नई दिल्ली: कानुपर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोपी हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को पकड़ने के लिए यूपी पुलिस लगातार कोशिशों में जुटी है. विकास दुबे के खिलाफ 60 आपराधिक मामले दर्ज थे लेकिन उसके खिलाफ अब तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हो सकी. यही वजह है कि कानपुर मुठभेड़ के बाद एक बार फिर राजनेताओं और अपराधियों के गठजोड़ को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं. यह कोई पहला मौका नहीं है जब कि किसी कुख्यात अपराधी को राजनीतिक शरण मिली हो.


इस मामले ने देश के इतिहास में डॉन, हिस्ट्रीशीटर और आतंकवादी रहे कई लोगों से जुड़े वाकये ताजा कर दिए हैं. ऐसे ही कुछ कुख्यात अपराधियों का यहां जिक्र किया गया है.


दाऊद इब्राहिम
महाराष्ट्र के रत्नागिरी में जन्मे दाऊद इब्राहिम के पिता मुंबई पुलिस में हवलदार थे. स्कूल के दिनों से ही बुरी संगत में पढ़ दाऊद ने चोरी, डकैती और तस्करी शुरू कर दी थी. आगे चलकर दाऊद डॉन बाशू दादा के साथ हो लिया. धीरे-धीरे दाऊद अपराध की दुनिया में आगे बढ़ता गया. इसी बीच उसे छोटा राजन का भी साथ मिला दोनों ने मिलकर भारत के बाहर भी काम करना शुरू कर दिया. हालांकि आगे चलकर दोनों एक दूसरे के जानी दुश्मन बन गए.


दाऊद 1993 बम ब्लास्ट का मुख्य आरोपी है. वह भारत का मोस्ट वांटेड अपराधी है लेकिन अभी तक भारतीय खुफिया एजेंसी उसे पकड़ पाने में कामयाब नहीं हो सकी है. माना जाता है कि वह पाकिस्तान में रह रहा है.


करीम लाला
करीम लाला का पूरा नाम अब्दुल करीम शेर खान था. करीम लाला का जन्म 1911 में अफगानिस्तान में हुआ था. लाला बड़े सपने देखता था और इसे पूरा करने के लिए वह मुंबई चला आया. शुरुआत में उनसे मुंबई के ग्रांट रोड पर एक मकान किराए पर लिया और यहां जुए का अड्डा खोल लिया जिसका नाम सोशल क्लब था.


करीम लाला ने जुए के बाद सोने, गहनों और हीरे की तस्करी शुरू कर दी. बाद में करीम लाला तस्करी के धंधे का किंग कहा जाने लगा. उसने मुंबई में कई जगहों पर दारू के ठेके भी खोले.


मुंबई अंडरवर्ल्ड की सबसे बड़ी लड़ाइयों में से एक करीम लाला गैंग और दाऊद इब्राहिम गैंग के बीच हुई थी. इस गैंगवार में दाऊद के गैंग ने करीम लाला के गैंग का करीब-करीब सफाया कर दिया. करीम लाला की मौत 90 साल की उम्र में 19 फरवरी 2002 में मुंबई में हुई.


छोटा राजन
छोटा राजन कभी दाऊद इब्राहिम का राइट हैंड माना जाता था लेकिन आगे चलकर दोनों में दुश्मनी हो गई. 2000 में दाऊद के गुर्गों ने छोटा राजन पर हमला भी करवाया. हमले में गोलियां लगने के बाद भी राजन बच निकला.


छोटा राजन को जब मुंबई पुलिस ने पकड़ने के लिए जाल बिछाया तो वह सिंगापुर भाग गया था. राजन को 25 अक्टूबर 2015 को बाली में इंडोनेशिया की पुलिस ने पकड़ा. उसी साल 6 नवंबर को राजन को भारत लाया गया. 2 मई 2018 को उसे एक पत्रकार के मर्डर में उम्रकैद की सजा सुनाई गई.


रवि पुजारी
रवि पुजारी दाऊद का शार्प शूटर था. जब छोटा राजन और दाऊद के रास्ते अलग हुए तो पुजारी राजन से अलग होकर बैंकॉक चला गया. पुजारी ने बैंकॉक में अपना एक अलग गैंग बना लिया. बैंकॉक में पुजारी रंगदारी के धंधे में बड़ा नाम बन गया. बॉलीवुड के सितारों को धमकाने में भी उसका नाम आता रहा है.


रवि पुजारी पर हत्या और फिरौती के 200 से ज्यादा मामले चल रहे हैं. रवि पुजारी 15 साल से फरार था लेकिन फरवरी 2020 में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने रवि पुजारी को गिरफ्तार कर लिया.


छोटा शकील
छोटा शकील दाऊद इब्राहिम की डी कंपनी में दूसरे नंबर का आदमी है. शकील 1993 मुंबई ब्लास्ट और 2001 में बैंकॉक में छोटा राजन पर हमले का आरोपी है. माना जाता है कि दाऊद का पैसा बॉलीवुड की फिल्मों में छोटा शकील ही लगाता था. कहा जाता है कि कुख्यात डॉन छोटा राजन ने छोटा शकील के डर से ही खुद को गिरफ्तार कराया था. छोटा शकील इस वक्त पाकिस्तान में है और भारतीय खुफिया एजेंसी लगातार उसकी तलाश कर रही है.


वीरप्पन
'वीरप्पन' के नाम से कुख्यात प्रसिद्ध कूज मुनिस्वामी वीरप्पन का जन्म गोपीनाथम नामक गांव में 1952 में एक चरवाहा परिवार में हुआ था. वीरप्पन का राज कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के जंगलों में था. तीनों ही राज्यों की पुलिस उसको पकड़ने के लिए अभियान चला रही थी.


वीरप्पन के खिलाफ अपराधिक मामलों की लिस्ट बहुत लंबी थी. वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और वन अधिकारियों समेत 184 लोगों की हत्या, 200 हाथियों के शिकार, 26 लाख डॉलर के हाथी के दांतों की तस्करी और दो करोड़ 20 लाख डॉलर कीमत की दस हजार टन चंदन की लकड़ी की तस्करी से जुड़े मामलों में पुलिस को वीरप्पन की तलाश थी. 1986 में वीरप्पन को एक बार पकड़ लिया गया था लेकिन वह भाग निकलने में सफल रहा.


1990 में कर्नाटक सरकार ने उसे पकड़ने के लिए एक विशेष पुलिस दस्ते का गठन किया. फरवरी 1992 में पुलिस ने उसके प्रमुख सहयोगी गुरुनाथन को पकड़ लिया. 18 अक्टूबर 2004 को उसे मार गिराया गया.


रंगा और बिल्ला
रंगा और बिल्ला ने 1978 में दो बच्चों की नृशंस हत्या कर दी थी. इस कांड की चर्चा पूरे देश के साथ विदेशों तक पहुंच गई थी. कुलजीत सिंह उर्फ रंगा और जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला ने एक सैन्य अधिकारी के बच्चों को अगवा कर उनको मौत के घाट उतार दिया था. केस चलने के बाद दोनों को फांसी दे दी गई.


दोनों ने 29 अगस्त 1978 को संजय और गीता चोपड़ा का फिरौती के लिए अपहरण किया था. तीन दिन बाद दोनों भाई-बहनों के शव बरामद किए गए. रंगा-बिल्ला को एक ट्रेन से गिरफ्तार किया गया और चार साल तक चली सुनवाई के बाद 1982 में उन्हें फांसी दे दी गई. दोनों बच्चों के नाम पर बाद में वीरता पुरस्कार शुरू किया गया, जो हर साल दिया जाता है.


यह भी पढ़ें:


यूपी ADG ने कहा- कानपुर हत्याकांड के आरोपियों को बख्शा नहीं जाएगा, ऐसी कार्रवाई करेंगे कि पछतावा होगा