नई दिल्ली: देश की अखंडता को एक सूत्र में बांधने वाले राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम, राष्ट्रीय गान 'जन गन मन' और देश की संप्रभुता और गौरव का प्रतीक 'तिरंगा' को लेकर एक बार फिर सियासी बवाल मचा हुआ है. जहां एक ओर गुजरात सरकार ने अटेंडेंस के दौरान जय हिंद, भारत माता की जय बोलना अनिवार्य कर दिया है तो वहीं मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार की ओर से हर महीने के पहले कार्य दिवस को राज्य मंत्रालय के समक्ष वंदे मातरम गान की अनिवार्यता पर रोक के बाद जारी रखने का निर्णय लिया है. इन दो फैसलों के बाद एक बार फिर राष्ट्रवाद का मुद्दा सियासी रंग ले चुका है. ऐसे में आइए जानते हैं वंदे मातरम का इतिहास क्या है. क्या भारत माता की जय न बोलने पर कानूनी कार्रवाई हो सकती है? साथ ही जानते हैं कि राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा को लेकर क्या है  'फ्लैग कोड ऑफ इंडिया' में नियम.


बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने लिखा बंदे मातरम


वंदे मातरम को साल 1875 में बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने बंगाली भाषा में लिखा था. जिसे उन्होंने साल 1881 में अपनी नॉवल आनंदमठ में भी जगह दी. पहली बार इसे राजनीतिक संदर्भ  में रबींद्रनाथ टैगौर ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1896 के सत्र में गाया था. बन्दे मातरम बंगाली का शब्द है. बंगाली लिपी में व नही होता ब होता है. संस्कृत में 'बन्दे मातरम्' का कोई शब्दार्थ नहीं है और 'वंदे मातरम्' कहने से 'माता की वन्दना करता हूं' ऐसा अर्थ  निकलता है, इसलिए देवनागरी लिपि में इसे वंदे मातरम् कहा गया.


क्यों हो रहा है बंदे मातरम पर सियासी भूचाल


गुजरात में स्कूली छात्र नए साल में अटेंडेंस के समय 'जय हिंद' या 'जय भारत' बोलेंगे. कल तक छात्र परंपरा के अनुसार 'यस सर' या 'प्रेजेंट सर' कहा करते थे. इस संबंध में प्राथमिक  शिक्षा निदेशालय और गुजरात माध्यमिक व उच्चतर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (GSHSEB) ने नोटिफिकेशन जारी किया. नोटिफिकेशन में कहा गया है कि कक्षा पहली से 12वीं तक के छात्रों  को अटेंडेंस के दौरान 'जय हिंद' या 'जय भारत' बोलना होगा. इससे बचपन से छात्रों में देशभक्ति पैदा होगा.


जहां गुजरात सरकार ने यह फैसला सुनाया तो वहीं मध्यप्रदेश की सरकार ने हर महीने के पहले कार्य दिवस को राज्य मंत्रालय के समक्ष वंदे मातरम गान की अनिवार्यता पर रोक लगा दी, लेकिन विवाद बढ़ने के बाद इसे जारी रखने का निर्णय लिया. इस मामले में पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर कहा है कि अगर कांग्रेस को राष्ट्र गीत के शब्द नहीं आते हैं या फिर राष्ट्र गीत के गायन में शर्म आती है, तो मुझे बता दें! हर महीने की पहली तारीख़ को वल्लभ भवन के प्रांगण में जनता के साथ वंदे मातरम् मैं गाऊंगा.


बता दें कि भारत में एक पक्ष एक ईश्वरवाद में विश्वास रखता है और इसलिए वह इसे मामले को घर्म से जोड़ कर देखता है.


भारत माता की जय को लेकर क्या सोचते थे आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री नेहरू


पत्रकार पियूष बवेले की किताब जिसका 'नेहरू मिथक और सत्य' उन्होंने नेहरू के भारत माता की जय पर क्या विचार थे इसको  लिखा है. किताब में भारत माता की जय को लेकर नेहरू ने क्या कहा था यह बताया गया है. नेहरू ने कहा था,'' जब ‘हम भारतमाता की जय’ बोलते हैं, तो हम भारत के 30 करोड़ लोगों की जय  बोलते हैं. उन 30 करोड़ लोगों को आजाद कराने की जय बोलते हैं. इस तरह हम सब भारत माता का एक-एक टुकड़ा हैं और हमसे मिलकर ही भारत माता बनती है. तो जब भी हम भारत माता की जय बोलते हैं तो असल में अपनी ही जय बोल रहे होते हैं. और जिस दिन हमारी गरीबी दूर हो जाएगी, हमारे तन पर कपड़ा होगा, हमारे बच्चों को अच्छी से अच्छी तालीम मिलेगी,हम सब
खुशहाल होंगे, उस दिन भारत माता की सच्ची जय होगी.’’


क्या कहता है कानून


जब दुनिया भर के देश ग्लोबल विलेज की परिकल्पना की ओर बढ़ रहे हैं तब हमारे देश में राष्ट्रवाद पर बहस छिड़ा हुआ है. पहले जेएनयू विवाद और उसके बाद 'भारत माता की जय' पर जमकर विवाद हुआ और फिर लोगों के मर्यादा और इसके प्रति आस्था पर बहस होने लगी है. ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या किसी पर कोई राष्ट्रवाद थोप सकता है. क्या राष्ट्रगान, राष्ट्रगीत गाने के लिए किसी को बाध्य किया जा सकता है. इसकी कानूनी वैधता क्या है.


संविधान के अनुच्छेद 51 a के अनुसार यह लोगों का मौलिक कर्तव्य है कि वह राष्ट्रगीत और राष्ट्रगान का प्रचार-प्रसार कर उसे बढ़ावा दे. लेकिन कानून में कहीं भी इसकी बाध्यता नहीं है. साफ है कि कानून के मुताबिक भारत माता की जय बोलना हमारे संस्कारों में आ सकता है लेकिन इस वाक्य को न बोलना किसी कानून का उलंघन नहीं है. यह सिर्फ देश के सम्मान से जुड़ा एक और नारा है लेकिन देश के सम्मान को दर्शाने के लिए ज़रूरी नहीं कि भारत माता की जय ही कहा जाए. इसके लिए भारत ज़िंदाबाद, जयहिन्द या इंग्लिश में लौंग लिव इंडिया भी कहा जा सकता है.


'तिरंगा' को लेकर  क्या है 'फ्लैग कोड ऑफ इंडिया' में नियम


तिरंगा भारत के राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है. सभी के मार्गदर्शन और हित के लिए भारतीय ध्वज संहिता-2002 में सभी नियमों, रिवाजों, औपचारिकताओं और निर्देशों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है. ध्वज संहिता-भारत के स्थान पर भारतीय ध्वज संहिता-2002 को 26 जनवरी 2002 से लागू किया गया है. भारतीय झंडे का अगर आप इसका अपमान करते हैं तो आपको सजा हो सकती है. आइए जानते हैं कुछ महत्वपूर्ण नियम. इन नियमों के उल्लंधन पर जेल भी हो सकती है.


1- तिरंगा हमेशा कॉटन, सिल्क या खादी का होना चाहिए.
2- किसी भी सूरत में क्षतिग्रस्त या फटे झंडे को फहराने की अनुमति नहीं है.
3- झंडे का इस्तेमाल किसी भी तरह से यूनीफॉर्म या अन्य सजावट के लिए नहीं किया जा सकता है.
4- झंडे पर कुछ भी लिखना गैर कानूनी है
5- किसी भी गाड़ी ये प्लेन या अन्य जगहों को ढकने के लिए तिरंगा का प्रयोग नहीं किया जा सकता.
6- किसी भी स्थिति में झंडा जमीन पर नहीं टच हो
7- केवल राष्ट्रीय शोक के अवसर पर यह झुका रहेगा.
8- सरकारी भवन पर तिरंगा रविवार और अन्य छुट्‍टियों के दिनों में भी सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाता है, विशेष अवसरों पर इसे रात को भी फहराया जा सकता है.