Uttarkashi Tunnel Rescue Operation: उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में बन रही सिलक्यारा सुरंग में बीते 9 दिनों से 41 मजदूर फंसे हुए हैं. मजदूरों को बाहर निकालने के लिए सरकार युद्धस्तर पर प्रयास कर रही है. वहीं पर्वतों और हिमालयी श्रंखला के बारे में जानकारी रखने वाले लोगों की मानें तो यहां पर सुरंग बनाने का काम ही पर्यावरण और आम लोगों की जान को खतरे में डालने जैसा काम है.
सुरंग खोदते समय होने वाले ऐसे संभावित हादसों को रोकने के लिए सरकार ने आवश्यक एक्ट बना रखे हैं. 1952 में भारत की संसद ने माइनिंग एक्ट को मंजूरी दी थी जिसमें उसने मजदूरों की सेफ्टी को प्राथमिकता पर रखा था. सरकार ने मजदूरों की सेफ्टी को ध्यान में रखते हुए कई नियम बनाए थे. इन नियमों के मुताबिक अगर कोई भी मजदूर खनन कर रहा है तो उसके लिए पानी और यूरिनल का इंतजाम बेहद जरूरी होगा.
यूरिनल के 6 मीटर के दायरे में नहीं हो पीने का पानी
माइनिंग एक्ट 1952 की धारा 19 के अनुसार, पीने का पानी किसी भी मूत्रालय या कपड़े धोने के स्थान के 6 मीटर के भीतर नहीं होना चाहिए. इसके अलावा माइनिंग एक्ट, 1955 का नियम 30 कहता है कि खदान में काम करने वाला व्यक्ति खनन करने के लिए केवल दो लीटर पीने का पानी ही ले जा सकता है. हालांकि, अतिरिक्त पानी पाइपलाइनों के माध्यम से उपलब्ध कराया जाएगा और इसके लिए कोई पैसा नहीं लिया जाएगा.
पीने के पानी के लिए बनाए गये नियमों के मुताबिक अगर किसी माइनिंग में 100 से अधिक मजदूर किसी खदान में एक साथ एक ही समय पर काम कर रहे हैं तो उनके लिए खान के अंदर ही पीने के पानी की व्यवस्था करनी होगी. नियम कहता है कि खान में काम करने वाले लोगों की नियमित जांच होगी जिससे यह पता लगाया जा सके कि उनको किसी तरह की कोई स्वास्थ्य समस्या तो नहीं है.
ये भी पढ़ें: 'मौत की सुरंग' से 41 मजदूरों को निकालेगा 'दक्ष'? रेस्क्यू ऑपरेशन में तैनात रोबोटिक व्हीकल के बारे में जानें सबकुछ