Uttarkashi Tunnel Rescue: उत्तराखंड की सिल्कयारा सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को मंगलवार (28 नवंबर) को बाहर निकाल लिया गया है. यह मजदूर 12 नवंबर से टनल में फंसे हुए थे. 17 दिन से सुरंग में फंसे मजदूरों के पास सबसे पहले रैट माइनर मुन्ना कुरैशी पहुंचे. मुन्ना ने उस क्षण को याद करते हुए कहा कि जब हम वहां पहुंचे तो लोगों ने हमें गले लगा लिया.
उन्होंने कहा कि "मैंने आखिरी चट्टान हटाई, मैं उन्हें (मजदूरों) देख सकता था. इसके बाद मैं दूसरी तरफ चला गया और तब में मैं नहीं देख सका. उन्होंने हमें गले लगाया, उठाया और उन्हें बाहर निकालने के लिए धन्यवाद दिया."
'मैं जीवन भर नहीं भूल सकता'
मुन्ना ने कहा कि हमने पिछले 24 घंटों में लगातार काम किया. मैं अपनी खुशी व्यक्त नहीं कर सकता. मैंने यह अपने देश के लिए किया है. रैट माइनर कहा, ''उन्होंने (फंसे हुए मजदूरों ने) हमें जो सम्मान दिया है, मैं उसे जीवन भर नहीं भूल सकता.''
'मैंने मजदूरों को गले लगाया'
अंतिम चरण में मैन्युअल रूप से मलबा साफ करने वाले दिल्ली के एक अन्य रैट माइनर फिरोज कुरैशी जब सुरंग से बाहर निकले तो वह अपने आंसू नही रोक पा रहे थे. उन्होंने भावनात्मक रूप से कहा, "मैंने फंसे हुए मजदूरों को गले लगाया और रोया."
क्या होती है रैट माइनिंग?
ऐसे में सवाल उठता कि जिन रैट माइनर्स ने कड़ी मेहनत के बाद सुरंग में फंसे मजदूरों को बाहर निकाला आखिर वह कौन होते हैं और क्या काम करते हैं. दरअसल, रैट माइनर्स 'रैट-होल माइनिंग' से जुड़े काम करते हैं. रैट-होल माइनिंग एक मैन्युअल ड्रिलिंग तकनीक होती है.
इसमें कुशल मजदूरों की मदद से संकीर्ण गड्ढे खोदे जाते हैं. यह गड्ढे इतने चौड़े होते हैं कि इसमें एक व्यक्ति आराम से आ सकता है. इसका इस्तेमाल सबसे ज्यादा मेघालय में किया जाता है.
इन गड्ढों की खुदाई के बाद माइनर रस्सियों और बांस की सीढ़ियों का उपयोग करके छेद में उतरते हैं. यह विधि मुख्य रूप से कोयला निष्कर्षण के दौरान की जाती है और बेहद खतरनाक और जोखिम भरी होता है. इसमें दम घुटने, ऑक्सीजन की कमी और भुखमरी के कारण माइनर की मौत हो सकती है.
एनजीटी 2014 में लगाया था बैन
रैट माइनिंग अप्रौच को इसकी खतरनाक वर्क कंडीशन, पर्यावरणीय को नुकसान पहुंचाने और चोटों और मौतों की कई दुर्घटनाओं के कारण काफी आलोचना का सामना करना पड़ा है. रैट माइनिंग लैंड डिग्रेडेशन , वनों की कटाई और जल प्रदूषण को बढ़ाते हैं. इसके चलते नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 2014 में इसपर प्रतिबंध लगा दिया था.
मजदूरों को बचाने में रैट-होल माइनिंग ने कैसे मदद की?
अमेरिका से आई ऑगन मशीन के खराब होने के कारण बचाव अभियान में हुई देरी के बाद रेस्क्यू का अंतिम चरण रैट माइनर्स ने ही पूरा किया था. इन कुशल माइनर्स ने ड्रिलिंग प्रक्रिया को सफलतापूर्वक पूरा किया और पाइपलाइनों स्थापित करने के लिए सभी मलबे को साफ किया और ध्वस्त सुरंग में फंसे मजदीरों को सुरक्षित बाहर निकाला .