नई दिल्ली: हरि अनंत, हरि कथा अनंता. गैंग ऑफ कानपुर के डॉन विकास दुबे के एनकांउटर पर ऐसी ही बहस जारी है. किसी के लिए ये सही है तो किसी के लिए ग़लत. जितने मुंह, उतनी बातें. सबके अपने अपने तर्क हैं. लेकिन ज़रा सोचिए अगर विकास दुबे मारा नहीं गया होता तो क्या होता ?
कभी विकास के पास दो बीघा ज़मीन थी, आज 250 बीघे पर उसका क़ब्ज़ा है. कभी 100 रुपये को मोहताज था, अब 80 करोड़ की दौलत है. 15 साल गांव का प्रधान रहा और 5 साल ज़िला पंचायत का मेंबर. वो विधायक बनना चाहता था. लेकिन विकास दुबे पुलिस एनकांउटर में मारा गया. अगर ऐसा नहीं होता तो वो विधायक बनता, मंत्री बनता. मारे गए पुलिसकर्मियों के घरवाले कहते हैं, जो हुआ,अच्छा हुआ. अतीक अहमद से लेकर मुख़्तार अंसारी जैसे माफिया डॉन एमपी- एमएलए बनते रहे. कोर्ट से उन्हें कभी सजा नहीं मिली.
मां तो आख़िरकार मां ही होती है. वो हर वक्त अपने बेटे की लंबी उम्र की दुआ करती है. आठ पुलिसवालों की हत्या के बाद विकास एसटीएफ़ से जान बचाने के लिए भाग रहा था. तब उसकी अपनी मां उसके लिए मरने की दुआ कर रही थी. विकास दुबे की मां भी ग्राम प्रधान हैं... अपने बेटे की ताक़त और दबंगई के दम पर ही उन्होंने ये चुनाव जीता था.. एक श्लोक है, कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति. कहने का मतलब ये है कि बेटा ख़राब हो सकता है, लेकिन मां नहीं.. सरला देवी के लिए विकास खोटा निकला. पुलिस एनकांउटर में चार गोली खाकर विकास दुबे कानपुर में मारा गया. तब उसकी मां लखनऊ में अपने घर पर थीं. बेटे की मौत पर भी उन्हें रत्ती भर अफ़सोस नहीं हुआ.
हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे ने लव मैरिज किया था. उसने अपनी पत्नी रिचा को ज़िला पंचायत का सदस्य बनवा दिया था. लखनऊ में उसके रहने के लिए उसने कोठी भी बनवाई थी. जब तक विकास फ़रार रहा, रिचा भी ग़ायब रही. विकास के मारे जाने के बाद उसे आख़िरी बार देखने वे कानपुर गई. विकास के एनकांउटर पर उसने सवाल नहीं किए. बस इतना कहा जिसने गलती की, उसे सजा मिली.
कानपुर के चौबेपुर में विकास दुबे और उसके साथियों ने जेसीबी से पुलिस फ़ोर्स को रोक दिया था. बाद में उसी जेसीबी मशीन से उसके घर को गिरा दिया गया. एक एक ईंट उखाड़ ली गई. उसी घर के पास विकास सभी पुलिसवालों के शव को जलाना चाहता था. उस कोठी की छत से ही पुलिस पर ताबड़तोड़ फ़ायरिंग हुई. जब इस घर को गिराया जा रहा था, विकास के पिता चुपचाप देखते रहे. वे गांव में ही रहे. जब बेटे के मारे जाने की खबर आई, बुजुर्ग पिता ने कहा ये तो होना ही था.
विकास के पुलिस एनकांउटर में मारे जाने पर उसके परिवार वाले कोई सवाल नहीं पूछ रहे. न उन्होंने किसी तरह की जांच की मांग की है. जैसा आम तौर पर होता रहा है. न ही किसी पार्टी के नेता को अपने चौखट तक आने दिया, लेकिन एनकांउटर को लेकर विपक्ष के पास तरह तरह के सवाल हैं. कोई इसे साज़िश मानता है तो कुछ जाति की राजनीति पर आ गए हैं. सब इसमें अपना अपना फ़ायदा ढूंढ रहे हैं.
अखिलेश यादव को लगता है योगी सरकार एनकांउटर के बहाने किसी को बचा रही है. वे पूरे पांच साल यूपी के मुख्यमंत्री रहे. लेकिन इस दौरान विकास दुबे पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. विकास की दबंगई रत्ती भर कम नहीं हुई. उसने अपनी पत्नी रिचा को समाजवादी पार्टी में भेज दिया. कुछ तो मजबूरियां रही होंगी. मुख़्तार अंसारी और उनके भाई अफजाल अंसारी को पार्टी में लेने पर अखिलेश की अपने चाचा शिवपाल यादव से लड़ाई हो गई थी. तब अखिलेश यूपी के सीएम थे और शिवपाल सरकार में ताकतवर मंत्री. मुलायम सिंह से आशीर्वाद लेने के बाद भी अखिलेश ने अंसारी भाईयों को पार्टी में नहीं आने दिया. लेकिन फिर तीन साल बाद लोकसभा चुनाव में उनके लिए ही वोट मांगना पड़ा.
प्रियंका गांधी को लगता है कुछ तो खेल हुआ है. वे तो सुप्रीम कोर्ट के जज से जांच करवाना चाहती हैं. कांग्रेस में जितिन प्रसाद और प्रमोद तिवारी जैसे ब्राह्मण नेता अचानक एक्टिव हो गए हैं. अमर दुबे की पत्नी गिरफ़्तार हुई, तो जितिन को दर्द होने लगा. विकास दुबे का राइट हैंड अमर भी मुठभेड़ में मारा जा चुका है. पिछले तीस सालों से कांग्रेस यूपी में सत्ता से बाहर है. ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम उसका परंपरागत वोट बैंक रहा है. यूपी की छोड़िए विकास के एनकांउटर पर महाराष्ट्र में हंगामा मचा है. कोई ब्राह्मण कार्ड खेल रहा है, तो कोई मुस्लिम और दलित का. ठाकरे सरकार में मंत्री नितिन राउत ने ट्वीट किया, यूपी पुलिस पर ब्राह्मण हत्या का पाप लगेगा. कांग्रेस के सांसद सुधीर दलवी कहते हैं, अब तक दलितों और मुस्लिमों का एनकांउटर होता था, अब ब्राह्मण भी मारे जा रहे हैं.
पुलिस एनकांउटर को लेकर मायावती को भी दाल में कुछ काला नज़र आता है. वैसे उनकी भी नज़र ब्राह्मण वोट पर है. पंडितों के साथ शंख बजाकर वे 2007 में सत्ता का स्वाद चख चुकी हैं. इसीलिए उन्हें भी जांच चाहिए. बहाना ये कि विकास के पुलिस और नेताओं से रिश्ते का खुलासा हो.. वही विकास दुबे जो कभी मायावती की पार्टी से विधायक बनना चाहता था. बीएसपी के कई नेताओं से उसके करीबी संबंध रहे. मायावती के राज में इलाक़े की पुलिस भी विकास की गुलाम बन गई थी. उन दिनों कानपुर के एसएसपी ने उसकी हिस्ट्रीशीट तक फाड़ दी थी. कानपुर की पॉलिटिक्स में विकास पंडीजी कहलाता था.
यूपी में जिस पार्टी की सरकार रही. विकास दुबे उनके गुण गाता रहा. पुलिस और कोर्ट कचहरी से बचने का ये अचूक तरीक़ा है. ज़ीते जी विकास दुबे राजनीति का मोहरा बना रहा. ग़ैर ब्राह्मण नेताओं के लिए ब्राह्मणों के वोट का जुगाड़ करता रहा. अब उसकी मौत पर भी वोट की सियासत जारी है
बात विकास दुबे के पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की नहीं है. असली मसला तो इस पर सवाल कर ब्राह्मण वोटरों में हमदर्दी जगाने की है. कहने के लिए अपराधी की जाति नहीं होती है. लेकिन बिहार यूपी में बाहुबलियों की जाति भी होती है और उनका धर्म भी. शहाबुद्दीन, मुन्ना शुक्ल, अनंत सिंह से लेकर मुख़्तार अंसारी, अतीक अहमद, डीपी यादव और ब्रजेश सिंह. सबकी अपनी राजनीति है.
नीतीश कुमार 2004 में लोकसभा चुनाव हार गए. उसके कुछ ही दिनों बाद बाहुबली नेता अनंत सिंह जेडीयू में आ गए. इस मौक़े पर बाढ़ इलाक़े में एक सभा रखी गई. तब नीतीश बाबू ने कहा था अगर छोटे सरकार उनके साथ होते तो वे कभी चुनाव नहीं हारते. अनंत सिंह को लोग छोटे सरकार कहते हैं.
बात यहीं ख़त्म नहीं होती है. डेढ़ साल पहले राजस्थान में विधानसभा के चुनाव थे. जब मैं वहां रिपोर्टिंग के लिए गया तो पता चला ठाकुर बिरादरी के लोग सीएम वसुंधरा राजे सिंधिया से नाराज़ हैं. वजह जानेंगे तो हैरान रह जाएंगे. राजस्थान में दस लाख का इनामी डॉन आनंदपाल सिंह एनकांउटर में मारा गया था. आनंदपाल राजपूत था. वसुंधरा ये चुनाव हार गईं.
एनकांउटर पर सवाल पर सवाल पूछे जा रहे हैं. लेकिन कितनों ने शहीदों के घरवालों के मन को जानने की कोशिश की. कोई पिता था. कोई बेटा तो कोई भाई. जिन्हें विकास और उसके साथियों ने गोलियों से भून दिया था. फिर उनके शव को जलाने की तैयारी थी. विकास के मरने पर उनके कलेजे को ठंडक मिली. शहीद जितेंद्र पाल के पिता ने कहा कि मुझे यूपी पुलिस पर गर्व है. मेरे बेटे की शहादत बेकार नहीं गई.
विकास दुबे का एनकांउटर नहीं होता तो क्या होता ? हो सकता था वो चुनाव लड़ता. 2022 में यूपी में विधानसभा के चुनाव हैं. वो हमसे और आपसे वोट मांगता. विधायक बनता. क़ानून ने तो हमेशा विकास का ही साथ दिया. पुलिस थाने में घुस कर उसने बीजेपी नेता संतोष शुक्ल को मार दिया था. 2001 में हुई इस घटना को 25 पुलिसवालों समेत कई लोगों ने देखा. किसी ने गवाही नहीं दी और विकास कोर्ट से बाइज़्ज़त छूट गया.
बाहुबली नेता मुख़्तार अंसारी और अतीक अहमद को कौन नहीं जानता. दोनों जेल में हैं. बीएसपी विधायक मुख़्तार अंसारी पर क़रीब 27 मुक़दमे हैं. उन पर बीजेपी एमएलए कृष्णानंद राय की हत्या का भी आरोप है. लेकिन अब तक मुख़्तार को किसी मामले में सजा नहीं हुई. 1993 में उन पर पहला केस हुआ था. न तो उनके ख़िलाफ़ सबूत मिलता है, न ही गवाह. जेल से ही चुनाव जीतते रहे हैं. पार्टी कोई भी हो, नाम ही काफ़ी है. मुख़्तार के कट्टर विरोधी ब्रजेश सिंह भी माननीय हो गए हैं. कभी पांच लाख के इनामी डॉन रहे ब्रजेश अब बीजेपी के आशीर्वाद से एमएलसी हैं. मुख़्तार और ब्रजेश के झगड़े में कई परिवार तबाह हुए. अतीक अहमद पाँच बार विधायक रहे, सांसद रहे. उनके ख़िलाफ़ 53 केस हैं. कई मुक़दमों में अदालत में ट्रायल तक शुरू नहीं हुआ है. फ़ैसला और सजा होने की तो बात ही भूल जाइये.
उज्जैन में महाकाल मंदिर के बाहर विकास दुबे पकड़ा गया था. उसके बाद से ही ये चर्चा होने लगी कि वो एनकांउटर में मारा जायेगा. सोशल मीडिया पर भी कई लोगों ने ऐसी ही राय दी. ठीक वैसा हुआ भी. एसटीएफ़ का कहना है कि उसने आत्म रक्षा यानी सिविल डिफ़ेंस में दुबे को मारा. भागने के चक्कर में वे पुलिस पर गोली चला रहा था. एनकांउटर की जांच को लेकर शिकायत हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट् तक पहुंच गई है. विकास दुबे का पुलिसवालों को मारना और फिर खुद मारा जाना. इस घटना ने हमारे सिस्टम की पोल खोल दी है. ख़ाकी, खादी और अपराध की सांठगांठ को पूरे देश में देखा .ये भी तय है कि अगर वो ज़िंदा रहता तो कई राज खुलते. न जाने कौन कौन बेनक़ाब होता, लेकिन ये सब विकास की मौत के साथ ही दफ़्न हो गए.