.


हिमाचल प्रदेश- इस राज्य में साल 2019 में धर्मांतरण विरोधी कानून लाया गया था. यहां दोषी को 1 से 5 साल तक की कैद हो सकती है. अगर पीड़िता एससी-एसटी है तो ऐसी स्थिति में दोषी को 2 से 7 साल तक की कैद हो सकती है. जुर्माने का भी प्रावधान किया गया है.


उत्तर प्रदेश- इस राज्य में साल 2020 में जबरन धर्मांतरण के खिलाफ कानून लाया गया था. इस कानून के तहत दोषी को 1 से 5 साल तक की कैद, 15 हजार रुपये तक का जुर्माना और एससी-एसटी के मामले में 2 से 10 साल की कैद और 25 हजार रुपये के जुर्माने की सजा का प्रावधान है.