'मुलायम सरकार का 1993 में पूजा रोकने का आदेश था गलत', ज्ञानवापी पर इलाहाबाद कोर्ट की टिप्पणी
वाराणसी जिला कोर्ट ने 31 जनवरी को ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने में पूजा की अनुमति दी थी. इस फैसले को मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार (26 फरवरी) को वाराणसी के ज्ञानवापी मामले में बड़ा फैसला सुनाया. कोर्ट ने मस्जिद कमेटी की तरफ से दायर याचिका को खारिज करते हुए व्यास तहखाने में पूजा जारी रखने का आदेश सुनाया. इसे हिंदू पक्ष के लिए बड़ी राहत माना जा रहा है. इतना ही नहीं हाईकोर्ट ने 1993 में तत्कालीन मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में पूजा पर रोक लगाने के फैसले को अवैध बताया.
दरअसल, वाराणसी जिला कोर्ट ने 31 जनवरी को ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने में पूजा की अनुमति दी थी. इस फैसले को मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका को खारिज कर दिया. हाईकोर्ट ने व्यास जी के तहखाने का वाराणसी के जिला मजिस्ट्रेट को रिसीवर नियुक्त करने और तहखाने में पूजा की अनुमति देने के वाराणसी के जिला जज के फैसले को सही ठहराया. जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की बेंच ने कहा कि 1993 में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में पूजा अनुष्ठान बिना किसी लिखित आदेश के तत्कालीन प्रदेश सरकार द्वारा रोकने की कार्रवाई अवैध थी.
हाईकोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
दरअसल, व्यास परिवार लंबे वक्त से व्यास तहखाने में पूजा कर रहा था. लेकिन 1993 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने पूजा पर रोक लगा दी थी. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल ने अपने फैसले में कहा, 'साल 1993 से व्यास परिवार को धार्मिक पूजा और अनुष्ठान से रोकने का राज्य सरकार का कदम गलत था. तहखाने में श्रद्धालुओं की तरफ से हो रही पूजा को रोकना उनके हितों के खिलाफ होगा.' मुस्लिम पक्ष ने अब ज्ञानवापी पर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है.
हाईकोर्ट ने इस मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद 15 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया था. सोमवार को कोर्ट ने कहा, व्यास जी के तहखाने में पूजा-अर्चना जारी रहेगी. ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कमेटी ने वाराणसी जिला जज के दो फैसलों को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. ये फैसले जिला मजिस्ट्रेट को तहखाने का रिसीवर नियुक्त करने और तहखाने में पूजा की अनुमति देने वाले थे.दोनों अपील को कोर्ट ने खारिज कर दिया. जस्टिस अग्रवाल ने कहा, उस स्थान पर पूजा पहले ही शुरू हो चुकी है और यह जारी है, इसलिए इसे रोकने का कोई औचित्य नहीं है.