Challenging The Electoral Bond : इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट मार्च के तीसरे हफ्ते में सुनवाई करेगा. याचिकाकर्ता ने राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए बनाई गई इलेक्टोरल बॉन्ड की व्यवस्था से भ्रष्टाचार की आशंका जताई है. हालांकि, सरकार ने दावा किया है कि इससे राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया में पारदर्शिता आई है.


क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड
2017 में केंद्र सरकार ने राजनीतिक चंदे की प्रक्रिया को साफ-सुथरा बनाने के नाम पर चुनावी बॉन्ड का कानून बनाया. इसके तहत स्टेट बैंक के चुनिंदा ब्रांच से हर तिमाही के शुरुआती 10 दिनों में बॉन्ड खरीदने और उससे राजनीतिक पार्टी को बतौर चंदा देने का प्रावधान है. कहा गया कि इससे कैश में मिलने वाले चंदे में कमी आएगी. बैंक के पास बॉन्ड खरीदने वाले ग्राहक की पूरी जानकारी होगी. इससे पारदर्शिता बढ़ेगी.


क्या है याचिका
एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म (ADR) और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) ने कहा है कि इस व्यवस्था में पारदर्शिता नहीं है. बैंक से बॉन्ड किसने खरीदे, उससे किस पार्टी को चंदा दिया, इसे गोपनीय रखे जाने का प्रावधान है. यहां तक कि चुनाव आयोग को भी ये जानकारी नहीं दी जाती. यानी सरकार से फायदा लेने वाली कोई कंपनी बॉन्ड के ज़रिए सत्ताधारी पार्टी को अगर चंदा दे तो किसी को पता ही नहीं चलेगा. इससे भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलेगा. इतना ही नहीं, विदेशी कंपनियों को भी बॉन्ड खरीदने की इजाज़त दी गई है. जबकि, पहले विदेशी कंपनी से चंदा लेने पर रोक थी.


ADR की तरफ से यह भी कहा गया है कि अलग-अलग ऑडिट रिपोर्ट और इनकम टैक्स विभाग को पार्टियों की तरफ से दी गई जानकारी से ये पता चला है कि चुनावी बॉन्ड के ज़रिए लगभग 95 फीसदी चंदा बीजेपी को मिला है. साफ है कि ये दरअसल सत्ताधारी पार्टी को फायदा पहुंचाने का जरिया बन कर रह गया है. लोकसभा चुनाव के दौरान ऐसा और भी ज़्यादा होने की आशंका है. इसलिए, कोर्ट तुरंत बॉन्ड के ज़रिए चंदे पर रोक लगाए.


चुनाव आयोग का जवाब
चुनाव आयोग भी कह चुका है कि इलेक्टोरल बॉन्ड व्यवस्था में पारदर्शिता नहीं है. इससे काले धन को बढ़ावा मिलने की आशंका है. विदेशी कंपनियों से भी चंदा लेने की छूट से सरकारी नीतियों पर विदेशी कंपनियों के प्रभाव का भी अंदेशा बना रहेगा.


पार्टियों में RTI लागू करने पर भी सुनवा
राजनीतिक पार्टियों को सूचना के अधिकार कानून यानी RTI के दायरे में लाने की मांग पर भी सुप्रीम कोर्ट (Supreme  Court) सुनवाई करेगा. कोर्ट ने कहा है कि यह सुनवाई अप्रैल के पहले हफ्ते में की जाएगी. चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली बेंच ने सरकार को 2 हफ्ते में इस पर जवाब दाखिल करने को कहा है.


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