Vijay Diwas: 1971 के युद्ध में भी इजरायल ने की थी भारत की सबसे बड़ी मदद, जानें इंदिरा गांधी के समय के गोपनीय दस्तावेजों में क्या है दर्ज
Vijay Diwas 1971 War Story: 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध में इजरायल ने हथियार भेजे थे. तब इंदिरा गांधी ने इस प्रस्ताव को तत्काल स्वीकार कर लिया था. हालांकि इजरायल ने जो चाहा वह हो नहीं पाया था.
1971 War Story: आज 16 दिसंबर है. भारत के इतिहास में शौर्य दिवस के रूप में दर्ज वो तारीख जो पाकिस्तान को सबसे अधिक खटकती है. आज ही के दिन साल 1971 में पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए थे और दक्षिण एशिया में एक नए देश बांग्लादेश का स्वतंत्र अस्तित्व सामने आया था.
इस युद्ध में भारतीय सेना के पराक्रम की कहानियां तो आपने बहुत सुनी होगी. सिर्फ 13 दिनों की लड़ाई में पाकिस्तान के 90 हजार सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिए थे. हालांकि उस समय भी भारत को अपने सबसे विश्वस्त मित्र राष्ट्र इजरायल से मदद मिली थी.
इजरायल ने खुद भेजा मदद का प्रस्ताव
तब भी एक लड़ाई हुई थी और आज भी एक लड़ाई मिडल ईस्ट में चल रही है. इजरायल में घुसकर फिलिस्तीन के चरमपंथी संगठन हमास के हमले के बाद से इजरायली सैन्य बल (आईडीएफ) लगातार गाजा पट्टी में जवाबी कार्रवाई कर रहा है और भारत ने आतंकवाद के खिलाफ उसकी कार्रवाई का समर्थन किया है.
दोनों देशों के बीच यह रिश्ता नया नहीं बल्कि सदियों पुराना है. जब-जब युद्ध हुआ और भारत को मदद की जरूरत पड़ी, तब-तब इजरायल हमेशा मदद करने वालों की सूची में आगे खड़ा रहा. बहुत कम लोगों को पता होगा कि 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में भी इजरायल ने भारत की मदद की थी. इसकी पेशकश भी इजरायल ने ही की थी. चलिए हम आपको इसकी दिलचस्प कहानी बताते हैं.
इंदिरा गांधी के सलाहकार के हवाले से बड़ा दावा
श्रीनाथ राघवन की इसी साल आई किताब, '1971' में भारत-पाक के 1971 के युद्ध के बारे में कई बड़े दावे किए गए हैं. राघवन ने नई दिल्ली में नेहरू मेमोरियल संग्रहालय और पुस्तकालय में रखे गए पीएन हक्सर के दस्तावेजों के आधार पर इस युद्ध के छुपे पहलुओं का खुलासा किया है. पीएन हक्सर तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के सलाहकार थे. उनके दस्तावेजों पर राघवन ने शोध किया है जिसमें सामने आया कि इजरायल से उस वक्त भारत को मदद मिली थी.
इजरायल ने भेजे अत्याधुनिक हथियार
राघवन की किताब में दावा है कि फ्रांस में भारत के राजदूत डीएन चटर्जी ने 6 जुलाई, 1971 को विदेश मंत्रालय को एक नोट के साथ इजरायली हथियार के प्रस्ताव के बारे में बताया. इंदिरा गांधी के सामने ये प्रस्ताव रखा गया तो उन्होंने तुरंत इसे स्वीकार कर लिया. इसके बाद खुफिया एजेंसी रॉ के जरिए इजरायल के माध्यम से हथियार प्राप्त करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. दस्तावेज कहते हैं कि इजरायल उस समय हथियारों की कमी से जूझ रहा था लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री गोल्डा मेयर ने ईरान को दिए जाने वाले हथियारों को भारत को देने का फैसला लिया.
इजरायल के प्रधानमंत्री ने भेजा था हिब्रू में नोट
किताब के मुताबिक इन दस्तावेजों में ये भी कहा गया है कि इजरायली पीएम ने सीक्रेट ट्रांसफर को संभालने वाली फर्म के निदेशक श्लोमो जबुलडोविक्ज के माध्यम से हिब्रू में इंदिरा गांधी को एक नोट भेजा. इसमें हथियारों के बदले में राजनयिक संबंधों का अनुरोध किया गया था, क्योंकि उस समय भारत के इजरायल के साथ राजनयिक संबंध नहीं थे.
हालांकि उस समय दोनों देशों में राजनयिक संबंध नहीं स्थापित हो सके. दोनों देशों के बीच 1992 में राजनयिक संबंध स्थापित हो सके जब नरसिम्हा राव भारतीय प्रधानमंत्री थे. भारत ने 1948 में इजरायल के निर्माण के खिलाफ मतदान किया था. भारत ने इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष में भी लगातार फिलिस्तिनियों का समर्थन किया था.
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