कैसे की 8 पुलिसवालों की हत्या और कहां-कहां भागा, एनकाउंटर से पहले विकास दुबे ने STF को बताई थी पूरी कहानी
मौत के पहले के सफर में विकास ने एसटीएफ को पूरे घटनाक्रम को विस्तार से बताया. विकास दुबे ने बताया था कि सीओ मुझे मारना चाहते थे. इसके लिए मेरे विरोधी उनकी पूरी मदद कर रहे थे.
उत्तर प्रदेश: चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में आठ पुलिसकर्मियों को मौत के घाट उतारने वाले यूपी के मोस्ट वांटेड अपराधी विकास दुबे के अलावा उसके पांच साथियों को पुलिस परलोक पहुंचा चुकी है. गुरुवार को विकास को उज्जैन से पकड़ा गया था. पुलिस के मुताबिक एसटीएफ उसे कानपुर ला रही थी और रास्ते में उस गाड़ी का एक्सिडेंट हो जाता है. भागने की कोशिश में विकास मारा जाता है. मौत के पहले के सफर में विकास ने एसटीएफ को पूरे घटनाक्रम को विस्तार से बताया.
यहां पढ़ें, पुलिस के सवाल और विकास दुबे के जवाब:-
पुलिस - शहीद सीओ से क्या रंजिश थी? विकास दुबे - सीओ मुझे मारना चाहते थे. इसके लिए मेरे विरोधी उनकी पूरी मदद कर रहे थे. मुझे एक मामले में इन्हीं लोगों के कहने पर 120-बी (अपराध की साजिश में शामिल होना) में फंसाया गया. फिर मुझे राहुल तिवारी की हत्या के प्रयास में नाप दिया. थाने के लोगों ने मुझे बताया था कि मेरा एनकाउंटर करने की सुपारी ली थी सीओ ने.
पुलिस - घटना वाले दिन क्या हुआ था? विकास दुबे - मेरे भतीजे हीरू दुबे के पास रात आठ बजे मेरे खास सिपाही राजीव चौधरी ने फ़ोन किया था. उसने बताया कि आज दबिश की प्लानिंग है. काफी फोर्स आएगी. मेरे एनकाउंटर की पूरी तैयारी है. धीरू ने मुझे बताया तो मैंने एसओ विनय तिवारी को पलटकर फ़ोन किया था. एसओ को धमकाया भी था और कहा था कि आ गए तो अंजाम अच्छा नहीं होगा. एसओ ने कहा था कि सबकुछ सीओ के स्तर से हो रहा है, उसका रोल नहीं है.
पुलिस - आठ पुलिसकर्मियों को क्यों मारा? विकास दुबे - मेरा प्लान ये था कि कुछ सिपाहियों को घायल कर देंगे तो पुलिस भाग जाएगी और दहशत कायम हो जाएगी. मगर मेरे प्लान के हिसाब से चीजें नहीं हुईं. अमर और अतुल ने काफी शराब पी रखी थी. अतिउत्साह में उन्होंने और गैंग के नए लड़कों ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर दी. मेरे घर पर बाहर के आधा दर्जन अपराधी रुके थे. उन्हें लगा कि कहीं पुलिस उन्हें न धर ले, इसलिए उन्होंने भी अंधाधुन्द फायरिंग कर दी.
पुलिस - कौन से असलहों से फायरिंग की? विकास दुबे - मेरे भांजे शिवम तिवारी के नाम मैंने विनचिस्टर कम्पनी की सेमी ऑटोमैटिक रायफल ले रखी थी. अमर इसी से फायरिंग कर रहा था. अतुल और दूसरे साथी भी राइफल और देशी तमंचों से गोलियां चला रहे थे. ये लोग मेरे मामा प्रेम प्रकाश की छत पर मौजूद थे और मैं अपनी छत पर रिपीटर बंदूक से गोलियां चला रहा था. मेरा अहम मकसद दहशत फैलाने का था. मगर जब पुलिसवाले भागने लगे तब मैंने नीचे उतरकर देखा तो आठ पुलिसवाले मरे पड़े थे. ये मेरी उम्मीद से कहीं ज्यादा था. सीओ को मैंने नीचे आकर रायफल से एक गोली पैर में मारी थी, क्योंकि वो कहते थे कि विकास एक पैर से लंगड़ा है. मैं दोनों से कर दूंगा. शवों को डीजल से जलाने की तैयारी थी, लेकिन वक्त न होने के चलते हम सभी भाग गए.
पुलिस - इसके बाद कहां भागे? विकास दुबे - मैं समझ गया था कि इस खूनखराबे के बाद पुलिस मुझे कुत्ते की तरह तलाश करेगी. मैंने गिरोह के लोगों को अलग अलग भागने को कहा और मैं खुद अतुल और अमर को लेकर पैदल शिवली पहुंचा, जहां एक करीबी के घर दो दिन तक रुका. मुझे पता चला कि शनिवार की देर रात पुलिस ने मेरे बहनोई को उठा लिया है, तो मैं यहां से तड़के चार बजे निकला. नगर पालिका के एक पदाधिकारी और मेरे करीबी ने अपनी सिल्वर कलर हुंडई कार को ड्राइवर के साथ मुझे, अमर और अतुल को फरार करवाया. तड़के चार बजे हम लोग शिवली से निकल गए.
पुलिस - उसके बाद कहां गए? विकास दुबे - यहां से सीधे नोएडा होते हुए दिल्ली गए, जहां कुछ वकीलों से मुलाकात हुई. उनसे सरेंडर की बात हुई. पचास हजार रुपये एडवांस दिलवाने को उन्होंने बोला था. यह भी तय हुआ था कि उज्जैन में सरेंडर करेंगे. इस पर मैंने गाड़ी वापस शिवली भेज दी और बस से फरीदाबाद गया, जहां अभय मिश्र के दूर के रिश्तेदार का मकान है. एक दिन रुकने के बाद मैं दोबारा फरीदाबाद से वकीलों के पास दिल्ली पहुंचा. वापस फरीदाबाद जाना था, लेकिन तब तक पता चला कि अभय गिरफ्तार हो गया है. ऐसे में मैंने संदीप पाल के नाम से पहले दिल्ली से जयपुर के टिकट कराया. फिर जयपुर से झालावाड़ गया और वहां से उज्जैन आया. वकील से यह बात भी हुई थी कि सरेंडर होते ही एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई जाएगी, जिससे पुलिस मेरा एनकाउंटर न कर पाए. मुझे अमर और अतुल की मौत से सबसे ज्यादा दुख पहुंचा.
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