मुंबई: एल्गार परिषद-माओवादी संबंधों के मामले में गिरफ्तार कवि और कार्यकर्ता वरवर राव को चक्कर आने की शिकायत के बाद मंगलवार को यहां सरकारी जे जे अस्पताल में भर्ती कराया गया. अस्पताल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उनकी हालत स्थिर है. राव (80) पिछले करीब दो साल से नवी मुंबई की तलोजा जेल में बंद हैं.


जे जे अस्पताल के डीन डॉ. रणजीत मानकेश्वर के मुताबिक, राव को सोमवार की रात जेल से अस्पताल लाए जाने के बाद उन्हें न्यूरोलॉजी विभाग में भर्ती किया गया है. मानकेश्वर ने कहा कि अब उनकी हालत स्थिर है, लेकिन उनके सभी स्वास्थ्य मानकों की जांच में अभी समय लगेगा.


कार्यकर्ता और उनके परिवार के सदस्यों ने दावा किया है कि वह कुछ समय से अस्वस्थ हैं और उन्होंने जेल प्राधिकारियों से उन्हें तत्काल चिकित्सकीय सेवा मुहैया कराए जाने की मांग की थी.


NCP नेता और मंत्री जितेन्द्र अवहद ने भी मांग की थी कि राव को अस्पताल में भर्ती किया जाए. अतिरिक्त महानिदेशक (जेल) सुनील रामानंदन ने कहा, ‘‘उन्हें न्यूरोलॉजी संबंधी समस्याएं हैं, उनके स्वास्थ्य के बारे में चिकित्सकों से चर्चा करेंगे और वे ही अंतिम निर्णय करेंगे. यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि वह कब तलोजा जेल भेजे जाएंगे या किसी अन्य जेल में भेजे जाएंगे.’’ राव के परिजन ने दावा किया कि वह कुछ समय से बीमार हैं.


कार्यकर्ता के वकील आर सत्यनारायण अय्यर ने कहा, ‘‘राव को चक्कर आने के बाद सोमवार रात जे जे अस्पताल ले जाया गया. अस्पताल उनकी कुछ जांचें कर रहा है.’’ राव ने अस्थायी जमानत का अनुरोध करते हुए सोमवार को बंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था और इसके लिए उन्होंने अपने बिगड़ते स्वास्थ्य एवं वर्तमान कोविड-19 महामारी का हवाला दिया था.


कार्यकर्ता ने अदालत से यह भी अनुरोध किया था कि वह जेल प्राधिकारियों को उनका मेडिकल रिकार्ड पेश करने और उन्हें किसी अस्पताल में भर्ती कराए जाने का निर्देश दे.


राव ने अपने वकील आर सत्यनारायण अय्यर के माध्यम से उच्च न्यायालय में दो याचिकाएं दायर की थीं. एक में विशेष एनआईए अदालत द्वारा 26 जून को उनकी जमानत याचिका खारिज किये जाने को चुनौती दी गयी थी, जबकि दूसरी याचिका में नवी मुम्बई की तलोजा जेल के अधिकारियों को उनका मेडिकल रिकार्ड पेश करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया.


राव और नौ अन्य कार्यकर्ताओं को एल्गार परिषद-माओवादी संपर्क मामले में गिरफ्तार किया गया है. इस मामले की प्रारंभ में पुणे पुलिस ने जांच की थी लेकिन इस साल जनवरी में इसे राष्ट्रीय जांच एजेंसी को सौंप दिया.


यह मामला 31 दिसंबर, 2017 में पुणे के एल्गार परिषद सम्मेलन में कथित उत्तेजक भाषण देने से जुड़ा है. पुलिस के अनुसार इसी के बाद अगले दिन कोरेगांव भीमा युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई थी. पुलिस ने यह भी दावा किया था कि इस सम्मेलन का जिन लोगों ने आयोजन किया था, उनका कथित रूप से माओवादियों से संबंध था.