नई दिल्ली: विकास दुबे मामले के याचिकाकर्ता ने यूपी सरकार की तरफ से करवाई जा रही जांच को दिखावा बताया है. याचिकाकर्ता अनूप प्रकाश अवस्थी ने सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को होने वाली सुनवाई से पहले हलफनामा दाखिल किया है. इसमें यूपी सरकार की तरफ से नियुक्त न्यायिक आयोग को अवैध बताया गया है. कोर्ट को यह भी बताया गया है कि मामले की जांच के लिए गठित SIT के सदस्य रविंद्र गौर खुद ही पहले फर्जी मुठभेड़ कर चुके हैं.
यूपी सरकार ने जांच को निष्पक्ष बताया
14 जुलाई को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने हैदराबाद एनकाउंटर की तरह इस मामले की जांच के लिए भी आयोग बनाने की मंशा जताई थी. इस पर यूपी सरकार ने हलफनामा दाखिल कर पुलिस की भूमिका को असंदिग्ध बताया था. यूपी सरकार ने यह भी कहा था कि उसने रिटायर्ड हाई कोर्ट जज जस्टिस शशिकांत अग्रवाल के नेतृत्व में मामले की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया है. साथ ही आला अधिकारियों के एक विशेष जांच दल (SIT) का भी गठन किया है.
याचिकाकर्ता ने आयोग को अवैध कहा
अब याचिकाकर्ता ने यूपी सरकार के हलफनामे पर जवाब दाखिल किया है. उनका कहना है कि आयोग का गठन पूरी तरह से अवैध है. कमीशन ऑफ इंक्वायरी एक्ट की धारा तीन के तहत किसी न्यायिक आयोग के गठन से पहले विधानसभा और विधान परिषद की मंजूरी जरूरी होती है. अगर सदन का सत्र न चल रहा हो तो सरकार को आयोग के गठन के लिए अध्यादेश लाना पड़ता है. लेकिन ऐसा कुछ भी किए बिना न्यायिक आयोग के गठन की घोषणा कर दी गई.
पूर्व जज पर भी सवाल
याचिकाकर्ता ने इस एक सदस्यीय आयोग के जस्टिस शशिकांत अग्रवाल को हाई कोर्ट का रिटायर्ड जज कहने पर भी एतराज़ जताया है. हलफनामे में कहा गया है कि जस्टिस शशिकांत अग्रवाल अपने पद से सेवानिवृत्त नहीं हुए थे. उन्होंने 2005 में विवादास्पद परिस्थितियों में इस्तीफा दिया था. एक विवाद के बाद उनका झारखंड हाई कोर्ट ट्रांसफर किया गया था. लेकिन उन्होंने वहां जाने की बजाय इस्तीफा दे दिया. इस तरह कार्यकाल के बाकी रहते पद छोड़ने वाले व्यक्ति को रिटायर्ड जज कह कर न्यायिक आयोग का नेतृत्व सौंप देना गलत है. 77 साल के जस्टिस अग्रवाल 8 पुलिसकर्मियों और 6 अपराधियों को हत्या वाले इस जटिल मामले की जांच के लिए शारीरिक और मानसिक तौर पर फिट हैं. इस पर भी सवाल है.
रिपोर्ट मानने से मना कर सकती है सरकार
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा है कि इस तरह के आयोग का कोई महत्व नहीं है. राज्य सरकार के लिए उसकी सिफारिशों को मानना बाध्यकारी नहीं है. इस मामले की तह तक पहुंचने के लिए ज़्यादा ठोस कदम उठाने की ज़रूरत है. हलफनामे में यूपी सरकार की तरफ से बनाए गए SIT पर सवाल उठाए गए हैं.
‘SIT सदस्य खुद कर चुके हैं फ़र्ज़ी मुठभेड़’
हलफनामे में बताया गया है कि SIT के सदस्य DIG रविंद्र गौर खुद ही पहले फर्जी एनकाउंटर में शामिल रह चुके हैं. 30 जून 2007 को बरेली में दवाइयों के एक डीलर मुकुल गुप्ता को मुठभेड़ में मार गिराया गया था. इस मामले की CBI ने जांच की थी. CBI ने जांच के बाद यूपी सरकार से रविंद्र गौर के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की अनुमति मांगी, जिससे यूपी सरकार ने मना कर दिया. यही वजह है कि गौर आज तक सेवा में हैं. अपने बेटे को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे मुकुल गुप्ता के माता-पिता की भी 2014 में हत्या हो गई थी. इस तरह के अधिकारी को SIT में शामिल करने से यह अंदेशा है कि उनका झुकाव पुलिस वालों को बचाने की तरफ रह सकता है.
पुलिस का रवैया प्रतिद्वंद्वी गिरोह जैसा
वकील अनूप प्रकाश अवस्थी ने हलफनामे में कहा है कि यूपी पुलिस अपने 8 लोगों के मारे जाने के बाद बदला लेने पर उतारू थी. उसने विकास दुबे के गिरोह को निपटाने के लिए गैंगवार में शामिल प्रतिद्वंदी गैंग के जैसा बर्ताव किया. उसने विकास दुबे का सहयोगी बताकर जिस प्रभात मिश्रा को मुठभेड़ में मार दिया, उसकी उम्र सिर्फ 16 साल थी. विकास दुबे को मारने के बारे में पुलिस ने जो कहानी बताई है, वह सी ग्रेड के फिल्म जैसी है. वह बिल्कुल भी विश्वास के लायक नहीं लगती.
सोमवार को SC दे सकता है आदेश
सुप्रीम कोर्ट मामले की सोमवार, 20 जुलाई को सुनवाई करेगा. कोर्ट ने पिछली सुनवाई में अपनी तरफ से आयोग बनाने का संकेत देते हुए सभी पक्षों से सुझाव मांगे थे. हालांकि, न तो यूपी सरकार, न ही याचिकाकर्ता ने कोर्ट को कोई नाम सुझाया है. यूपी सरकार ने अपनी जांच को निष्पक्ष बताते हुए अलग से आयोग के गठन को गैरजरूरी बताया है. जबकि, याचिकाकर्ता ने जोर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट अपनी निगरानी में पूरे मामले की जांच करवाए, ताकि अपराधियों पुलिस और नेताओं के गठजोड़ के तह तक पहुंचा जा सके.
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