Jagan Mohan Reddy On Vijaysai Reddy: आंध्र प्रदेश की राजनीति में एक समय ऐसा था जब YSR कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री वाईएस जगन मोहन रेड्डी और उनके करीबी सहयोगी विजयसाई रेड्डी एक-दूसरे के अभिन्न साथी माने जाते थे. दोनों ने कठिन दौर में एक-दूसरे का साथ निभाया था लेकिन समय का चक्र ऐसा घूमा कि जिन विजयसाई रेड्डी ने YSR कांग्रेस को मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाई थी, वही अब पार्टी छोड़कर न केवल किनारे हो गए, बल्कि राजनीति से भी संन्यास ले लिया.
मीडिया के सामने YS जगन ने भावनात्मक अपील की और जब YS जगन ने इस मुद्दे पर जब बात रखी तो साफ हो गया कि दोनों के बीच सब अब सामान्य नहीं है. उन्होंने कहा, “मैं आज आपसे एक ऐसी बात साझा करना चाहता हूं, जो मेरे दिल के करीब है. विजयसाई रेड्डी, जो कभी मेरे सबसे करीबी सहयोगियों में से एक थे, अब हमारे साथ नहीं हैं. मैं उन्हें कोसना नहीं चाहता, लेकिन मैं इतना जरूर कहना चाहता हूं कि राजनीति में चरित्र और साख सबसे महत्वपूर्ण होते हैं.”
‘हमें अपने मूल्यों से नहीं करना चाहिए समझौता’
जगन ने आगे कहा, “हम सभी को अपने दल और उसकी विचारधारा के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए. जब हम किसी पार्टी का हिस्सा होते हैं, तो हमें गर्व से कहना चाहिए कि हमारा नेता कौन है. मुश्किलें आती हैं, लेकिन हमें अपने मूल्यों से समझौता नहीं करना चाहिए.”
राजनीति में धैर्य की परीक्षा
जगन ने इशारों-इशारों में यह भी जताया कि विजयसाई रेड्डी ने कठिन समय में धैर्य खो दिया. उन्होंने कहा, “हमेशा याद रखिए, बुरे दिन हमेशा नहीं रहते. लोकतंत्र में सत्ता अस्थायी होती है, लेकिन हमारे सिद्धांत और नैतिकता स्थायी होती हैं. हमें धैर्य रखना चाहिए, क्योंकि अंततः सच्चाई की जीत होती है.” जगन ने स्पष्ट किया कि YSR कांग्रेस पार्टी किसी एक व्यक्ति की वजह से नहीं, बल्कि जनता के समर्थन और ईश्वर की कृपा से मजबूत है.
विजयसाई रेड्डी की सफाई
दूसरी ओर, विजयसाई रेड्डी जो वाईएस जगन ने अपने फैसले को व्यक्तिगत बताते हुए कहा, “व्यक्तिगत जीवन में भी मूल्य, विश्वास और चरित्र सबसे अहम होते हैं. मैंने किसी भी प्रलोभन के आगे घुटने नहीं टेके और न ही किसी भय के कारण मैंने पार्टी छोड़ी. अगर डर होता तो मैं राज्यसभा और पार्टी के पदों को नहीं छोड़ता.” यह बयान यह दर्शाता था कि उनके और YS जगन के बीच दरार इतनी गहरी हो चुकी थी कि अब उसे भर पाना नामुमकिन था.
विश्वासघात या आत्मसम्मान?
राजनीतिक गलियारों में इस घटनाक्रम को अलग-अलग नजरिए से देखा गया. कुछ लोगों ने इसे विश्वासघात कहा, तो कुछ ने इसे आत्मसम्मान से लिया गया निर्णय बताया लेकिन सच्चाई यह थी कि एक समय जो साथी एक ही दिशा में चल रहे थे, वे अब अलग-अलग राहों पर निकल चुके थे.
आंध्र प्रदेश की राजनीति की में यह जंग किस ओर करवट लेगी, यह तो समय ही बताएगा.
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