Vashistha Narayan Singh Death Anniversary: बिहार का वह गणितज्ञ, जिसने दी थी आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती
14 नवंबर को गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह की पुण्यतिथि है. बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गांव में जन्मे सिंह ने नोबेल विजेता अल्बर्ट आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती दी थी.
Vashishtha Narayan Singh Death Anniversary: महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह (Vashishtha Narayan Singh) का जन्म बिहार के भोजपुर जिले के बसंतपुर गांव में 2 अप्रैल, 1942 को लाल बहादुर सिंह (पुलिस कांस्टेबल) और लाहासो देवी के घर में हुआ था. वह बेहद ही प्रतिभाशाली छात्र थे. उनकी योग्यता का डंका देश में नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बजा.
उन्होंने दुनिया के सबसे महान भौतिकविद नोबेल विजेता अल्बर्ट आइंस्टीन के सिद्धांत को चुनौती देकर दुनिया भर में अनूठी और अलग पहचान हासिल की थी, लेकिन युवावस्था में ही वशिष्ठ नारायण सिंह मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) से पीड़ित हो गए थे. उनका अधिकांश जीवन इस बीमारी के साथ बीता था. 14 नवंबर 2019 को पटना में सिंह का निधन हो गया. उस समय उनकी उम्र 77 साल थी. मंगलवार (14 नवंबर) को उनकी पुण्यतिथि है.
उन्होंने 1961 में बिहार के प्रतिष्ठित नेतरहाट स्कूल से हायर सेकेंडरी की पढ़ाई की थी. वह उस साल पूरे स्टेट में फर्स्ट पोजिशन के साथ पास हुए थे. इसके बाद उन्होंने पटना साइंस कॉलेज में गणित ऑनर्स के साथ बीएससी में दाखिला लिया. इसी कॉलेज में वशिष्ठ की प्रतिभा उनके सहपाठियों और शिक्षकों ने देखी.
पटना विश्वविद्यालय ने किया था परीक्षा नियमों में बदलाव
दिलचस्प बात यह है कि उनकी प्रतिभा के बारे में जब कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जॉन कैली को पता चली तो वह सिंह को 1965 में अपने साथ अमेरिका ले गए. उन्होंने (जॉन कैली) ने तत्कालीन पटना विश्वविद्यालय के कुलपति जॉर्ज जैकब से मुलाकात की और उनसे अनुरोध किया कि वह लड़के को फर्स्ट ईयर पास करने से पहले ही बीएससी अंतिम वर्ष की ऑनर्स परीक्षा में बैठने दें.
इस विशेष प्रतिभा के धनी छात्र को अंतिम वर्ष की परीक्षा में शामिल कराने के लिए यूनिवर्सिटी को अपने परीक्षा नियमों में भी संशोधन करना पड़ा था और वशिष्ठ ने इस परीक्षा में भी टॉप किया.
साल 1969 में उन्होंने कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से मैथ्स में पीएचडी की और वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर भी बने. उनकी ओर से 'चक्रीय सदिश समष्टि सिद्धान्त' (Cyclic Vector Space Theory) पर रिसर्च की गई थी, जिसने भारत और विश्व में उनको प्रसिद्ध कर दिया. उन्होंने नासा में भी काम किया, लेकिन 1971 में वu स्वेदश लौट आए.
नासा से जुड़े रहने के समय का यह किस्सा बेहद चर्चित
उनके नासा से जुड़ रहने का एक किस्सा बड़ा चर्चित है. जब वह नासा में काम कर रहे थे तब अपोलो की लॉन्चिंग के समय 31 कंप्यूटर एक बार कुछ समय के लिए बंद हो गए थे. उस वक्त डॉ. वशिष्ठ भी उसी टीम का हिस्सा थे. कंप्यूटर बंद होने के बाद भी उन्होंने अपना कैलकुलेशन जारी रखा और जब कंप्यूटर ठीक हुआ तो उनका और कंप्यूटर का कैलकुलेशन एक था.
अमेरिका से भारत लौटने पर लाए थे किताबों के 10 बक्से
कहा जाता है कि पटना साइंस कॉलेज में एक छात्र के रूप में वह अपने गणित शिक्षक को कुछ गलत पढ़ाने पर टोकते थे. बताया जाता है कि जब वह अमेरिका से जब वापस भारत लौटे थे तो अपने साथ किताबों के 10 बक्से लाए थे. वशिष्ठ नारायण सिंह ने आईआईटी कानपुर, आईआईटी बॉम्बे और भारतीय सांख्यकीय संस्थान (आईएसआई) कोलकाता में भी काम किया.
साल 1973 में उनका विवाह वन्दना रानी सिंह से हुआ. कहा जाता है पढ़ाई के चक्कर में उनकी बारात भी लेट हो गई थी. शादी के बाद धीरे-धीरे उनका व्यवहार भी असामान्य होने लगा और वह मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से पीड़ित हो गए. वह छोटी-छोटी बातों पर क्रोधित हो जाते, दिनभर कमरा बंद करके पढ़ते रहते और रातभर जागते रहे थे.
उनकी इस तरह की असामान्य दिनचर्या और व्यवहार की वजह से उनका पत्नी के साथ जल्द ही तलाक हो गया. शादी के अगले साल उनको 1974 में पहली बार हार्ट अटैक आया था. इसके बाद उनकी हालत अच्छी नहीं रही. 1987 में वह अपने माता-पिता के साथ बसंतपुर गांव में गुजर बसर करने लग गए थे. तत्कालीन बिहार सरकार और केंद्र सरकार की ओर से भी उनको कोई जरूरी सहायता आदि नहीं मिली.
बेंगलुरु-दिल्ली में चला मानसिक बीमारी का ईलाज
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 1989 में उनका मानसिक बीमारी का इलाज भी करवाया गया. अगस्त 1989 को रांची में इलाज कराकर उनके भाई उनको बेंगलुरु ले जा रहे थे कि रास्ते में ही वो खंडवा स्टेशन पर उतर गए और भीड़ में कहीं खो गए. बताया जाता है कि करीब 5 साल तक गुमनामी में रहे महान गणितज्ञ को उनके गांव के लोगों ने छपरा में देखा. इसके बाद राज्य सरकार ने उनकी सुध ली.
बेंगलुरु के राष्ट्रीय मानसिक जांच और तंत्रिका विज्ञान संस्थान में मार्च 1993 से जून 1997 तक उनका इलाज चला था. बाद में वह गांव में ही रहे. इसके बाद उनको नई दिल्ली स्थित व्यवहार और संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) में भर्ती कराया गया था, जहां एक साल से ज्यादा वक्त तक उनका इलाज चला.
स्वास्थ्य सुधार के बाद यहां से छुट्टी दे दी गई थी. उनका आरा के एक अस्पताल में मोतियाबिंद का ऑपरेशन भी हुआ था. महान गणितज्ञ वशिष्ठ नारायण सिंह अपनी मृत्यु से पहले तक बसंतपुर गांव में ही रहे.
यह भी पढ़ें: Bihar Politics: नीतीश की पार्टी ने LJP और BJP को दिया झटका, वशिष्ठ नारायण ने इन नेताओं को JDU में कराया शामिल