Uttarkashi Tunnel: छोटे पाइपों में जा नहीं पा रहे थे NDRF के जवान, तब प्रवीण ने जोखिम में डाली जान और रेस्क्यू ऑपरेशन को बनाया सफल
Uttarkashi Tunnel Rescue Successful: सुरंग में फंसे 41 मजदूरों अब बाहर निकाला जा रहा है. ऐसे में उनके परिजन समेत देश भर में जश्न का माहौल है. साथ ही बचाव अभियान में शामिल लोगों की सराहना हो रही है.
Uttarkashi Tunnel Rescue: पिछले 17 दिनों से उत्तरकाशी सुरंग में फंसे 41 मजदूरों को बाहर निकाला जा चुका है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय मंत्री वीके सिंह ने मजदूरों का शॉल उढ़ाकर स्वागत किया. 17 दिनों तक चले इस रेस्क्यू अभियान के दौरान कई उतार-चढाव आए. कई बार उम्मीदें पस्त होती दिखी, लेकिन हर बार कोई ना कोई नया हीरो सामने आया. इसी बीच एक नाम चर्चा का विषय बना हुआ है.
दरअसल, हम बात कर रहे हैं, भूमिगत सुरंग विशेषज्ञ प्रवीण यादव की. जिन्होंने 'द इंडियन एक्सप्रेस' के साथ बातचीत में अपने अनुभव के बारे में बताया है. उन्होंने बताया है कि जब ऑगर ड्रिल मशीन के रास्ते में एक धातु का गार्डर आया, तब वह कैसे 45 मीटर से अधिक दूरी तक पाइप में रेंगते हुए मोर्चे पर पहुंचे.यहां पहुँचने के बाद उन्होंने किस तरह मशीन को फिर से चालू करने के लिए 3 घंटे तक अथक परिश्रम कर गैस कटर की मदद से पाइप को काटा.
मैंने अपने सहयोगी के साथ अंदर जाने का फैसला किया
प्रवीण ने द इंडियन एक्सप्रेस' से बात करते हुए कहा कि एनडीआरएफ के सदस्यों सहित कई लोगों ने अंदर जाने की कोशिश की, लेकिन ब्लोअर या उचित ऑक्सीजन आपूर्ति के अभाव में वे असफल रहे. जब कुछ और काम नहीं आया, तो मैं (अपने सहायक और साथी बलिंदर यादव के साथ) अंदर जाने के लिए तैयार हो गया, लेकिन मेरे बॉस ने मुझे एनडीआरएफ कर्मियों के प्रयास का इंतजार करने के लिए कहा.
एनडीआरएफ के जवान इसलिए हुए असफल
उन्होंने आगे बताया कि एनडीआरएफ के जवान आकार में बड़े थे और पाइप बहुत छोटे था. ऐसे में वे अंदर नहीं जा पा रहे थे. फिर मैंने अंदर जाने की योजना बनाई. जिसके बाद मैंने गैस कटर और दो पानी की बोतलें लीं और जगह कम होने की वजह से रेंगते हुए अंदर चला गया. फिर 40 मीटर के बाद मशीन से कटाई शुरू की तो मशीन की हीट ने रही-सही ऑक्सीजन भी निगल ली. हालत यह हो गई कि हमारी सांसें फूलने लगीं. लेकिन हमने हार नहीं मानी.
अनुभव आया काम
यादव ने आगे कहा कि गैस कटर का उपयोग करते समय चिंगारी उनके चेहरे और शरीर पर लग रही थी, लेकिन उनके पास एक सुरक्षा जैकेट, दस्ताने, चश्मा और एक हेलमेट था. उन्होंने कहा कि उस वक्त हमारा अनुभव काम आया, हमें पता था कि किस कोण पर काटना है ताकि खतरा कम से कम हो,.उन्होंने कहा कि ड्रिलिंग में बाधाएं अधिक आने के कारण, वह दिन में दो-तीन बार अंदर जा रहे थे.
किसी दिन मेरे साथ भी ऐसा हादसा हो सकता है
उन्होंने कहा कि वह अमोनिया से भरी जगह में फंसे चार लोगों को बचाने वाले अभियान का हिस्सा रह चुके हैं, लेकिन यह उनका अब तक का सबसे कठिन ऑपरेशन था. उन्होंने आगे कहा कि मुझे पता है कि अंदर फंसे लोग मेरे जैसे ही मजदूर हैं. मैं खुद भूमिगत सुरंगों में काम करता हूं और किसी दिन यह मेरे साथ भी हो सकता है. फिर कोई और मेरी मदद करेगा जैसे मैंने इस ऑपरेशन में मदद की.