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'मिलिट्री-डिप्लोमेसी' के तहत इलाज के लिए भारत पहुंचे युद्ध-ग्रस्त यमन में घायल लोग
युद्ध का दर्द जानने के लिए एबीपी न्यूज ने इन सभी घायल लोगों से खास बातचीत जो 'पोस्ट-वॉर साईक्लोजिकल डिसओर्डर' से भी ग्रस्त हैं.
नई दिल्ली: दिल्ली से सटे मानेसर के एक अस्पताल में इन दिनों कई हजार मील दूर अरब देश, यमन से 53 घायल लोग इलाज के लिए पहुंचे हैं. ये सभी यमन में चल रहे युद्ध में घायल हुए हैं. इनमें सैनिक तो है हीं वे भोले भाले नागरिक भी हैं जो पिछले तीन साल से चल रहे युद्ध की चपेट में आ गए हैं. कुछ बच्चे और महिलाएं भी हैं. संयुक्त अरब अमीरात यानि यूएई की मदद से ये घायल लोग मिलिट्री-डिप्लोमेसी या फिर यूं कहें कि मेडिकल-डिप्लोमेसी के तहत भारत में इलाज के लिए पहुचे हैं. युद्ध का दर्द जानने के लिए एबीपी न्यूज ने इन सभी घायल लोगों से खास बातचीत जो 'पोस्ट-वॉर साईक्लोजिकल डिसओर्डर' से भी ग्रस्त हैं.
यमन के घायल नागरिकों में शामिल है छह साल का हसन
छह साल का हसन यमन के इन घायल नागरिकों में शामिल है. एक आंख से उसे कुछ नहीं दिखता है. उसकी आंख की रोशनी एक बम धमाके में चली गई थी. वो बम धमाका जो उसके घर यमन में हुआ था. यमन के अदन बंदरगाह (एडेन पोर्ट) का रहने वाला हसन उस मंजर को कभी नहीं भूल पाता जब वो बम धमाके का शिकार हुआ था. लेकिन भारत आकर उसे उसकी आंख की रोशनी मिलने जा रही है. जल्द ही दिल्ली के करीब मानसेर के एक अस्पताल में उसकी आंख का ऑपरेशन होने जा रहा है. यही वजह है कि चाहे उसके पिता हो या फिर अस्पताल की नर्स और दूसरा स्टॉफ उसे खुश रखना चाहते हैं. उसे खुश देखने के लिए उसके दोनों हाथों में उसके देश का झंडा दे देते हैं. जिसे अपनो हाथों में लेकर वो बेहद खुश नजर आता है. क्योंकि इन घायलों में अधिकतर ऐसे हैं जो गोलियों और बम-धमाकों की चोटों के साथ-साथ मानसिक तौर से भी पीड़ित हैं.
हसन और दूसरे घा़यल लोगों का इलाज करने वाले डॉक्टर गुरदीप के मुताबिक, ये सभी पोस्ट-वॉर साईक्लोजिकल डिसओर्डर से ग्रस्त हैं. यही वजह है कि इन सभी घायलों की ऊपरी घाव भरने के साथ साथ इन सभी की साईकिलोजिक्ल काउंसलिंग भी की जा रही है. क्योंकि ये सभी लोग सुबह उठाने पर चौंककर उठ जाते हैं, थोड़ी सी भी तेज आवाज से डर जाते हैं.
तीन सालों से यमन में बने हुए हैं युद्ध के हालात
आपको बता दें कि पिछले तीन सालों से यमन में युद्ध के हालात बने हुए हैं. जिसके चलते बड़ी संख्या में लोगों की जान चली गई है. सैकड़ों लोग घायल हो गए हैं. उनके बेहतर इलाज के लिए संयुक्त अरब अमीरात यानि यूएई जैसे देश उन्हें मित्र देश, भारत भेज रहे हैं ताकि उनका बेहतर इलाज किया जा सके. हसन की तरह ये हैं अराफत, जो युद्ध में अपनी एक आंख में चोट खा चुका है. लेकिन आंख ये भी ज्यादा बड़ा दर्द ये है कि ये युद्ध में ये अपनो पिता को खो चुका है. लेकिन इतना बड़ा दर्द ये नहीं जानता है. अराफत के अंकल उसकी आंख के इलाज के लिए मानेसर के वीपीएस हॉस्पिटल लेकर आए हैं. वो भी हसन सहित उन 53 लोगों में शामिल है जो इलाज के लिए यहां पहुंचे हैं. इन सभी को यूएई सरकार की मदद से यहां लाया गया है.
2015 से यमन में छिड़ा हुआ है युद्ध
दरअसल साल 2015 से यमन में युद्ध छिड़ा हुआ है. शुरूआत में ये एक गृह-युद्ध था जिसमें अल-हुथी नाम के विद्रोही संगठन ने सरकार का तख्ता पलट दिया था और राजधानी साना पर कब्जा कर लिया था. लेकिन संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब ने यमन की सरकार का साथ दिया और अल-हुथी के खिलाफ जंग छेड़ दी. युद्ध और अधिक भीषण हो गया जब ईरान ने हुथी संगठन का समर्थन करना शुरू कर दिया. खुद भारत ने वहां फंसे अपने नागरिकों के लिए वर्ष 2015 में एक बड़ा मिलिट्री ऑपरेशन लांच किया था. विदेश राज्यमंत्री और पूर्व थलसेनाध्यक्ष जनरल वी के सिंह को इस ऑपरेशन राहत की कमान सौंपी गई थी. ऑपरेशन राहत के तहत भारतीय नौसेना और वायुसेना ने वहां से साढ़े चार हजार सैनिकों को सुरक्षित बाहर निकाला था.
यमन के 53 लोगों में 8 सैनिक भी शामिल
यमन के जिन 53 लोगों का इलाज मानेसर के जिस सुपर-स्पेशिलिटी अस्पताल में चल रहा है उसमें 08 सैनिक भी हैं. इन सभी को हुथी विद्रोहियों के खिलाफ लड़ते हुए गोलियां लगी हैं. किसी के सिर में गोली लगी है तो किसी के रीढ़ की हड्डी में. शरीर के निचले हिस्से में गोली लगने के कारण कई सैनिकों का तो शरीर सुन्न पड़ा है. लेकिन भारत में आने के बाद डॉक्टर उनका हर तरीका का इलाज और सर्जरी कर रहे हैं. जरूरत पड़ने पर फिजयोथेरेपी भी दी जा रही है. युद्ध में घायल होने के बावजूद इन सैनिकों का जोशो-खरोश कतई भी कम नहीं हुआ है. वे भारत में अपना इलाज पूरा होने के बाद एक बार फिर अपने देश के लिए लड़ना चाहते हैं.
यूएई से काफी अच्छ हुए हैं भारत के संबंध
पिछले कुछ समय में जब से भारत के संबंध यूएई से काफी अच्छ हुए हैं तभी से यमन में युद्ध में घायल होने वाली लोगों को बेहतर इलाज के लिए मानसेर में लाया जा रहा है. जानकारी के मुताबिक, पिछले एक साल में यमन से करीब 200 लोगों का इलाज वीपीएस रॉकलैंड अस्पताल में हो चुका है. क्योंकि भारत में विदेशी मेहमानों का सिर्फ इलाज ही नहीं किया जाता बल्कि उन्हें ऐसी देखभाल की जाती है कि वे अपने देश लौटकर अपनी उस जिंदगी को जिएं जिससे वो प्यार करते हैं. यूएई सरकार के प्रवक्ता, जासेर सालेर के मुताबिक, भारत में इलाज पाकर ये सभी यमन के नागरिक बेहद खुश हैं.
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