एंट्री के वक्त चौंक गए थे अटल-आडवाणी, अब साइड लाइन; 19 साल बाद वरुण गांधी के पास ऑप्शन क्या?
2009 में एक इंटरव्यू में वरुण गांधी ने कहा था कि बीजेपी के लोग चाहते हैं कि मैं चाची सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के खिलाफ सख्त टिप्पणी करूं, लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा. घर का मामला अलग है.
19 साल बाद जनवरी के ही इस सर्द मौसम में संजय गांधी के बेटे और सांसद वरुण गांधी को लेकर फिर से सियासी सरगर्मी तेज है. 2004 में बीजेपी का दामन थामने वाले वरुण के पार्टी छोड़ने और कांग्रेस में जाने की अटकलें लग रही है.
वरुण हाईकमान के खिलाफ लगातार मुखर रहने की वजह से पिछले 10 सालों से बीजेपी में हाशिए पर हैं. वरुण की राजनीतिक एंट्री ने सियासी दिग्गजों को भी हैरान कर दिया था.
लंदन से पढ़ाई करने वाले वरुण को पहली बार 1999 में मां मेनका गांधी के लिए चुनाव प्रचार करते देखा गया था.
24 साल की उम्र में राजनीति में एंट्री
वरुण गांधी साल 2004 में बीजेपी की सदस्यता लेकर राजनीति में आए. उस वक्त उनकी उम्र मात्र 24 साल थी. गांधी-नेहरु परिवार के होने के बावजूद वरुण बीजेपी में शामिल क्यों हुए, इस पर कई सवाल भी उठे.
वरिष्ठ पत्रकार भावना बिज से बातचीत में वरुण ने इंदिरा की विरासत का जिक्र किया था. वरुण ने कहा कि मेरे पिता संजय गांधी इंदिरा के प्रिय बेटे थे, लेकिन उनकी विरासत पहले चाचा और अब उनके बेटे को मिली है. इस स्थिति में मैं क्या करता?
(Source- PTI)
वरुण की राजनीति में एंट्री को लेकर वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी भी एक किस्सा का जिक्र करते हैं. त्रिवेदी के मुताबिक वरुण को बीजेपी में लाने का श्रेय प्रमोद महाजन को जाता है. 2004 के चुनाव में सोनिया गांधी की लोकप्रियता बढ़ रही थी.
ऐसे में प्रमोद महाजन ने गांधी परिवार की काट खोजने के लिए मेनका-वरुण को बीजेपी में शामिल कराया.
चौंक गए थे अटल-आडवाणी
महीना फरवरी, तारीख 15 और साल 2004. उस वक्त के राष्ट्रीय महासचिव प्रमोद महाजन ने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी को वरुण-मेनका के बीजेपी में शामिल होने की जानकारी दी. अटल-आडवाणी दोनों इस सूचना से चौक गए.
वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी ने एक इंटरव्यू में बताया कि महाजन ही अटल-आडवाणी को वरुण की एंट्री को लेकर मनाया. महाजन ने ही वरुण को राजनीति में आने और बीजेपी में शामिल होने को लेकर प्रेरित किया था.
महाजन का तर्क था कि सोनिया-राहुल को पब्लिक में जो भावनात्मक सपोर्ट मिल रहा है, वरुण-मेनका के आ जाने से यह नहीं मिलेगा. 16 फरवरी 2004 को तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष वैंकेया नायडू ने मेनका-वरुण को पार्टी की सदस्यता दिलाई.
जेपी से तुलना, इंदिरा की तारीफ पर जेटली ने डांटा
साल 2009. भड़काऊ बयान देने की वजह से मायावती सरकार ने वरुण पर रासुका लगा दिया. इस वजह से उन्हें जेल जाना पड़ा. वरुण की लोकप्रियता को देखते हुए तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह उनसे जेल में मिलने पहुंचे थे.
(Source- Varun Gandhi Facebook)
उस वक्त बीजेपी के कद्दावर नेता लालकृष्ण आडवाणी ने वरुण की तुलना जय प्रकाश नारायण से की थी. आडवाणी ने कहा था कि जेपी और राजनारायण को भी सरकार इसी तरह जेल में डाल दिया था.
वरिष्ठ पत्रकार सुजाता आनंदकृष्णन एक किस्से का जिक्र हिंदुस्तान टाइम्स में लिखे एक लेख में करती हैं. सुजाता के मुताबिक महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार के दौरान वरुण इंदिरा गांधी के कामों का जिक्र करते हैं. इस वजह से लालकृष्ण आडवाणी और अरुण जेटली से उन्हें डांट भी सुननी पड़ती है.
सांसद, सीएम दावेदार और फिर साइड लाइन...
2009 में 29 साल की उम्र में वरुण गांधी पहली बार पीलीभीत सीट से सांसद बने. यह सीट उनकी मां मेनका गांधी की थी. वरुण का राजनीतिक लोकप्रियता चरम पर था और हिंदू के फायरब्रांड युवा नेता बन गए थे. बीजेपी ने उन्हें कई राज्यों में प्रचार करने की जिम्मेदारी दी.
2013 में पार्टी ने पहली बार वरुण गांधी को राष्ट्रीय महासचिव बनाया. उन्हें 42 लोकसभा सीटों वाली पश्चिम बंगाल का प्रभार भी सौंपा गया. वरुण के लगातार हो रहे प्रमोशन के बाद माना जा रहा था कि वे यूपी बीजेपी में सीएम के सबसे बड़े दावेदार हैं, लेकिन पिछले 9 सालों में स्थिति बिल्कुल उलट गई है.
वरुण गांधी बीजेपी में पूरी तरह साइड लाइन हो चुके हैं. पार्टी ने पिछले साल उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य पद से भी हटा दिया है. 2024 के चुनाव में उन्हें बीजेपी से टिकट नहीं मिलने की चर्चा भी जोरों पर है.
3 गलती और बीजेपी में हाशिए पर चले गए वरुण...
बीजेपी हाईकमान के आंखों के तारा रहे वरुण गांधी 10 साल में ही हाशिए पर कैसे चले गए? इसकी 3 बड़ी वजह मानी जाती है.
1. लालकृष्ण आडवाणी के लिए रैली का आयोजन- 2013 में नरेंद्र मोदी दिल्ली की सियासत में आने की तैयारी में थे. इसी बीच आडवाणी के लिए वरुण ने यूपी में रैली का आयोजन किया. इस रैली को आडवाणी के शक्ति प्रदर्शन के रूप में देखा गया. इसके बाद से ही वरुण नरेंद्र मोदी के गुडबुक से बाहर हो गए.
गोवा अधिवेशन के बाद लालकृष्ण आडवाणी का दौर बीजेपी में खत्म हो गया. हालांकि, वरुण को सुल्तानपुर से और उनकी मां को पीलीभीत से सांसदी का टिकट जरूर मिला. सरकार बनने के बाद मेनका गांधी को मंत्री भी बनाया गया, लेकिन वरुण साइड लाइन कर दिए गए.
2. इलाहाबाद अधिवेशन में शक्ति प्रदर्शन से हाईकमान खफा- जून 2016 में बीजेपी ने यूपी के इलाहाबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी का अधिवेशन रखा. इस कार्यकारिणी में वरुण गांधी ने समर्थकों के जरिए शक्ति प्रदर्शन किया. पूरे शहर में वरुण के मुख्यमंत्री के दावेदारी वाले पोस्टर लगाए गए.
वरुण के इस पोस्टर से बीजेपी हाईकमान इतने नाराज हो गए कि 2017 के यूपी चुनाव में उन्हें प्रचार के लिए भी नहीं बुलाया.
3. किसान आंदोलन पर पीएम मोदी के खिलाफ मोर्चाबंदी- मोदी सरकार के 3 कृषि कानून के खिलाफ जब पूरे देश में आंदोलन हुआ तो वरुण पार्टी लाइन से आगे बढ़ गए. उन्होंने सोशल मीडिया और अखबारों में लेख के जरिए पीएम मोदी पर जमकर निशाना साधा.
हालांकि, आंदोलन को देखते हुए बाद में मोदी सरकार ने कृषि कानून को वापस ले लिया.
वरुण के पास अब विकल्प क्या?
बीजेपी के लिए उपयोगी नहीं- केंद्र और राज्य में सरकार होने के बावजूद वरुण गांधी बीजेपी में हाशिए पर हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह पार्टी में उनकी उपयोगिता का नहीं होना है.
मोदी के चेहरे और शाह की सांगठनिक कुशलता की वजह से बीजेपी लगातार जीत रही है. ऐसे में आने वाले समय में भी वरुण को शायद ही पार्टी में बड़ी जिम्मेदारी मिले.
2009 में एक इंटरव्यू में वरुण ने कहा था कि बीजेपी के लोग चाहते हैं कि मैं चाची सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के खिलाफ सख्त टिप्पणी करूं, लेकिन मैं ऐसा नहीं करूंगा. यानी राहुल के खिलाफ वरुण को हथियार के रूप में बीजेपी इस्तेमाल नहीं कर सकती है.
कांग्रेस ऑप्शन, लेकिन यूपी में राह आसान नहीं- 2004 में बीजेपी की करारी हार के बाद वरुण से कांग्रेस में जाने को लेकर पूछा गया था. उस वक्त उन्होंने कहा था कि अगर में कांग्रेस में गया तो सत्ता का लोभी करार दिया जाऊंगा.
19 सालों में राजनीतिक पूरी तरह बदल चुकी है. कांग्रेस केंद्र की सियासत में मुख्य विपक्षी पार्टी भी नहीं है. वरुण के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर कई बार मीडिया में खबरें छप चुका है.
(Source- Getty)
पिछले दिनों राहुल गांधी से इस पर सवाल भी पूछा गया था. हालांकि, उन्होंने मल्लिकार्जुन खरगे पर फैसला छोड़ दिया था. वरुण के कांग्रेस में शामिल होने का ऑप्शन जरूर है, लेकिन यूपी की सियासत में इसके लिए राह आसान नहीं है. कांग्रेस यूपी की परंपरागत अमेठी सीट भी हार चुकी है.
ऐसे में वरुण कांग्रेस में आ भी जाते हैं, तो उनका सियासी भविष्य क्या होगा, इस पर सस्पेंस बना रहेगा. वरुण के क्षेत्रीय पार्टी में शामिल होने की उम्मीद कम है, इसकी बड़ी वजह उनका राष्ट्रीय चेहरा होना है.