Uttarkashi Tunnel Collapse: उत्तराखंड के उत्तरकाशी स्थित सिल्क्यारा में फंसे मजदूरों को निकालने के लिए वर्टिकल ड्रिलिंग रविवार (26 नंवबर) शुरू कर दी गई. वर्टिकल ड्रिलिंग के जरिए पहाड़ी को लगभग 110 मीटर तक खोदा जाना है. अब तक मशीन पहाड़ी में लगभग 20 मीटर ड्रिल कर चुकी है. 


सिल्क्यारा-बारकोट सुरंग प्रोजेक्ट के शुरू होने से पहले सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) को सौंपी गई एक भूवैज्ञानिक रिपोर्ट से पता चलता है कि प्रस्तावित सुरंग में कई कमजोर चट्टानें हो सकती हैं. ऐसे में इन चट्टानों को सहारा देने के लिए सपोर्ट की जरूरत होगी.


'30 प्रतिशत चट्टानें कमजोर'
हिंदुस्तान टाइम्स के मुताबिक रिपोर्ट में कहा गया है कि सरफेस जियोलॉजी से यह अनुमान लगाया गया था कि डायवर्जन टनल के साथ जाने वाली 20 प्रतिशत चट्टाने अच्छा होती हैं, 50 फीसदी बढ़िया, 15 फीसदी खराब और 15 पर्सेंट बहुत खराब हो सकती हैं. 


रिपोर्ट के अनुसार इस क्षेत्र की चट्टानें कमजोर तलछटी वाली हैं. इनमें  स्लेट, वेजेज और सिल्टस्टोन शामिल हैं. ऐसे में निर्माण योजना के दौरान इसका ध्यान रखा जाना जरूरी है. अधिकारियों ने कहा कि इन वेजेज का प्रभाव ढलानों की स्थिरता, रॉक मैकेनिक और भू-तकनीकी इंजीनियरिंग पर पड़ सकता है.  


'संवेदनशील हिमालय क्षेत्र में परियोजना शुरू करना गलत'
हिमालय क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वाले भूविज्ञानी डॉ नवीन जुयाल ने कहा, " इस रिपोर्ट के आधार पर अगर संवेदनशील हिमालय क्षेत्र में 4.5 किमी सड़क सुरंग परियोजना शुरू की गई, तो यह ठीक नहीं है. केवल तीन ड्रिलिंग से कोई चट्टानों के प्रकार को नहीं जान सकता."


'अच्छी गुणवत्ता वाली चट्टान नहीं'
उन्होंने कहा कि रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जिस क्षेत्र में सुरंग बनाई जा रही थी, वहां कोई बहुत अच्छी गुणवत्ता वाली चट्टान नहीं थी. केवल 20% चट्टान अच्छी गुणवत्ता की है, बाकी अच्छी और घटिया और बहुत घटिया है.  जुयाल ने स्पष्ट किया कि वह यह नहीं कह रहे कि इस क्षेत्र में सुरंग नहीं बनाई जा सकती थी और उन्होंने बस सुरंग के निर्माण में इस्तेमाल की गई विधि पर सवाल उठाया.
 
सुरंग बनाने वाली जगह पर कमजोर चट्टानें
एक अन्य भूविज्ञानी वाई पी सुंदरियाल ने कहा, "रिपोर्ट के मुताबिक, जिस क्षेत्र में सुरंग बनाई गई है, वहां स्लेट, सिल्टस्टोन जैसी कमजोर चट्टाने हैं. निर्माण के दौरान उचित योजना और एक सहायता प्रणाली की आवश्यकता होती है. ऐसा लगता है कि सिल्क्यारा में इसे एजेंसी ने  नजरअंदाज कर दिया.


परियोजना के तहत बनना था बाहर जाने का रास्ता
मलबा डंपिंग परियोजना से संबंधित एक अन्य रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि परियोजना रिपोर्ट में बाहर निकलने के लिए एक रास्ता प्रस्तावित किया गया था, लेकिन बनाया नहीं गया. सरकारी दिशानिर्देशों के अनुसार, 1.5 किमी से अधिक लंबी सुरंगों के लिए एक निकास मार्ग होना चाहिए, जबकि सिल्कयारा सुरंग 4.5 किमी लंबी है.


13 नवंबर को ढह गई थी सुरंग
बता दें कि सिल्क्यारा में निर्माणाधीन सुरंग 13 नवंबर की सुबह ढह गई थी, जिसमें 41 मजदूर फंस गए थे. मजदूरों को बचाने के लिए ऑगुर मशीन का उपयोग किया गया, लेकिन अब तक कामयाबी नहीं मिल सकी. इतना ही नहीं टनल का ढहा हुआ हिस्सा पहले दिन 55 मीटर से बढ़कर 80 मीटर से अधिक हो गया है. 


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