'CBI को 'पिंजरे का तोता' कहने पर उपराष्ट्रपति ने दी नसीहत...,' बोले-टिप्पणियां संस्थानों को कर सकती हैं निराश
Jagdeep Dhankar: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा कि इन पवित्र मंचों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को राजनीतिक भड़काऊ बहस का ट्रिगर बिंदु न बनने दें.
Jagdeep Dhankar Statement: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की पीठ के एक जज ने जांच एजेंसी सीबीआई पर पिंजरे में बंद तोता वाली टिप्पणी की. जिस पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी बयान दिया है. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा है कि चुनाव आयोग और जांच एजेंसियों सहित संस्थाएं कठिन परिस्थितियों में अपना कर्तव्य निभाती हैं. ऐसे में एक नकारात्मक टिप्पणी उन्हें ‘‘हतोत्साहित’’ कर सकती है.
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार (15 सितंबर) को मुंबई में एक कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट के एक जज द्वारा की गई टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. दरअसल, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक जज ने कहा था कि सीबीआई को पिंजरे में बंद तोता होने की धारणा को दूर करना चाहिए.
देश के संस्थानों के बारे में सचेत रहने की जरूरत- उपराष्ट्रपति
देश के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा,' देश के संस्थानों के बारे में सचेत रहने की जरूरत है. क्योंकि वह मजबूती से उचित जांच और संतुलन के साथ कानून के तहत काम कर रहे हैं. धनखड़ ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि राज्य के सभी अंगों का एक ही उद्देश्य है कि आम आदमी को सभी अधिकार मिलें और भारत फले-फूले तथा समृद्ध हो.
संस्थानों को मिलकर एकजुटता से काम करने की जरूरत
उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘उन्हें लोकतांत्रिक मूल्यों और आगे के संवैधानिक आदर्शों को पोषित एवं पुष्पित करने के लिए मिलकर एकजुटता से काम करने की जरूरत है. इन पवित्र मंचों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को राजनीतिक भड़काऊ बहस का ट्रिगर बिंदु न बनने दें. क्योंकि यह चुनौतीपूर्ण एवं कठिन परिस्थितियों में भी देश की अच्छी सेवा करने वाले संस्थानों के लिए हानिकारक है.
संस्थाएं कठिन परिस्थितियों में निभाती हैं अपना कर्तव्य
उन्होंने संस्थाओं का जिक्र करते हुए चुनाव आयोग और जांच एजेंसियों का जिक्र किया. उनका विचार था कि संस्थाएं कठिन परिस्थितियों में अपना कर्तव्य निभाती हैं. ऐसे में उन पर कोई भी नकारात्मक टिप्पणियां उन्हें ‘‘हतोत्साहित’’ और निराश कर सकती हैं. धनखड़ ने कहा, ‘‘यह एक राजनीतिक बहस को जन्म दे सकता है और एक विमर्श को गढ़ सकता है. हमें अपने संस्थानों के बारे में बेहद सचेत रहना होगा.वे मजबूत हैं, वे कानून के शासन के तहत स्वतंत्र रूप से काम कर रहे हैं और वहां उचित नियंत्रण एवं संतुलन है.
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